मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की प्रदेश में पॉलीथीन और थर्माकोल पर प्रतिबंध की घोषणा से जहां प्लास्टिक प्रदूषण से राहत मिलेगी वहीं मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हारों के ठहरे हुए चाक को गति मिलेगी। एक समय था जब साल के बारहों महीने कुम्हारो का चाक चला करता था। उन्हें कुल्हड़, घड़ा, कलश, सुराही, दीये, ढकनी, आदि बनाने से फुर्सत नहीं मिलती थी। पूरा परिवार इसी से अच्छी कमाई कर लेता था, परंतु जब से थर्माकोल के पत्तल, दोने, प्लेट, चाय पीने के कप आदि का बाजार में प्रभुत्व बढ़ा कुम्हारों के चाक की रफ्तार धीमी पड़ गयी। आधुनिकता की चकाचौंध में यह कला अपने को मृत प्राय महसूस कर रही है। युवा वर्ग इनसे नाता तोड़ने को मजबूर हो गया है तो सरकारें भी इन्हें संजोए रखने के प्रति उदासीन हैं।

राजरूपपुर निवासी बदरी प्रजापति कहते हैं ”अपनी तो जिंदगी चाक हुई, समय के थपेड़ों से।” उन्होंने बताया कि एक समय ‍वह भी था जब ये चाक निरंतर चलते रहते थे। कुम्हार एक-से-एक सुंदर एवं कलात्मक कृतियां गढ़ कर प्रफुल्लित और गौरवान्वित हो उठता था। आज ऐसा समय है, जब किसी को उसकी आवश्यकता नहीं है। मिट्टी के बर्तन को मूर्त रूप देना एक दुर्लभ कला है। परंतु इस विद्या में पारांगत कुम्हारों की कला विलुप्त होने के कगार पर खड़ी है।New hope of life in potters from Restriction on the polyethylene of CM Yogi

बदरी ने बताया कि पहले त्योहारों के अवसर पर उनके द्वारा बनाये गये मिट्टी के पात्रों का इस्तेमाल तो होता ही था, शादी विवाह और अन्य समारोहों में भी अपनी शुद्धता के चलते मिट्टी के पात्र चलन में थे। चाय की दुकानें तो इन्हीं के कुल्हडों से गुलजार होती थीं। आज के प्लास्टिक और थर्माकोल के गिलासों की तरह कुल्हडों से पर्यावरण को भी कोई खतरा नहीं था।

उन्होंने बताया कि आधुनिकता की चकाचौंध ने सब उलट-पुलट कर रख दिया। कुम्हार अपनी कला से मुंह मोड़ने को मजबूर हो चुका है। युवा वर्ग तो अब इस कला से जुड़ने की बजाय अन्य रोजगार अपनाना श्रेयस्कर समझता है। उसे चाक के साथ अपनी जिंदगी खाक करने का जरा भी शौक नहीं है। इसके सहारे अब तो दो वक्त की रोटी का जुगाड़ भी मुश्किल से हो पाता है। मिट्टी के पात्रों की जगह पूरी तरह से प्लास्टिक उद्योग ले चुका है, चाय की दुकान हो या दीपावली का त्योहार।New hope of life in potters from Restriction on the polyethylene of CM Yogi

बदरी ने बताया कि सीएम योगी के इस सहृदयता भरे कदम का पूरा प्रजापति समूह स्वागत करता है। इनके पॉलीथीन और थर्माकोल बन्द की घोषणा से एक बार फिर कुम्हारों में जीने की आस और पैतृक धरोहर को संवारने में बल मिलेगा। उन्होंने बताया कि अब वक्त है जब हम सब मिलकर, अपने-अपने सामर्थ्य के अनुसार अपना सार्थक योगदान देकर इस कला को बचाने का प्रयास करें। उन्होंने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया है कि जिस प्रकार उन्होंने यह साहसिक कदम उठाया है उसी प्रकार कुम्हारों के पारंपरागत व्यवसाय को बचाने के लिए सुरक्षा प्रदान करें। उन्होंने कुम्हारी व्यवसाय को नयी संजीवनी देने की अपील की है।

इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पास कटरा क्षेत्र के रहने वाले 65 वर्षीय हरखूराम प्रजापति ने बताया कि शहर में करीब 250 परिवार कुम्हारी का व्यवसाय कर रहे हैं। हरखू ने बताया कि अब तो कुम्हार गुल्लक, भाड़, छोटे खिलौने तक ही सीमित रह गये है। कुछ तो दूसरों से खरीद कर माल बेचने का काम करते हैं। मुख्यमंत्री का फरमान सचमुच कारगर रहा तो कुम्हारों के दिन बहुरने में देरी नहीं लगेगी, नहीं तो वही ढ़ाक के तीन पात वाली कहावत परितार्थ होगी।

उन्होंने कहा कि इससे पहले भी कई बार पॉलीथीन पर प्रतिबंध लग चुका है लेकिन सरकारें प्लास्टिक पर बैन तो लगा देती हैं, लेकिन उसके अमल पर ठीक से ध्यान नहीं देती, इसलिए प्रतिबंध के बावजूद कुछ नहीं बदलता। उन्होंने दर्द के साथ बताया कि कोई अपना पैतृक कारोबार यूं ही नहीं छोड़ता जबतक उसके सामने बड़ी परेशानी नहीं आती। आज प्लास्टिक और थर्मोकोल के बाजार ने कुम्हारों की रीढ़ तोड़ दी है। उन्होने कहा सरकार तमाम मृत प्राय रोजगारों को पुर्नजीवित कर रही है, कुम्हारी व्यवसाय की तरफ भी ध्यान देकर इसे जीवित कर सकती है।

साभार- ईएनसी टाईम्स

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