जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में पिछले दो सालों से स्वामी विवेकानंद की मूर्ति को ढंक कर रखा गया था। मूर्ति 2018 से लाल कपड़े के पीछे थी। गुरवार को स्वामी विवेकानंद की मूर्ति का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए किया है। पीएम ने इस मौके पर युवाओं को संदेश भी दिया। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जेएनयू पहुंचे नरेंद्र मोदी ने कहा, “पेट भरा हो तो डिबेट में मजा आता है। आपके आइडियाज, डिबेट, डिस्कशन की जो भूख साबरमती ढाबे में मिटती थी, अब स्वामीजी की प्रतिमा की छत्रछाया में इसके लिए एक और जगह मिल गई है।”

swami vivekananada

अपने भाषण में नरेंद्र मोदी कहते हैं, “स्वामी जी की प्रतिमा जेएनयू के छात्रा को देश प्रेम और श्रद्धा सिखाएगी। स्वामी का सपना था एक नेशन यहां पर वे अपने सपने को पूरा होते हुए देखेंगे।  जब चारों तरफ निराशा और हताशा थी। हम गुलामी के बोझ में दबे थे, तब स्वामीजी ने अमेरिका की मिशिगन यूनिवर्सिटी में युवाओं से कहा था कि यह शताब्दी आपकी है, लेकिन 21वीं शताब्दी निश्चित ही भारत की होगी।”

प्रधानमंत्री स्वामी विवेकानंद के विचारों के बारे में बताते हुए जेएनयू के छात्रों को कहते हैं, “इस देश का युवा देश की पहचान है। युवा देश का प्रचारक है। हमें अपने संस्कृति पर गर्व करना चाहिए।  आपसे अपेक्षा सिर्फ भारत की पुरातन पहचान पर गर्व करने की ही नहीं है, नई पहचान गढ़ने की भी है। अतीत में हमने दुनिया को क्या दिया, ये याद रखना और ये बताना हमारे आत्मविश्वास को बढ़ाता है।”

साबरमती ढाबे के बारे में बताते हुए पीएम मोदी कहते हैं, “ JNU के इस कैम्पस में एक बेहद लोकप्रिय जगह है। साबरमती ढाबा। क्लास के बाद इस ढाबे पर जाते हैं और चाय पराठे के साथ डिबेट करते हैं, आइडिया एक्सचेंज करते हैं। पेट भरा हो तो डिबेट में मजा आता है। आपके आइडियाज की, डिबेट, डिस्कशन की जो भूख साबरमती ढाबे में मिटती थी, अब इस स्वामीजी की प्रतिमा की छत्रछाया में इसमें एक और जगह मिल गई है।”

प्रधानमंत्री के इस वीडियो कॉनफ्रेंसिंग में विचार धारा की जमकर चर्चा हो रही है। इसका कारण है। “आज हर कोई अपनी विचारधारा पर गर्व करता है। यह स्वाभाविक भी है। लेकिन हमारी विचारधारा राष्ट्रहित के विषयों में राष्ट्र के साथ नजर आनी चाहिए, राष्ट्र के खिलाफ नहीं।” प्रधानमंत्री के ये शब्द जो उन्होंने जेएनयू के छात्रो को कहा। पर इस पर गौर करने वाली बात है जिस देश में बच्चा-बच्चा देश प्रेमी है, राष्ट्र भक्त है उस देश के प्रधानमंत्री को देश की सबसे प्रचलित यूनिवर्सिटी में इस तरह का भाषण क्यों देना पड़ा ? कारण है वहां के छात्रों पर हावी वामपंथी विचारधारा। जो कई दफा सेना का अपमान कर चुके हैं। आतंकवादियों के हक के लिए लड़ते हैं।

इन मौकों पर जेएनयू सूर्खियों में रहा

  • जेएनयू नकरात्‍मक कारणों से सुर्खियों में रही। इसकी शुरुआत 2016 से हुई। जब संसद पर आतंकी हमले के दोषी अफजल गुरु की फांसी के खिलाफ एक कार्यक्रम को लेकर विवाद हुआ। 9 फरवरी 2016 को एक कार्यक्रम के दौरान जेएनयू छात्रों पर कथित रूप से देश-विरोधी नारे लगाने का आरोप लगा।
  • जेएनयू अक्‍सर विवादों का केंद्र बना रहता है। इस साल जनवरी में कुछ ऐसा ही हुआ। कई दर्जन नकाबपोश लोगों ने जेएनयू छात्रों पर हमला बोल दिया था। विपक्ष और लेफ्ट पार्टियों का आरोप था कि यह हरकत बीजेपी की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्याथी परिषद की है। ABVP ने आधिकारिक रूप से इस हिंसा में अपनी संलिप्‍तता से इनकार किया है।
  • पिछले साल नंबर में आपत्तिजनक बातें लिख दी गई थीं। यह पता नहीं चल पाया था कि ऐसा किसने किया। जेएनयू के पूर्वांचल एरिया में वीडी सावरकर के नाम की रोड है। इसके साइन बोर्ड पर इसी साल कालिख पोत दी गई थी और उसपर बीआर अम्‍बेडकर लिख दिया गया था। JNU छात्रसंघ की अध्‍यक्ष आइशी घोष ने बकायदा ट्विटर पर ऐलान किया था कि यह उनकी विचारधारा के लोगों ने किया है।

इन विवादों के कारण प्रधानमंत्री ने कहा, विचराधारा देश के प्रति होनी चाहिए पर देश के खिलाफ नहीं। वे आगे कहते हैं, राष्ट्रहित से ज्यादा प्राथमिकता अपनी विचारधारा को देने से सबसे ज्यादा नुकसान लोकतंत्र को पहुंचा है। मेरी विचारधारा के हिसाब से ही देशहित के बारे में सोचूंगा, ये रास्ता सही नहीं, गलत है। आज हर कोई अपनी विचारधारा पर गर्व करता है। हमारी विचारधारा राष्ट्रहित के विषयों में राष्ट्र के साथ नजर आनी चाहिए, राष्ट्र के खिलाफ नहीं।

विचारधारा के उपर चर्चा करते हुए पीेएम कहते हैं, आइडियाज की शेयरिंग को, विचारों के प्रवाह को अविरल बनाए रखना है, कभी सूखने नहीं देना है। हमारा देश वो महान भूमि है, जहां अलग-अलग बौद्धिक विचारों के बीज फलते-फूलते हैं। आप जैसे युवाओं के लिए इस परंपरा को कायम रखना जरूरी है। भारत इसी परंपरा के कारण दुनिया का सबसे वायब्रेंट लोकतंत्र है। 

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