कितने घरों को फूंक गई ज्योति की ‘ज्वाला’? पढ़ें ज्योति-आलोक मौर्य की दास्तां की दूसरी किस्त…

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पति-पत्नी के बीच तकरार बेडरूम तक ही रहे तो बेहतर रहता है लेकिन ये पूरे देश में चर्चा का मुद्दा तब बन गया था, जब ज्योति मौर्य और आलोक मौर्य का किस्सा सामने आया था। इस बीच “बेटी पढ़ाओ पत्नी नहीं” जैसा सामाजिक वर्डिक्ट सुनने में आया। ऐसी खबरें भी देखने को मिलीं जहां यूपी में 135 शादीशुदा महिलाओं को उनके पतियों ने पढ़ने से रोक दिया, लेकिन बाद में फैक्ट चेक करने पर कहानी गलत पाई गई। हालांकि बिहार के बक्सर से सच में ऐसी खबर सामने आई।

ज्योति मौर्य और आलोक मौर्य की कहानी में हर शख्स अपनी मर्जी से निष्कर्ष निकाल रहा था। लेकिन इस पूरे मामले का जो असर समाज पर पड़ रहा था वो खतरनाक था। सोशल मीडिया पर पहले खबर आई कि यूपी में 135 शादीशुदा लड़कियों को उनके पतियों ने पढ़ाने से हाथ खड़े कर दिए क्योंकि उन्हें खतरा था कहीं वो भी आगे चलकर ज्योति मौर्य ना बन जाएं। लेकिन ये खबर बेबुनियाद थी इस बीच बिहार के बक्सर से आई हैरान करने वाली खबर आई।

एक महिला खुशबू कुमारी की शादी चौगाई के पिंटू सिंह से 2010 में हुई थी। तब खुशबू इंटर पास थी। शादी के बाद उसने ग्रेजुएशन किया फिर BPSC की तैयारी में लग गई। खुशबू एक बार BPSC सात-आठ नंबर से चूक गई थी। तब पति पिंटू ने ही उसकी हिम्मत बढ़ाई और पढ़ाई जारी रखने में पूरा सहयोग किया। लेकिन अब पिंटू डर गया और खुशबू की पढ़ाई रूकवा दी। जिसके बाद खुशबू थाने पहुंच गई। पुलिस वाले ने दोनों मियां बीवी को समझाया, लेकिन पढ़ाई पूरी होगी या नहीं या फिर खुशबू के अरमान ज्योति मौर्य मामले के चलते अधूरे रह जाएंगे ये तो ऊपर वाला ही जानता है।

ये कहानी क्या सिर्फ पति पत्नी और ‘वो’ की थी, या फिर ये कहानी अहसानफरामोशी की थी, या फिर ये महज सिर्फ एक पारिवारिक मामला था… जिसे टीआरपी और व्यूज के चक्कर में चैनलों और सोशल मीडिया ने उछाला, ज्योति और आलोक मौर्य की स्टोरी में एक सवाल जो दब गया वो नैतिकता का भी था। नैतिकता सिर्फ ज्योति और आलोक मौर्य की नहीं बल्कि समाज की भी और तमाम मीडिया चैनलों के साथ साथ सोशल मीडिया की भी थी।

एक परिवार के बिखरने की कहानी जब सोशल मीडिया पर हंगामा बरपा रही थी तब बेवफाई के किस्सों पर जब लोग चटखारे ले रहे थे। उस दौर में एपीएन न्यूज टीआरपी की भीड़ से परे आपके लिए ज्योति मौर्य और आलोक मौर्य मामले पर न केवल लीगल एक्सपर्ट्स की राय और सटीक विश्लेषण लेकर हाजिर हुआ था बल्कि हमने देशभर में एक हेल्दी बहस को भी जगह दी थी।

आलोक सही हैं या ज्योति मौर्य, ये अब कानून और पुलिस की जांच की जद में है, लेकिन इस बीच ज्योति मौर्य और आलोक मौर्य की शादी का साल 2010 का कार्ड वायरल हो गया। इसमें आलोक के नाम के साथ ग्राम पंचायत अधिकारी लिखा हुआ था। जबकि वो प्रयागराज में पंचायती राज विभाग में चतुर्थ श्रेणी के पद पर कार्यरत है। रिश्तों की इस पहेली में सवाल समाज पर है, नैतिकता पर है, ज्योति और आलोक की कहानी पर लोगों के क्या-क्या तर्क आ रहे थे इसको जानते हैं…

घर परिवार का एक मामला देखते ही देखते समाज का सबसे ज्वलंत मुद्दा बन गया। इन तर्कों में समाज के एक तबके की एकतरफा सोच भी दिखी। स्त्रीवादी और फेमिनिस्ट सोच के लोगों की राय में ये विमर्श खतरनाक हद तक स्त्रीविरोधी है। ज्योति मौर्य की दलील देकर तो पुरुषवादी मानसिकता के लोग पत्नियों को पढ़ाना ही छोड़ देंगे। ज्योति और आलोक मौर्य की कहानी उनकी निजी पीड़ा का दस्तावेज है। इसमें सही गलत कौन है इसका फैसला कोई तीसरा नहीं कर सकता। अब बात आती है एडलट्री की, ज्योति मौर्य और आलोक मौर्य की कहानी में एक एंगल ये भी आया था। एडल्ट्री यानी शादी के बंधन में रहने के बाद भी पति या पत्नी के विवाहेतर संबंध। किसी पर पुरुष या परस्त्री से संबंध। हमने इस बारे में लीगल एक्सपर्ट्स की राय भी ली थी।

एडल्ट्री एक अंग्रेजी शब्द है जिसका हिंदी मतलब जो तमाम शब्दकोशों में हमने देखा तो एक सबसे आम है, व्यभिचार। लेकिन शादीशुदा रिश्तों में एडल्ट्री का सीधा मतलब विवाहेतर रिश्ते से होता है। आलोक मौर्य इसी बिना पर ज्योति मौर्य के खिलाफ विभागीय कार्रवाई चाहते हैं। सोशल मीडिया पर जो कमेंट्स आ रहे हैं उनमें भी ज्योति मौर्य को सस्पेंड करने से लेकर बर्खास्त करने की मांग की जा रही है, लेकिन कानून तथ्यों से चलता है और कानून को तथ्यों से चलाने के लिए सीआरपीसी और आईपीसी की धाराएं हैं।

कानूनी रूप से ये साफ है कि ज्योति मौर्य पर ना तो क्रिमिनल एक्शन हो सकता है और ना ही एडल्ट्री के ग्राउंड पर विभागीय कार्रवाई। राजस्थान हाईकोर्ट ने मार्च 2019 में एडल्ट्री पर एक अहम फैसला दिया था जिसमें साफ कर दिया था कि राज्य सरकार विवाहेतर संबंधों के आधार पर किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ विभागीय कार्रवाई नहीं शुरू कर सकती। दरअसल 1999 में राजस्थान सरकार ने दो पुलिस अफसरों जिनमें एक महिला अफसर थी और दूसरा पुरुष अफसर पर कार्रवाई की थी। राज्य सरकार के इस फैसले के खिलाफ दोनों अफसरों ने रिट पेटीशन डाला था, उसी पर फैसला देते हुए हाईकोर्ट ने ये साफ कर दिया था कि विवाहेतर संबंध किसी भी सरकारी कर्मचारी पर विभागीय कार्रवाई का आधार नहीं हो सकता।

आगे जारी है…..

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