अयोध्या में विवादित स्थल पर राम मंदिर निर्माण को लेकर आवाज तेज हो रही है। सुप्रीम कोर्ट में फैसला लंबित होने के बाद भी राजनेता इस मुद्दे को भूनाने की पूरी कोशिश में लगे हैं, लगातार राम मंदिर को लेकर बयानबाजी हो रही है। वहीं इस बीच दिल्ली में ‘Towards Peace, Harmony and Happiness: Transition to transformation’ विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश के हालात को लेकर चिंता प्रकट की है। उन्होंने कहा कि देश इस वक्त बुरे दौर से गुजर रहा, जहां असहिष्णुता काफी बढ़ गई है।

पूर्व राष्ट्रपति ने कहा, ‘जिस धरती ने दुनिया को वसुधैव कुटुंबकम और सहिष्णुता, स्वीकार्यता और क्षमा के सभ्यतागत मूल्यों की अवधारणा दी, वह अब बढ़ती असहिष्णुता, गुस्से का इजहार और मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर खबरों में है। ‘ उन्होंने कहा, कि शांति और सौहार्द्र तब होता है जब कोई देश बहुलतावाद का सम्मान करता है, सहिष्णुता को अपनाता है और विभिन्न समुदायों के बीच सद्भावना को बढ़ावा देता है

पूर्व राष्ट्रपति मुखर्जी ने इसके साथ संविधान में बताए अनुसार संस्थानों और राज्य के बीच शक्ति के उचित संतुलन की जरूरत पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि संस्थानों की विश्वसनीयता बहाली के लिए सुधार संस्थानों के भीतर से होने चाहिए।

उन्होंने कहा कि पिछले 70 वर्षों में देश ने एक सफल संसदीय लोकतंत्र, एक स्वतंत्र न्यायपालिका और निर्वाचन आयोग, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, केंद्रीय सतर्कता आयोग तथा केंद्रीय सूचना आयोग जैसे मजबूत संस्थान स्थापित किए हैं, जो हमारे लोकतांत्रिक ढांचे को जीवंत रखते हैं और उन्हें संबल देते हैं।

मुखर्जी ने कहा कि देश को एक ऐसी संसद की जरूरत है जो बहस करे, चर्चा करे और फैसले करे, न कि व्यवधान डाले। एक ऐसी न्यायपालिका की आवश्यकता है जो बिना देरी के न्याय प्रदान करे। एक ऐसे नेतृत्व की जरूरत है जो राष्ट्र के प्रति समर्पित हो और उन मूल्यों की जरूरत है जो हमें एक महान सभ्यता बनाएं। उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसी सरकार की आवश्यकता है जो लोगों में विश्वास भरे और जो हमारे समक्ष उत्पन्न चुनौतियों से निपटने की क्षमता रखता हो।

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