उच्चतम न्यायालय ने भीमा कोरेगांव मामले में पांच मानवाधिकार कार्यकताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ दायर याचिका पर गुरुवार को फैसला सुरक्षित रख लिया। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ की खंडपीठ ने सभी सम्बद्ध पक्षों की वृहद सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रखा। शीर्ष अदालत ने सभी पक्षों को इस मामले में सोमवार तक अपना लिखित पक्ष रखने को कहा है। इससे पहले सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मिश्रा ने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से मामले की केस डायरी सौंपने का निर्देश दिया।
न्यायालय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं- वकील सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वरवरा राव, अरुण फेरेरा तथा वेरनन गोंजाल्विस- की गिरफ्तारी के खिलाफ इतिहासकार रोमिला थापर एवं अन्य की जनहित याचिका की सुनवाई कर रहा है। इस मामले में कल सुनवाई पूरी नहीं हो सकी थी और न्यायालय ने इसे आज भी जारी रखने के निर्देश दिये थे। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि वह अदालत केवल इतना चाह रहे हैं कि इस मामले में तटस्थ जांच हो।
गौरतलब है कि 31 दिसंबर, 2017 को आयोजित एलगार परिषद की बैठक के बाद पुणे के भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा की घटना की जांच के सिलसिले में बीते 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर उपरोक्त पांचों आरोपियों को गिरफ़्तार किया था, लेकिन इसके खिलाफ याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था। शीर्ष अदालत ने 29 अगस्त को पांचों आरोपियों को छह सितंबर तक अपने घरों में ही नज़रबंद करने का आदेश दिया था। बाद में इसे मामले की सुनवाई के अनुरूप धीरे-धीरे बढ़ाया जा रहा है।
-साभार, ईएनसी टाइम्स