कश्मीर के हालात काफी बिगड़ रहे हैं लेकिन इसके बावजूद आशा की कुछ किरणें उभर रही हैं। एक तरफ पत्थरफेंकू घटनाओं की तादाद बढ़ती जा रही है। चुनाव में हुआ मतदान बुरी तरह से घट गया है और पीडीपी-भाजपा गठबंधन तनाव के अंतिम छोर पर पहुंच गया है। दूसरी तरफ गृह मंत्री राजनाथ सिंह और राजस्थान की मुख्यमंत्री ने खुली अपील जारी की है कि कश्मीरी नागरिकों के साथ कोई बदसलूकी नहीं की जाए।

भारत के कई प्रांतों में रहने वाले कश्मीरियों को अपना भाई समझ कर उनके साथ सद्व्यवहार किया जाए। भाजपा के जिम्मेदार नेताओं की यह अपील बताती है कि वे सच्चे राष्ट्रवादी हैं और उनकी दृष्टि सांप्रदायिक नहीं है। जो सच्चा राष्ट्रवादी होता है, वह किसी भी भारतीय नागरिक को भेद-भाव की दृष्टि से नहीं देखता! उसके लिए सभी भारतीय मां के बेटे हैं। वे गुमराह नौजवान भी, जो घाटी में पत्थर बरसा रहे हैं।

उन पर गोलियां बरसाने की बजाय हमारे फौजियों ने नई तरकीब निकाल कर दोनों तरफ की जान और इज्जत, दोनों बचाई हैं। जीप पर बंधे कश्मीरी नौजवान को देख कर उधर से न पत्थर बरसते हैं और इधर से न गोलियां! राजनाथ सिंह की मार्मिक अपील पर लोग ध्यान देंगे तो जो लाखों कश्मीरी भारत के कोने-कोने में बसे हैं, वे सरकार के प्रति नरम तो पड़ेंगे ही, वे कश्मीर में अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को भारत के बारे में कुछ न कुछ अच्छी बातें ही कहेंगे।

जो लोग कश्मीरियों को वापस भेजने पर आमादा हैं, उनसे खास डरने की जरुरत नहीं है, क्योंकि ऐसे लोग एक तो बहुत गिने-चुने हैं और उनके समर्थक इस देश में नहीं के बराबर हैं लेकिन कागजी धमकी का असर पत्थरफेंकुओं पर जरूर होगा। वे डरेंगे। रुकेंगे। सोचेंगें। कश्मीरियों को, नागाओं को, मणिपुरियों को यानी सीमांत प्रांतों के लोगों को भारत के किसी भी हिस्से में कोई खतरा नहीं है। वे ठाठ से अपना काम करते रहें। जहां तक घाटी के बगावती माहौल का प्रश्न है, जम्मू-कश्मीर सरकार का गठबंधन लगभग असफल हो रहा है। इस मामले में केंद्र सरकार को ही कोई तगड़ी पहल करनी होगी। इस सरकार की दिक्क्त यह है कि इसके पास ऐसे प्रतिष्ठित लोगों का टोटा है, जो गरिमामय मध्यस्थता कर सकें।

डॉ. वेद प्रताप वैदिक   

Courtesy : http://www.enctimes.com

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