क्या है चुनावी बांड और क्यों है ये चर्चा में? जानें हर सवाल का जवाब

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राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए Electoral Bonds की बिक्री का ऐलान, जानिए चुनावी बॉन्ड योजना के बारे में और इससे कैसे दे सकते हैं पार्टियों को चंदा - APN News
Electoral Bonds

सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संविधान पीठ राजनीतिक दलों को फंड देने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले चुनावी बांड की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। चुनावी बांड दान देने वालों की गोपनीयता बनाए रखती हैं। वैसे तो राजनीति में काले धन को रोकने के मकसद से चुनावी बांड की शुरुआत की गई थी। लेकिन अब कहा जा रहा है कि बांडों से राजनीतिक-फंडिंग की पारदर्शिता खत्म हो जाएगी। इससे पहले केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि संविधान के मुताबिक मतदाताओं को राजनीतिक दलों की फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार नहीं है।

पूरी बहस को समझने के लिए हमें कुछ बुनियादी सवालों को समझना होगा। चुनावी बांड क्यों और कैसे जारी किये जाते हैं? उन्हें कौन खरीद सकता है? इन चुनावी बांडों से राजनीतिक दलों को धन का कितना हिस्सा मिलता है? क्या चुनावी बांड ने राजनीतिक दलों की फंडिंग को और अधिक पारदर्शी बनाया है या नहीं?

चुनावी बांड क्या हैं?
सरकार ने 2018 में चुनावी बांड की शुरुआत की थी। जनवरी 2018 में वित्त मंत्रालय ने कहा था कि सरकार ने राजनीतिक फंडिंग की प्रणाली को साफ करने के लिए योजना की शुरुआत की है। इन बांडों के पीछे की अवधारणा राजनीति में काले धन के प्रभाव को कम करना और व्यक्तियों और निगमों को राजनीतिक दलों को योगदान देने के लिए एक कानूनी और पारदर्शी तंत्र प्रदान करना था। वित्त मंत्रालय ने 2018 में कहा था कि चुनावी बांड एक ‘बियरर इंस्ट्रुमेंट’ होगा यानी इसके स्वामित्व की कोई जानकारी दर्ज नहीं की जाएगी और दस्तावेज़ धारक को मालिक माना जाएगा।

ये बांड कौन और कहां से खरीद सकता है?

चुनावी बांड ब्याज मुक्त बैंकिंग साधन हैं और भारत का नागरिक या देश में निगमित निकाय इन्हें खरीदने के लिए पात्र हैं। ये बांड भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) की शाखाओं में 1,000 रुपये से लेकर 1 करोड़ रुपये तक की रेंज में उपलब्ध हैं। चुनावी बांड केवल बैंक खाते से भुगतान करके ही खरीदा जा सकता है। वित्त मंत्रालय ने कहा है कि बांड पर प्राप्तकर्ता का नाम नहीं होगा और इसकी अवधि केवल 15 दिनों की होगी, जिसके दौरान इसका उपयोग कुछ मानदंडों को पूरा करने वाले राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जा सकता है। वहीं राजनीतिक दल केवल तय किए गए बैंक खातों के माध्यम से बांड भुना सकते हैं।

वित्त मंत्रालय ने 2018 में कहा था कि चुनावी बांड जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में 10 दिनों की अवधि के लिए खरीद के लिए उपलब्ध होंगे। इसके अलावा अतिरिक्त 30 दिनों की अवधि आम चुनाव वाले साल में उपलब्ध होगी।

क्या चुनावी बांड फंडिंग प्रणाली में पारदर्शिता कम करते हैं?

चुनावी बांड के समर्थकों का तर्क है कि वे यह सुनिश्चित करके पारदर्शिता को बढ़ावा देते हैं कि राजनीतिक दलों को औपचारिक बैंकिंग चैनलों के माध्यम से दान प्राप्त होता है, जिसका सरकारी अधिकारियों द्वारा ऑडिट किया जा सकता है। इसके अलावा, दानदाताओं की पहचान गोपनीय रहती है, जिससे उनकी राजनीतिक संबद्धता के लिए प्रतिशोध या धमकी का जोखिम कम हो जाता है।

हालांकि, अपनी शुरुआत के बाद से ही चुनावी बांड विवाद का विषय रहे हैं। कई लोगों ने सवाल उठाया है कि जिस मकसद से इनकी शुरुआत की गई थी वह पूरा हो रहा है या नहीं? कहीं इनके चलते फंडिंग में पारदर्शिता कम तो नहीं हुई है? चुनावी बांड की मुख्य आलोचनाओं में से एक धन के स्रोत के संबंध में पारदर्शिता की कमी है।

दानकर्ता की पहचान जनता या चुनाव आयोग के सामने उजागर नहीं की जाती है, जिससे राजनीतिक योगदान के स्रोत का पता लगाना मुश्किल हो जाता है। इस अपारदर्शिता ने यह चिंता पैदा कर दी है कि चुनावी बांड का इस्तेमाल राजनीतिक व्यवस्था में काले धन को सफेद करने के लिए किया जा सकता है।

2017 में, तत्कालीन भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के गवर्नर उर्जित पटेल ने चुनावी बांड के दुरुपयोग की संभावना के बारे में बात की थी, खासकर शेल कंपनियों के उपयोग के माध्यम से। यह भी देखा गया है कि सत्ता में रहने वाली पार्टी को अधिकांश फंडिंग मिलती है और चुनावी बांड प्रणाली की शुरुआत के समय से अभी तक असमान फंडिंग को ठीक नहीं किया जा सका है। आलोचकों का तर्क है कि यह लोकतांत्रिक चुनावों में समान अवसर के सिद्धांत को कमजोर करता है।

चुनावी बांड और फंडिंग का हिस्सा

रिपोर्ट्स के मुताबिक, मार्च 2018 से जुलाई 2023 के बीच कई राजनीतिक दलों को 13,000 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 और 2022 के बीच 9,208 करोड़ रुपये के चुनावी बांड बेचे गए और बीजेपी ने कुल धन का 58 प्रतिशत हासिल किया।

जनवरी 2023 में चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला कि 2021-22 में चुनावी बांड के माध्यम से चार राष्ट्रीय राजनीतिक दलों – भाजपा, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) ने अपनी कुल आय का 55.09 प्रतिशत (1811.94 करोड़ रुपये) प्राप्त किया।

बीजेपी को 2021-22 में चुनावी बांड के माध्यम से दान का बड़ा हिस्सा प्राप्त हुआ, उसके बाद तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) और कांग्रेस को मिला। मार्च 2023 में एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, सात राष्ट्रीय दलों की कुल आय का 66 प्रतिशत से अधिक चुनावी बांड और अज्ञात स्रोतों से आया था।

सात राष्ट्रीय पार्टियां बीजेपी, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी), सीपीआई, सीपीआई (एम) और मेघालय स्थित नेशनल पीपुल्स पार्टी थीं। सात पार्टियों ने 2021-22 में अज्ञात स्रोतों से 2,172 करोड़ रुपये प्राप्त किए और उस आय का 83 प्रतिशत (1,811.94 करोड़ रुपये) चुनावी बांड के माध्यम से आया।

चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन एडीआर ने कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट में घोषित आय का स्रोत नहीं बताया गया है। भारत में राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने के इरादे से चुनावी बांड पेश किए गए थे। हालांकि, इन्हें लेकर विवाद बरकरार है। जबकि चुनावी बांड ने राजनीतिक दलों के लिए औपचारिक चैनलों के माध्यम से धन प्राप्त करना संभव बना दिया है। पारदर्शिता और जवाबदेही से जुड़ी चिंताओं का अभी समाधान नहीं किया गया है।

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