‘गाय हमारी माता है जो इन्हें न पहचान पाए उन्हें कुछ नहीं आता है’। ये वचन बिल्कुल सत्य है क्योंकि गायों से सिर्फ दूध उगाही करके उन्हें बाद में भटकते हुए छोड़े देने वालों को नगर निगम ने करारा जवाब दिया है। दरअसल, दूध नहीं दे पाने की स्थिति में जिन गायों को किसानों और गौपालकों ने अनुपयोगी समझकर लावारिस भूखा-प्यासा भटकने के लिए छोड़ दिया था। अब उन्हीं गायों के गोबर और पेशाब से नगर निगम की लालटिपारा गौशाला में कैचुआ खाद, नैचुरल खाद और धूपबत्ती बनाई जा रही है। इससे नगर निगम को भी अभी तक करीब 3 लाख रुपए का आर्थिक लाभ हो चुका है। बता दें कि समाज में यह हर जगह देखा जाता है कि बेकार गायों औऱ भेसों को उनके मालिक बेसहारा छोड़ देते हैं।
हिंदू धर्म और शास्त्रों में गाय को माता का दर्जा दिया गया है इसलिए इसके गोबर और मूत्र को भी पवित्र माना जाता है। आयुर्वेद में गौमूत्र के प्रयोग रामवाण औषधी के रूप में किया जाता है। इससे दवाइयां भी तैयार की जाती हैं। गौमूत्र के नियमित सेवन से बड़े-बड़े रोग तक दूर हो जाते हैं। गाय का मूत्र विष नाशक, जीवाणु नाशक, शक्ति से भरा और जल्द ही पचने वाला होता है। गौमूत्र से लगभग 108 रोग ठीक होते हैं। गौमूत्र के प्रयोग से बड़े-बड़े रोग जैसे, दिल की बीमारी, मधुमेह, कैंसर, टीबी, मिर्गी, एड्स और माइग्रेन आदि को भी ठीक किया जा सकता है।
नगर निगम की लालटिपारा गौशाला में करीब 6000 गाय हैं, इन गायों से प्रतिदिन नगर निगम को 60 हजार किलो गोबर मिलता है। इस गोबर का नगर निगम ने कई तरह से उपयोग करना शुरू कर दिया है। वहीं गाय की पेशाब जिसका अभी तक कोई उपयोग नहीं होता था उससे वहां पर अब फिनाइल के स्थान पर गौनाइल बन रहा है, जो फिनाइल से भी बेहतर कार्य करता है। साथ ही पेशाब से बनने वाले कीटनाशकों का उपयोग खेती में किया जा रहा है।