क्‍या है मैतेई और कुकी समुदाय का इतिहास… आखिर दोनों समुदायों के बीच किस विवाद की आग में झुलस उठा मणिपुर?

Manipur Violence: मैतेई और कुकी समुदाय के बीच क्या है विवाद... यहां जानिए, खूबसूरत राज्य में कैसे पनपे नफरत के बीज?

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Manipur violence: Who are Meiteis and Kukis? What are they fighting over?
Manipur violence: Who are Meiteis and Kukis? What are they fighting over?

Manipur Violence: मणिपुर की आबादी लगभग 28 लाख है। मणिपुर का करीब 10 फीसदी इलाका ही घाटी में आता है और बाकी 90 फीसदी इलाका पहाड़ी है। यहां मुख्य रूप से तीन समुदाय हैं- मैतेई, नागा और कुकी। नागा और कुकी आदिवासी समुदाय कहलाते हैं जबकि, मैतेई गैर आदिवासी समुदाय है। मैतेई हिंदु हैं जबकि नागा और कुकी में ज्यादातर ईसाई हैं और उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा मिला हुआ है। वहीं मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का विरोध कर रही जनजातियों में कुकी एक जातीय समूह है, जिसमें 23 मान्यता प्राप्त जनजातियां शामिल हैं। मणिपुर में हो रही इन हिंसक घटनाओं ने राज्य के मैदानी इलाकों में रहने वाले मैतेई समुदाय और पहाड़ी जनजातियों के बीच की पुरानी जातीय दरार को फिर से खोल दिया है।

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Manipur Violence: मैतेई और कुकी समुदाय की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

इन दोनों के बीच के विवाद को जानने के लिए इनके ऐतिहासिक पहलुओं को समझना भी जरूरी है। मणिपुर की जनसंख्या 2011 की जनगणना के मुताबिक 28,55,794 है। पूरा राज्य 22,327 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। मणिपुर में मैतेई समुदाय के अस्तित्व को देखें तो उनकी आबादी राज्य की कुल आबादी की 64.6 फीसदी है। यहां मैतेई समुदाय के 90 फीसदी लोग पहाड़ी इलाकों में रहते हैं। ये लोग मुख्य रूप से इम्फाल घाटी में बसे हैं। अधिकांश मैतेई लोग हिंदू धर्म को मानते हैं, माना जाता है कि 17वीं और 18वीं सदी में उन्होंने हिंदू धर्म अपनाया था। मैतेई समुदाय की भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है। मैतेई समुदाय दावा करता है कि वो मणिपुर में सदियों से रह रहे हैं। इसी वजह से उनकी मांग है कि उन्हें आदिवासी का दर्जा मिले। बता दें, मैतेई राजाओं का राज एक वक्त म्यांमार में छिंदविन नदी से लेकर मौजूदा बांग्लादेश के सूरमा नदी तक फैला था लेकिन भारत में शामिल होने के बाद वो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 9 फीसदी भूभाग पर ही सिमट कर रह गए हैं। इस समुदाय का बड़ा हिस्सा हिंदू गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय को मानता है। वहीं, स्थानीय सानामाही धर्म के मैतेई अनुयायी 16 फीसदी हैं। राज्य की कुल 60 विधानसभा सीटों में से 40 विधायक मैतेई समाज के हैं। इसी बात से इनके राजनीतिक प्रभाव का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस समुदाय का दावा है कि म्यांमार और बांग्लादेश में बड़े पैमाने पर अवैध अप्रवासन बढ़ रहा है। इसका असर उन पर पड़ रहा है।

वहीं, मणिपुर की कुकी जनजातियां, मुख्य रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में ही रहती हैं। ये वर्तमान में राज्य की कुल 28.5 लाख लोगों की आबादी का 30 फीसदी हिस्सा हैं। भारतीय संघ में विलय से पहले मणिपुर एक रियासत हुआ करती थी। इसे वर्ष 1972 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। शुरुआती दौर में मणिपुर में एक स्वतंत्र राज्य की मांग को लेकर आंदोलन छेड़ा गया था जोकि राज्य की स्थापना के साथ खत्म भी हो गया था लेकिन वर्ष 1978 में यहां फिर हिंसक आंदोलन शुरू हुआ और लोगों ने विकास और पिछड़ेपन की बात कहकर भारतीय गणराज्य से अलग होने की मांग की जाहिर की। कुकी जनजाति के लोग हमेशा से एक अलग राज्य की मांग करते आए हैं। इस समुदाय के कुछ लोग एक उग्रवादी संगठन मणिपुर पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट के अधीन में काम करते हैं। कुकी की लगभग 50 जनजातियों को अनुसूचित जनजाति यानि ST की श्रेणी में रखा गया है। ये जनजाति अरुणाचल प्रदेश को छोड़कर लगभग हर उत्तरपूर्वी राज्य में पाई जाती है। कुकी जनजाति का इतिहास वैसे तो बहुत प्राचीन है लेकिन लगभग 33 ई. के आसपास के दो कुकी राजाओं का उल्लेख इतिहास में देखा गया है। ऐसा माना जाता है 18वीं शताब्दी के अन्त में कुकी म्यांमार से मणिपुर में आये थे और वहीं पर आस-पास के गांवों में बस गए थे।

मैतेई क्यों कर रहे हैं अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग?

मणिपुर में जारी हिंसा की वजह मैतेई और कुकी समुदाय के बीच दुश्मनी है। इसे कब्जे की जंग भी कह सकते हैं। बता दें, राजधानी इम्फाल को घाटी वाला इलाका कहा जाता है। दरअसल यहां मैतेई समुदाय की आबादी करीब 53 फीसद है। राज्य में 60 विधायको में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से आते हैं। मैतेई लोग सिर्फ घाटी में बस सकते हैं। दूसरी ओर कुकी समुदाय के लोगों की आबादी 40 फीसदी के आसपास है और वो पहाड़ी इलाको में बसे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि मणिपुर में एक कानून है, जो कहता है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371C के तहत पहाड़ी जनजातियों को विशेष दर्जा दिया गया है। ये सुविधाएं घाटी में रहने वाले मैतेई समुदाय को हासिल नहीं हैं। यहां तक कि ‘लैंड रिफॉर्म एक्ट’ की वजह से मैतेई समुदाय पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदकर नहीं बस सकते हैं, वहां सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं। मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है। इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते जबकि कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में जाकर रह सकते हैं। मैतेई और कुकी के बीच विवाद की यही असल वजह है। इसलिए मैतेई ने भी खुद को अनुसूचित जाति का दर्जा दिए जाने की मांग की थी।

क्या है राज्य में जारी तनाव की असल वजह?

ताजा बवाल यूं शुरू हुआ कि हाल ही में मणिपुर हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस एमवी मुरलीधरन ने एक आदेश पारित किया था। इस आदेश में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह चार हफ्तों के अंदर मैतेई समुदाय को आरक्षित श्रेणी में शामिल करने के अनुरोध पर विचार करे और केंद्र सरकार को भी सिफारिश भेजे। कोर्ट ने कहा कि 10 साल पुरानी केंद की सिफारिश को लागू करें जिसमें गैर-जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी। हाईकोर्ट ने मई 2013 में जनजाति मंत्रालय के एक पत्र का जिक्र करते हुए यह आदेश जारी किया था। इस पत्र में मणिपुर की सरकार से सामाजिक और आर्थिक सर्वे के साथ जातीय रिपोर्ट के लिए कहा गया था।

बता दें, शेडयूल ट्राइब डिमांड कमिटी ऑफ मणिपुर (SDCM) 2012 से ही ये मांग करता आया है कि मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिया जाए। मालूम हो कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ था। उससे पहले मैतेई को जनजाति का दर्जा प्राप्त था लेकिन भारत में विलय के बाद उनकी पहचान समाप्त हो गई थी। 19 अप्रैल के इस आदेश ने मैतेई और पहाड़ी जनजातियों के बीच पुराने संघर्ष को फिर से छेड़ दिया। गौरतलब है कि इसी विरोध के चलते ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर (ATSUM) ने चुराचांदपुर जिले के तोरबंग क्षेत्र में ‘ट्राइबल सॉलिडेरिटी मार्च’ निकाला था और इसी एकता मार्च के दौरान हिंसा भड़की थी जिसने मणिपुर को आग में झोंक दिया।

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क्या हैं मैतेई और कुकी समुदाय के तर्क?

मैतेई समुदाय को ST का दर्जा दिए जाने की मांग करने वाले संगठन का कहना है कि ये सिर्फ नौकरियों या शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का मुद्दा नहीं है बल्कि ये पैतृक जमीन, संसकृति और पहचान का मामला है। संगठन का कहना है कि मैतेई समुदाय को म्यांमार और आसपास के पड़ोसी राज्यों से आने वाले अवैध प्रवासियों से खतरा है। मैतेई समुदाय की सबसे बड़ी शिकायत है कि पहाड़ी इलाकों में बसे लोग मैदानी इलाकों में आकर बस सकते हैं लेकिन मैतेई लोग वहां बस नहीं सकते। इसके अलावा उनका कहना है कि कृषि भूमि में जनजातीय लोगों का दबदबा रहा है। इस तरह की बातों को लेकर ये पूरा टकराव है।

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दूसरी ओर, ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन का कहना है कि मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा कैसे दिया जा सकता है, अगर उन्हें अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा मिला तो वो सारी जमीन हथिया लेंगे। विरोध कर रही जनजातियों का ये भी कहना है कि मैतेई समुदाय को पहले से ही एससी और ओबीसी के साथ आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग का आरक्षण मिला हुआ है। ऐसे में मैतेई सबकुछ अकेले हासिल नहीं कर सकते। मैतेई आदिवासी नहीं हैं, वे एससी, ओबीसी और ब्राह्मण हैं। विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि अगर मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दे दिया गया तो उनकी जमीनों के लिए कोई सुरक्षा नहीं बचेगी और इसलिए वो अपने अस्तित्व के लिए छठी अनुसूची चाहते हैं। कुकी समुदाय ये भी दावा कर रहा है कि राज्य में मौजूदा हालात उनके समुदाय को पहाड़ी हिस्सों से हटाने के लिए पैदा किए गए। अब कुकी समुदाय मणिपुर को दो भागों में विभाजित करने की मांग कर रहा है। उनका कहना है कि जब मैतेई जनजाति से अलग पहाड़ी समुदाय के लिए एक नया राज्य बनाया जाएगा तभी ये हिंसा थमेगी।

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देखा जाए तो ये मामला सिर्फ मैतेई समुदाय को ST वर्ग में शामिल करने का नहीं है। मैतेई बनाम कुकी जनजातियों के बीच हिंसा की एक वजह एनआरसी लागू करने की मांग को भी माना जाता है। मैतेई समुदाय के लोगों का कहना है कि 1970 के बाद पर यहां कई रिफ्यूजी आए हैं। इसकी गणना की जाए और यहां पर एनआरसी लागू किया जाए। आंकड़े बताते हैं कि इनकी आबादी 17 प्रतिशत से बढ़कर 24 फीसदी हो गई है। साथ ही, दोनों के बीच कौन बाहरी है और कौन मूल निवासी, यह भी विवाद की वजहों में से एक है।

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