सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को केंद्र सरकार से कहा कि साल 2013 के लोकपाल और लोकायुक्त कानून को लटकाकर रखना न्यायसंगत नही है। इस कानून के अनुसार, लोकसभा में विपक्षीय नेता लोकपाल चयन पैनल का हिस्सा होंगे। अभी लोकसभा में विपक्ष का कोई नेता नहीं है। न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व फैसले का संदर्भ देते हुए कहा, हमारा कहना है कि यह व्यवहारिक है और इसे लटकाकर रखना न्यायसंगत नहीं है।

लोकपाल की नियुक्ति की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने 28 मार्च को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। वरिष्ठ अधिवक्ता शांति भूषण ने कहा था कि हालांकि संसद ने साल 2013 में लोकपाल विधेयक पारित कर दिया था और यह साल 2014 में लागू हो गया था, तब भी सरकार जानबूझकर लोकपाल नियुक्त नहीं कर रही है।

अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने कहा कि मौजूदा स्थिति में लोकपाल को नियुक्त नहीं किया जा सकता क्योंकि लोकपाल कानून में नेता विपक्ष की परिभाषा से जुड़े संशोधन संसद में लंबित पड़े हैं। न्यायालय ने पिछले साल 23 नवंबर को लोकपाल की नियुक्ति में देरी को लेकर केंद्र की खिंचाई की थी और कहा था कि वह इस कानून को पास नहीं होने देगा।

एनजीओ ने वकील प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर याचिका में यह अनुरोध भी किया था कि केंद्र को यह निर्देश दिया जाए कि लोकपाल का अध्यक्ष और लोकपाल के सदस्य चुनने की प्रक्रिया कानून में वर्णित प्रक्रिया के अनुरूप पारदर्शी होनी चाहिए।

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