पहली बार निजी क्षेत्र के सहयोग से आठवें नौवहन उपग्रह के प्रक्षेपण के भारत का मिशन फेल हो गया है।  भारत के मिशन को उस वक्त झटका लगा जब ध्रुवीय रॉकेट से सटीक उड़ान भरने के बावजूद यह तकनीकी गड़बड़ी की वजह से विफल हो गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के प्रमुख ए एस किरन कुमार की मानें तो यह मिशन इसलिए असफल रहा क्योंकि उपग्रह से हीटशील्ड अलग नहीं हो सकी।

बता दें कि पहली बार उपग्रह के संयोजन और प्रक्षेपण में सक्रिय रूप से निजी क्षेत्र को लगाया गया था। इससे पहले निजी क्षेत्र की भूमिका उपकरणों की आपूर्ति तक सीमित थी। 1,400 किलोग्राम से ज्यादा वजन के IRNSS-1H का निर्माण इसरो के साथ मिलकर छह छोटी-मझौली कंपनियों ने किया था।

विफल मिशन को दुर्घटना करार देते हुये भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष किरन कुमार ने कहा कि IRNSS-1H  से हीट शील्ड अलग नहीं हुआ।  इसके फलस्वरूप ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान-पीएसएलवी-सी39 के चौथे चरण में उपग्रह फंस गया। कुमार ने कहा कि यह प्रक्षेपण मिशन सफल नहीं हुआ। प्रक्षेपण यान के सभी तंत्रों ने जहां शानदार तरीके से काम किया, हमसे एक दुर्घटना हुई पर हीट शील्ड अलग नहीं हुआ।

हालांकि इसरो की सफलता में PSLV की प्रमुख भूमिका रही है। इस वर्ष अंतरिक्ष में एक ही बार में 104 सैटलाइट की लॉन्चिंग भी शामिल है। भविष्य में भी इसरो मंगल ग्रह के दूसरे मिशन और चंद्रयान-2 जैसे प्रॉजेक्ट्स के लिए PSLV पर ही आश्रित है।  बता दें कि चंद्रयान-2 का काम तो अडवांस स्टेज तक पहुंच चुका है और इसका परीक्षण भी चल रहा है।

गौरतलब है कि भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली (IRNSS) एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली है, जिसे भारत ने अमेरिका के जीपीएस की तर्ज पर विकसित किया है।

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