जनता के जिन प्रतिनिधियों पर देश का कानून बनाने की जिम्मेदारी है उन्हीं पर कई अपराधिक मामसे दर्ज है इस बात का खुलासा सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की तरफ से दाखिल किए गए हलफनामे से हुआ है। 1700 से ज्यादा सांसदों और विधायकों के खिलाफ क्राइम से जुड़े 3,045 मामले दर्ज हैं।

एक केस की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये आंकड़ा केंद्र सरकार से मांगा था। इसके जवाब में केंद्र ने हलफनामा दायर कर जानकारी दी है। जिसके अनुसार संसद और विधानसभाओं के कुल 4896 जनप्रतिनिधि में से 1765 सांसदों और विधायकों के खिलाफ अपराधिक केस दर्ज है। यानी 36% एमपी और एमएलए क्रिमिनल केस में ट्रायल पर हैं। लिस्ट में सबसे ज्यादा यूपी फिर तमिलनाडु के सांसदों और विधायकों पर अपराधिक मामले दर्ज हैं। सभी मामले अलग-अलग कोर्ट में लंबित हैं।

केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को जो लिस्ट सौंपी उसमें सबसे ऊपर यूपी है। यहां 539 जनप्रतिनिधियों में से करीब आधे यानी 248 पर अपराधिक मामले दर्ज है। इसके बाद तमिलनाडु है। यहां के 178 सांसदों विधायकों पर केस दर्ज है। तीसरे नंबर पर बिहार है। यहां 144 नेताओं पर अपराधिक मामलों के दाग हैं।

वहीं पश्चिम बंगाल में अपराधिक मामलों वाले 139 सांसद विधायक हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश, केरल और तेलंगाना के सांसद और विधायकों के खिलाफ कुल 100 से ज्यादा मामले लंबित हैं। देशभर के हाईकोर्ट से इस मामले में पिछले पांच मार्च को ये आंकड़े जुटाए गए थे।

साल 2014 में ही सुप्रीम कोर्ट ने सांसदों विधायकों पर चल रहे मुकदमों को एक साल के अंदर ही निपटाने का निर्देश दिया था। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। पिछले तीन सालों में सिर्फ 771 मुकदमों में ही ट्रायल पूरा हो सका है जबकि 3045 केस में सुनवाई जारी है।

गौरतलब है कि बीजेपी नेता अश्वनी उपाध्याय ने कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। उन्होंने मांग की थी कि आपराधिक मामलों में दोषी सांसदों और विधायकों पर आजीवन चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए।

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