आजमगढ़ के मुबारकपुर थाना क्षेत्र के ढ़कवा गांव में सन् 1900 ई0 में जन्मे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के अंगरक्षक और चालक रहे कर्नल निज़ामुद्दीन का 117 वर्ष की अवस्था में आज निधन होने के साथ ही एक युग का अंत हो गया। कर्नल निज़ामुद्दीन ने देश सेवा और देश प्रेम के ज़ज़्बे के साथ स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

निज़ामुद्दीन की शिक्षा दीक्षा किसी स्कूल में न होकर घर पर ही हुई थी। निज़ामुद्दीन का बचपन गांव में ही गुजरा था। 22-23 साल की उम्र में घर से बिना बताये वह सिंगापुर चले गये। सिंगापुर में रह कर उनके पिता इमाम अली कैंटीन चलाते थे। सिंगापुर पहुंच कर पिता जी के कामों में हाथ बंटाने लगे। वहां से भी कुछ सालों बाद बिना बताये चले गये, और ब्रिटिश आर्मी में भर्ती हो गये। वहां ब्रिटिश आर्मी और जापान के बीच युद्ध चल रहा था। युद्ध के दौरान ब्रिटिश आर्मी के चीफ ने अपने फौज के सिपाहियों को निर्देश देते कहा कि इण्डियन मर जाये परन्तु ब्रिटिश खच्चर भी नहीं मरना चाहिए।

यह सुनना था कि कर्नल निजामुद्दीन वहां से बगावत करके सीधे नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के पास पहुंचे और अपनी व्यथा सुनाई। सुभाष चन्द्र बोस इनकी व्यथा सुनकर दुखी हुए और इन्हें आज़ाद हिन्द फौज में भर्ती कर लिया गया। नेताजी ने इनसे प्रभावित होकर बाद में इनको अपना अंगरक्षक नियुक्त किया। नेताजी के साथ ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दुंगा’ का नारा लगाने वालों में कर्नल भी शामिल थे। नेता जी के साथ इन्होंने कई देशों का भ्रमण भी किया।

कर्नल निज़ामुद्दीन ने नेता जी के साथ एक लम्बा समय गुज़ारा और अपनी ईमानदारी और बहादुरी की बदौलत आज़ाद हिन्द फौज में बहुत बड़ा योगदान  दिया। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस के साथ कर्नल निज़ामुद्दीन ने बर्मा में सीतान नदी के किनारे आखिरी समय गुज़ारा था। सन् 1947 ई0 में नेताजी के कहने पर साथ छोड़ कर वह भूमिगत् हो गये। उसके बाद वे छुप-छुप कर रहने लगे सन् 1969 ई0 में अपने गांव ढ़कवा का रूख किया। यहां पर भी वे अपनी पहचान छुपा कर ही रहते रहे। केवल परिवार के लोग ही जानते थे।

निज़ामुद्दीन के जीवन की घटनाओं के सम्बन्ध में एक पुस्तक ‘दी कर्नल निज़ामुद्दीन‘ लिखी गयी है, परन्तु इसका विमोचन अभी तक नहीं हुआ है। 

कर्नल निज़ामुद्दीन के जनाज़े में भारी संख्या में लोग शरीक हुये शोक संवेदना व्यक्त करने वालों में आम जन मानस के अलावा प्रशासनिक अमला व राजनेताओं का भी आना शुरू हो गया। इस दौरान क्षेत्र के हज़ारों लोगों के अतिरिक्त राजनेता भी शामिल हुये। निधन के पश्चात् वह अपने पीछे अपना भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं। सूचना के बाद डीएम, एसपी समेत भारी भीड़ उन्हें अंतिम विदाई देने उमड़ पड़ी। उनके दर्शन को पहुंचे जिलाधिकारी सुहास एलवाई ने कर्नल निजामुद्दीन की शख्शियत को याद किया और कहा कि अगर गाँव के लोग उनकी याद में गेट के निर्माण का आग्रह करेंगे तो यह प्रस्ताव आगे शासन स्तर पर भेजा जाएगा। 

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