उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में शिक्षा का सच जानने के लिए एपीएन की टीम जब जानसठ ब्लॉक के मीरापुर प्राथमिक स्कूल नंबर-एक पहुंची तो यहां ‘सब पढ़ें, सब बढ़ें’ का नारा महज दिखावा ही नजर आया। स्कूल में बच्चे जमीन पर बैठे दिखे, सरकार सभी स्कूलों में बच्चों के लिए बेंच और डेस्क मुहैया कराने का दावा कर रही है, एपीएन पिछले कुछ दिनों से यूपी के कई जिलों के सरकारी स्कूलों का दौरा कर रही है लेकिन कहीं भी प्राथमिक स्कूलों में हमें बच्चों के लिए बेंच और डेस्क नहीं दिखा। माध्यमिक स्कूल के बच्चों को जरूर बेंच-डेस्क मिला है लेकिन प्राथमिक स्कूल के बच्चे आज भी जमीन पर बैठ कर पढ़ने को मजबूर हैं।

मीरापुर के प्राथमिक स्कूल में कुल 212 बच्चे पढ़ते है लेकिन खुशी की बात हैं कि यहां लड़कों के मुकाबले लड़कियों की तादाद ज्यादा है। स्कूल में 96 छात्र हैं जबकि छात्राओं की संख्या 116 है यानि यहां पढ़े बेटियां, बढ़े बेटियां का नारा साकार होता दिख रहा है। जब हम क्लास रूम पहुंचे तो मास्टर साहब भी महिला सशक्तिकरण का पाठ पढ़ा रहे थे। लेकिन समस्या तो ये है कि अभिभावकों ने अपनी बेटियों का स्कूल में एडमिशन तो करा दिया लेकिन यहां बेटियों के पढ़ाने की मुकम्म्ल व्यवस्था ही नहीं है। स्कूल में एक से पांच क्लास तक के बच्चों को पढ़ाया जाता है इस हिसाब से यहां पांच क्लास रूम भी होनी चाहिए लेकिन महज चार क्लास रूम ही स्कूल में ठीक-ठाक हालत में है, पांचवा कमरा जर्जर है जिसे बंद कर दिया गया है। ऐसे में चार क्लास रूम में ही पांचों क्लास के बच्चों को पढ़ाया जा रहा है।

212 बच्चों वाले इस स्कूल में शिक्षा व्यवस्था कैसी है ये जानने के लिए हमने बच्चों से पहले उन्हें पढ़ाने वाले अध्यापकों में ही ज्ञान का स्तर परखने का फैसला किया तो तस्वीर धुंधली नजर आई। जब टीचर ही राष्ट्रपति का नाम बताने में लड़खड़ाने लगे तो थोड़ी हैरत और चिंता दोनों होती है।

मीरापुर के प्राथमिक स्कूल का जायजा लेने के बाद हमारा कांरवा मुजफ्फरनगर के ही जानसठ ब्लॉक के मुकल्लमपुरा प्राथमिक स्कूल पहुंचा। यहां प्राथमिक स्कूल एक और दो आसपास ही बना है।

सबसे पहले मुकल्लमपुरा प्राथमिक स्कूल नंबर-1 का हाल बताते हैं, इस प्राथमिक स्कूल में एक से पांच क्लास तक के 139 बच्चें पढ़ते हैं। इस हिसाब से स्कूल में पांच क्लास रूम होने चाहिए लेकिन स्कूल में महज तीन कमरे ही हैं ऐसे में बच्चों को बाहर बरामदे में पढ़ना पड़ता है। वही स्कूल में बेंच-डेस्क की व्यवस्था नहीं होने की वजह से बच्चों को जमीन पर बैठकर ही शिक्षा ग्रहण करने की जद्दोजहद करनी पड़ती है। इसके अलावा भी स्कूल में बिजली-पानी, शौचालय जैसी कई समस्या है। हालांकि जब हमने बच्चों में शिक्षा के स्तर की जांच की तो संतोष हुआ कि तमाम परेशानियों के बावजूद यहां बच्चों को ठीक-ठाक शिक्षा मिल रही है।

मुकल्लमपुरा प्राथमिक स्कूल नंबर-1  का हाल जानने के बाद हम मुकल्लमपुरा प्राथमिक स्कूल नंबर-2 पहुंचे। इस स्कूल में भी जगह की कमी होने की वजह से बच्चों को बरामदे में जमीन पर बैठा कर पढ़ाया जा रहा है। उत्तर प्रदेश के तमाम प्राथमिक स्कूलों की तरह ही यहां भी बच्चों को बेंच और डेस्क मयस्सर नहीं है। लेकिन स्कूल की सबसे बड़ी समस्या तो टीचर की कमी है। वैसे एक से पांच क्लास के बच्चों को पढ़ाने के लिए यहां पांच शिक्षकों की नियुक्ति की गई है लेकिन तीन टीचर्स की ड्यूटी सरकारी सर्वे के काम में लगा दी गई है  ऐसे में पूरा स्कूल महज 2 शिक्षकों के भरोसे चल रहा है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि सरकारी स्कूलों में अगर ऐसे ही बने रहे तो कैसे पढ़ेंगे और कैसे बढ़ेंगे बच्चे?

एपीएन ब्यूरो

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