एक कहावत है कि “अत करों लेकिन अति नहीं”, क्योंकि प्रकृति द्वारा उपहार में मिली गई वस्तुओं के दोहन करने में जब मनुष्य अति करने लगता है तो वह स्वास्थय, समाज और पर्यावरण के लिए हानिकारक सिद्ध होता है। उत्तर प्रदेश के औद्योगिक शहर गाजियाबाद के भूमिगत जल में सीसा, कैडमियम, ज़िंक, क्रोमियम, आयरन और निकल जैसी भारी धातुओं की मात्रा सामान्य से कई गुना अधिक पाई गई है। इसके कारण सेहत पर खतरा निरंतर बढ़ रहा है, विशेषकर बच्चों पर। जिसका खुलासा भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में हुआ है।
गाजियाबाद जिले के विभिन्न औद्योगिक इलाकों में भारी धातुओं के भूमि में रिसाव के कारण वहां प्रभावित हो रही भूमिगत जल की गुणवत्ता और संभावित स्वास्थ्य संबंधी खतरों का मूल्यांकन करने के शोधकर्ता इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं।
शोधकर्ताओं ने विविध मानक विश्लेषण विधियों के जरिये उन मूल स्त्रोतों का पता लगाया, जिनके कारण भारी धातुएं भूमिगत जल में पहुंचकर इसे प्रदूषित करती हैं। शोधकर्ताओं ने इस दौरान भूमिगत जल में इन धातुओं के प्रदूषण स्तर का मूल्यांकन भी किया। निकल को छोड़कर बाकी सभी भारी धातुएं जैसे- सीसा, कैडमियम और आयरन की मात्रा भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक पाई गई है। शोधकर्ताओं ने बताया कि प्रभावित इलाकों में भूमिगत जल में कॉपर और मैगनीज प्राकृतिक माध्यमों द्वारा पहुंचते है जबकि क्रोमियम की मौजूदगी का जिम्मेदार मानवीय गतिविधियां है।
शोधकर्ताओं ने सचेत किया है प्रदूषित भूमिगत जल पीने से डायरिया और पेट के कैंसर जैसे खतरनाक रोग होने का खतरा हो सकता है, जिसकी चपेट में सबसे पहले बच्चे आते हैं। एक निजी रिपोर्ट के मुताबिक प्रतिवर्ष लगभग 15 लाख बच्चे इसकी चपेट में आने से मर जाते हैं। वहीं दूषित जल का प्रभाव पशुओं एवं फसलों पर भी पड़ता हैं। इस समस्या से निपटने के लिए सुनियोजित कार्यक्रम बनाने और व्यापक प्रबंधन के लिए यह शोध बेहतरीन वैज्ञानिक आधार प्रदान कर सकता है।