एक वक्त में राजनीति से रिटायर हो चुके नरसिम्हा राव कैसे बने पीएम?

P. V. Narasimha Rao: पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भारत में आर्थिक सुधारों का पिता कहा जाता है। लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है...

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P. V. Narasimha Rao
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P. V. Narasimha Rao: पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भारत में आर्थिक सुधारों का पिता कहा जाता है। लेकिन उनके प्रधानमंत्री बनने की कहानी भी बेहद दिलचस्प है। आखिर एक समय में राजनीति से लगभग रिटायर हो चुके राव कैसे पीएम बने? पीवी नरसिम्हा राव के सियासी सफर की बात की जाए तो उन्होंने आजादी से पहले आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया था। देश आजाद हुआ तो वे कांग्रेस के पूर्णकालिक नेता बन गए।

वर्ष 1957 से 1977 तक वे आंध्र प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए। इस बीच वे राज्य सरकार में मंत्री भी रहे। साल 1971 में वे आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। सीएम बनने के बाद उन्होंने भूमि सुधार से जुड़े काम किए। उन्होंने दलितों को आरक्षण दिए जाने की वकालत की। 1969 में जब कांग्रेस में फूट पड़ी तो वे इंदिरा गांधी के साथ खड़े दिखे। बाद में वे आंध्र प्रदेश से सांसद बने। उन्होंने केंद्र में मंत्री रहते गृह, रक्षा, विदेश जैसे मंत्रालय संभाले। उन्हें न सिर्फ इंदिरा गांधी बल्कि राजीव गांधी के साथ काम करने का मौका भी मिला। 1982 के राष्ट्रपति चुनाव में उनका नाम भी राष्ट्रपति पद के लिए उछला था लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

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माना जाता है कि 1991 तक उन्होंने राजनीति को अलविदा कह दिया था। हालांकि राजीव गांधी की हत्या ने उनकी राजनीति में फिर से एंट्री कराई। 1991 के चुनाव में कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं। इसके बाद राव का नाम भी पीएम पद की रेस में आने लगा। उनके प्रतिद्वंद्वी अर्जुन सिंह और शरद पवार थे। लेकिन सोनिया गांधी चाहती थीं कि शंकर दयाल शर्मा पीएम बनें लेकिन उन्होंने स्वास्थ्य समस्याओं का हवाला देते इस ऑफर को ठुकरा दिया। बाद में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुलाई गई और नरसिम्हा राव को नेता चुना गया। इस तरह वे कांग्रेस पार्टी से आने वाले पहले पीएम बने जो कि नेहरू-गांधी के बाहर से आते थे और जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया।

बतौर पीएम उन्होंने जो फैसले लिए वो राजनीति में कम ही देखने को मिलते हैं। उन्होंने शरद पवार , जो एक समय में पीएम पद की रेस में थे, को कैबिनेट में शामिल किया। उन्होंने राजनीति से दूर रहे मनमोहन सिंह को अपना वित्त मंत्री बनाया। उन्होंने विपक्ष के नेता रहे सुब्रमण्यम स्वामी को कैबिनेट मंत्री जैसा पद दिया। यहां तक कि उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भारत के प्रतिनिधि के तौर पर अटल बिहारी वाजपेयी को भेजा।

1991 के आर्थिक संकट को देखते हुए राव सरकार द्वारा देश में विदेशी निवेश का स्वागत किया गया। पूंजी बाजार में सुधार, घरेलू कारोबार के नियमों में बदलाव, कारोबार और व्यापार को नया रूप दिया गया। पीएम रहते राव ने सरकारी घाटे को कम किया और निजीकरण को बढ़ावा दिया। राव सरकार ने बरसों से चले आ रहे लाइसेंस राज को खत्म किया।

राव को भारत के परमाणु कार्यक्रम का पिता भी कहा जाता है क्योंकि उन्होंने इसे महत्व दिया। जिसके चलते ही 1998 में भारत एक परमाणु शक्ति बन सका। राव सरकार ने परमाणु सुरक्षा को अहमियत दी। ऐसा माना जाता है कि राव सरकार में ही परमाणु परीक्षण हो जाता लेकिन किन्हीं कारणों से ऐसा नहीं हो सका। पीएम राव के रहते पंजाब से खालिस्तानी आतंक खत्म हुआ। उनके कार्यकाल के दौरान ही लुक ईस्ट पॉलिसी पर काम हुआ और इजरायल ने नई दिल्ली में दूतावास स्थापित किया। इसके अलावा राव सरकार Terrorist and Disruptive Activities (TADA) कानून लेकर आई।

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6 दिसंबर 1992 को बाबरी विध्वंस हुआ तो आरोप लगे कि राव सरकार ने ढांचे को बचाने के लिए कुछ नहीं किया। वहीं महाघोटालेबाज हर्षद मेहता ने भी आरोप लगाए कि उसने अपने मामलों को निपटाने के लिए प्रधामंत्री राव को एक करोड़ रुपये की रिश्वत दी थी। 1993 के अविश्वास प्रस्ताव के दौरान आरोप लगे कि राव द्वारा झामुमो और जनता दल के सांसदों को घूस दी गई है। हालांकि राव को उन पर लगे सभी आरोपों से बरी कर दिया गया था।

साल 1996 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को कामयाबी मिली। कांग्रेस में भी सोनिया युग की शुरूआत हो चुकी थी। 9 दिसंबर 2004 को हार्ट अटैक से नरसिम्हा राव का निधन हो गया। राव का परिवार चाहता था कि राव का अंतिम संस्कार दिल्ली में हो। हालांकि कांग्रेस नेतृत्व इसके लिए राजी नहीं हुआ। यहां तक के उनके शव को कांग्रेस कार्यालय में भी नहीं रखने दिया गया था।

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