उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति वैंकेया नायडू ने सोमवार को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग प्रस्ताव को खारिज कर दिया है। नायडू ने कहा कि इसमें सीजेआई के दुर्व्यवहार को साबित करने वाले पर्याप्त सबूतों की कमी थी।
राज्यसभा अध्यक्ष ने कहा, ‘महाभियोग प्रस्ताव में लगाए गए सभी पांच आरोपों पर मैंने गौर किया और इसके साथ लगे दस्तावेजों की जांच की। प्रस्ताव में जिक्र किए गए सभी तथ्य के जरिए मामला नहीं बनता जो सीजेआई को दुर्व्यवहार का दोषी बताए।’ सुप्रीम कोर्ट के अधिकारियों के अनुसार, महाभियोग प्रस्ताव के खारिज किए जाने के बाद दीपक मिश्रा समेत सुप्रीम कोर्ट के सभी जज ने मिलकर 20 मिनट की मीटिंग की। रिपोर्टों के अनुसार, फैसला करने से पहले राज्यसभा के अध्यक्ष के तौर पर नायडू ने कानूनी और संवैधानिक विशेषज्ञों से मामले पर चर्चा की। इस प्रस्ताव पर हुए चर्चा के एक दिन बाद खारिज करने का नोटिस आया।
संविधान के अनुसार, जज को केवल महाभियोग के जरिए ही पद से हटाया जा सकता है। संविधान के अनुच्छेद 124 (4)-217(1) में सुप्रीम कोर्ट या किसी हाई कोर्ट के जज को हटाए जाने का प्रावधान है। ये सदस्य संबंधित सदन के पीठासीन अधिकारी को जज के खिलाफ महाभियोग चलाने की अपनी मांग का नोटिस दे सकते हैं। प्रस्ताव पारित होने के बाद संबंधित सदन के अध्यक्ष तीन जजों की एक समिति का गठन करते हैं।
महाभियोग प्रस्ताव के खारिज होने के कारण
1.किसी भी जज के खिलाफ महाभियोग के प्रस्ताव पर संसद के दोनों सदनों की मंजूरी जरूरी होती है।
2.संसद के दोनों सदनों में से किसी भी एक सदन में महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है।
3.लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव आने के लिए कम से कम 100 सदस्यों का प्रस्ताव के पक्ष में हस्ताक्षर जरूरी है।
4. राज्यसभा में इस प्रस्ताव के लिए सदन के 50 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होती है।
5. जब किसी भी सदन में यह प्रस्ताव आता है, तो उस प्रस्ताव पर सदन का सभापति या अध्यक्ष उस प्रस्ताव को स्वीकार या खारिज कर सकता है।
#MuddaLive: अगर आप उपराष्ट्रपति जी के फैसले को पढ़ें तो फैसले को पढ़ने के बाद आपको लगता नहीं कि यह उनका राजनीतिक कार्यकर्त्ता के तौर पर दिया गया फैसला है: प्रदीप राय, वरिष्ठ अधिवक्ता सुप्रीमकोर्ट pic.twitter.com/EBck9kTovg
— APN न्यूज़ हिंदी (@apnlivehindi) April 23, 2018
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता प्रदीप राय ने कहा कि अगर आप उपराष्ट्रपति जी के फैसले को पढ़ें तो फैसले को पढ़ने के बाद आपको लगता नहीं कि यह उनका राजनीतिक कार्यकर्त्ता के तौर पर दिया गया फैसला है। उन्होंने कहा कि संविधान की रक्षा करने के लिए साफ सुथरे लोगों की जरुरत है।
बता दें कि 20 अप्रैल को कांग्रेस की अगुआई में विपक्षी पार्टियों ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 (4)-217(1) के तहत सीजेआई को हटाने की मांग करते हुए राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव दिया था। इस प्रस्ताव पर सदन के मौजूदा 64 सदस्यों ने हस्ताक्षर किया था।