2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मोदी कैबिनेट ने बड़ा फैसला लिया है। सोमवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में फैसला किया गया है कि अब सवर्ण जातियों को 10 फीसदी आरक्षण दिया जाएगा। ये आरक्षण आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को दिया जाएगा।

बता दें कि 2018 में SC/ST एक्ट को लेकर जिस तरह मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलट दिया था, उससे सवर्ण खासा नाराज बताया जा रहा था। दलितों के बंद के बाद सवर्णों ने भी भारत बंद का आह्वान किया था।

मंगलवार को संसद के शीतकालीन सत्र का आखिरी दिन है माना जा रहा है इसी दिन मोदी सरकार संविधान संशोधन बिल संसद में पेश कर सकती है।

इन्हें मिलेगा लाभ?

जिनकी सालाना आय 8 लाख से कम हो
जिनके पास 5 लाख से कम की खेती की जमीन हो
जिनके पास 1000 स्क्वायर फीट से कम का घर हो
जिनके पास निगम की 109 गज से कम अधिसूचित जमीन हो
जिनके पास 209 गज से कम की निगम की गैर-अधिसूचित जमीन हो

मोदी सरकार ये आरक्षण आर्थिक आधार पर ला रही है, जिसकी अभी संविधान में व्यवस्था नहीं है। संविधान में जाति के आधार पर आरक्षण की बात कही गई है, ऐसे में सरकार को इसको लागू करने के लिए संविधान में संशोधन करना होगा। सरकार के इस फैसले को लोकसभा चुनाव से जोड़ते हुए देखा जा रहा है। सरकार इसके लिए जल्द ही संविधान में बदलाव करेगी। इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 16 में बदलाव किया जाएगा। दोनों अनुच्छेद में बदलाव कर आर्थिक आधार पर आरक्षण देने का रास्ता साफ हो जाएगा।

मौजूदा आरक्षण की स्थिति

कुल आरक्षण – 49.5%
अनुसूचित जाति (SC)-15%
अनुसूचित जनजाति (ST)-7.5 %
अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC)-27 %

फैसले के बाद राजनीतिक दलों ने दी प्रतिक्रियाएं

कांग्रेस का कहना है कि इस प्रकार के आरक्षण पर काफी तकनीकि दिक्कतें हैं, लोकसभा चुनाव से पहले इस प्रकार आरक्षण देने का क्या मकसद है ये भी देखना होगा। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर बिल आने और पास होने में काफी समय लग सकता है। सरकार इस मुद्दे को लेकर सीरियस नहीं है।

केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने इस फैसले का स्वागत किया है। उनका कहना है कि सरकार का ये फैसला काफी अच्छा है, इससे समाज के एक बड़े तबके को लाभ होगा। उन्होंने कहा कि सवर्णों में भी कई ऐसे लोग हैं जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं।

आम आदमी पार्टी के नेता व राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने ट्वीट कर इस फैसले पर सरकार का साथ देने का एलान किया है। हालांकि अपने ट्वीट में संजय सिंह सरकार पर निशाना साधने से भी नहीं चूके। उन्होंने कहा, ‘10% आरक्षण बढ़ाने के लिये संविधान संशोधन करना होगा सरकार विशेष सत्र बुलाये हम सरकार का साथ देंगे वरना ये फ़ैसला चुनावी जुमला मात्र साबित होगा।’

कब-कब हुआ है खारिज?

अप्रैल, 2016 में गुजरात सरकार ने सामान्य वर्ग में आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी। सरकार के इस फैसले के अनुसार 6 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले परिवारों को इस आरक्षण के अधीन लाने की बात कही गई थी। हालांकि अगस्त 2016 में हाईकोर्ट ने इसे गैरकानूनी और असंवैधानिक बताया था।

सितंबर 2015 में राजस्थान सरकार ने अनारक्षित वर्ग के आर्थिक पिछड़ों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 14 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया था। हालांकि दिसंबर, 2016 में राजस्थान हाईकोर्ट ने इस आरक्षण बिल को रद्द कर दिया था। ऐसा ही हरियाणा में भी हुआ था।

1978 में बिहार में पिछड़ों को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर ने आर्थिक आधार पर सवर्णों को तीन फीसदी आरक्षण दिया था। हालांकि बाद में कोर्ट ने इस व्यवस्था को खत्म कर दिया।

1991 में मंडल कमीशन रिपोर्ट लागू होने के ठीक बाद पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया था और 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की थी। हालांकि 1992 में कोर्ट ने उसे निरस्त कर दिया था।

आरक्षण का इतिहास

1935- भारत सरकार अधिनियम 1935 में आरक्षण का प्रावधान किया गया।
1942 – बी आर अम्बेडकर ने अनुसूचित जातियों की उन्नति के समर्थन के लिए अखिल भारतीय दलित वर्ग महासंघ की स्थापना की। उन्होंने सरकारी सेवाओं और शिक्षा के क्षेत्र में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की मांग की।
1991- नरसिम्हा राव सरकार ने अलग से अगड़ी जातियों में गरीबों के लिए 10% आरक्षण शुरू किया।
1992- इंदिरा साहनी मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण को सही ठहराया।
2006 से केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण शुरू हुआ। कुल आरक्षण 49.5% तक चला गया।
2007- केंद्रीय सरकार के शैक्षिक संस्थानों में ओबीसी (OBC) आरक्षण पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन दे दिया।

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