सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी हाईकोर्ट के जज के खिलाफ करीब 49 मिनट तक बहस चली। चीफ जस्टिस ने कड़ा रुख अपनाते हुए जस्टिस कर्णन से कहा कि आपको जज होने का बाद भी कानूनी प्रक्रिया के बारे में पता नहीं है। कोर्ट ने कहा कि हमने आपके खिलाफ जो जमानती वारंट एक आरोपी के तौर पर नहीं किया बल्कि आपका पक्ष जानने के लिए किया गया था लेकिन आप कोर्ट नहीं आए।  कोर्ट ने जस्टिस कर्णन से दो सवालों का जवाब देने को कहा, पहला क्या आप 20 जजों के खिलाफ लगाए गए आरोपों को सही मानने को तैयार हैं या शिकायत वापस लेने को तैयार है? कोर्ट ने दूसरा सवाल पूछा कि क्या आप कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगने को तैयार है?

karnanइसके जवाब में जस्टिस कर्णन ने अपना अड़ियल रवैया अपनाते हुए कहा कि जब तक मेरा काम वापस नहीं दिया जाता तब तक वे कोर्ट में हाजिर नहीं होंगे। कर्णन ने कहा इसके लिए वो हर सजा भुगतने और जेल जाने को भी तैयार है। उन्होंने कहा कि मैं कोई आतंकवादी या असामाजिक तत्व नहीं हूं, मैंने जजों के खिलाफ शिकायत की जो कि कानून के दायरे में है। इसके लिए कोर्ट ने उनके खिलाफ अंसवैधानिक फैसला लिया और मेरा काम छीन लिया, जिससे मेरा संतुलन गड़बड़ा गया है। अगर मेरा काम वापस दिया जाएगा तो मैं जवाब दूंगा. कोर्ट के इस कदम की वजह से मेरा सामाजिक बहिष्कार हो गया है। यहां तक कि मेरा प्रतिष्ठा भी चली गई है। सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस कर्णन के न्यायिक और प्रशासनिक कामों पर लगी रोक को हटाने से इनकार किया है। सीजीआई ने जस्टिस कर्णन के जवाबों पर यहां तक कह दिया कि अगर वह मानसिक रुप से बीमार हैं तो कोर्ट में मेडिकल सर्टिफिकेट दाखिल करें।

दरअसल, जस्टिस कर्णन ने प्रधानमंत्री से करीब 20 सिटिंग और रिटायर्ड जजों पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए कार्रवाई किए जाने की मांग की थी। आरोप है कि कर्णन ने पीएम को लेटर लिखकर कई जजों पर पहले भ्रष्टाचार का आरोप लगाया और फिर उन्हें पत्र लिखकर जानना चाहा था कि उनके द्वारा लगाए गए आरोपों के मामले में क्या कार्रवाई हुई है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में संज्ञान लिया है।

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