विश्व के सबसे बड़े आध्यामिक कुम्भ मेले के लिए ठसक के साथ निकली उप देवता किन्नरों की ऐतिहासिक देवत्त यात्रा के करीब दो लाख श्रद्धालु गवाह बने। देवत्त यात्रा के आगे विघ्नहर्ता गणेश की सवारी चल रही थी। उसके पीछे घोडे की सवारी थी। घोड़े पर सवार किन्नर ने अपने हाथ में अर्द्धनारीश्वर भोलेनाथ का त्रिशूल पकडा हुआ था। उनके गले में गुलाब की माला उनके रूप और लावण्य को चार-चांद लगा रहा था। अभी तक 13 अखाड़ों में से निकली छह अखाड़ों की पेशवाई इनके आगे फीकी नजर आयी। किन्नरों के देवत्त यात्रा में  बड़ी संख्या में जनसमुदाय सड़क के दोनों तरफ खड़े होकर पेशवाई का फूलों से स्वागत किया। किन्नरों की देवत्त यात्रा के इंतजार में तड़के से ही बच्चे, बुजुर्ग और महिलायें कतारबद्ध होकर सड़क के दोनों ओर खड़े हो गये थे।

किन्नरों का मानना है कि वह उप देवता की श्रेणी में आते हैं। उप देवता देवत्त यात्रा निकालते हैं, पेशवाई नहीं। सड़क के दोनो तरफ खड़े श्रद्धालु उप देवता पर गुलाब और गेंदा के फूलों की वर्षा कर रहे थे तो दूसरी तरफ उप देवता श्रद्धालुओं का अभिवादन स्वीकार करते हुए प्रसन्न होकर गले में पड़े माले से फूल नोच-नोच कर श्रद्धालुओं पर लुटा रहे थे। महिलाएं, पुरूष उप देवता के पैर छू रहे थे। आर्शीवाद के रूप में वह किसी को फूल तो किसी को सिक्के भी दिये।

ऊंट पर सवार लाल वस्त्र धारण कर उसपर लाल चुनरी ओढ़े हाथ में तलवार लिए किन्नर अखाड़ा के आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी पर महिलाएं घरों की छत पर से पुष्प वर्षा कर रही थी। वह नीचे खड़े श्रद्धालुओं के हाथों में पकड़े गेंदे और गुलाब की माला का झुककर अभिवादन स्वीकार किया। श्री त्रिपाठी को काले कपडों में लगे उनके अपने सुरक्षा गार्डों ने घेरा में लिया हुआ था। श्रद्धालुओं को उनके पैर छूने के लिए विनती करते देखा गया।

त्रिपाठी ने अलोपी देवी मंदिर के सामने स्थित वासुदेवानंद के आश्रम में जाकर उनका आर्शीवाद भी लिया। किन्नर अखाड़े की देवत्त यात्रा जब बैरहना और दारागंज क्षेत्र से आगे बढ़ रही थी, छतों पर बैठी महिलाओं ने ढ़ेर सारी फूल की पंखुड़ी उन पर पलट दिया। घोड़े पर सवार उज्जैन की महामंडलेश्वर और किन्नर अखाड़े की प्रभारी पवित्रा माई ने छत की तरफ देख कर दोनो हाथ उठाये और “ हर-हर महादेव” के नारे लगाये।

पवित्रा ने कहा कि किन्नरों के अस्तित्व को समाज ने लंबे समय से अनदेखा किया है, अपना खोया वजूद पाने और समाज में किन्नरों के सम्मानजनक जगह दिलाने के लिए उन्होंने इस अखाड़े की स्थापना की है। उनका कहना था कि किन्नरों की शिक्षा और रोज़गार के लिए भी पहल की ज़रूरत है, जिससे वो भी सम्मान के साथ जी सकें। पेशवाई में दिल्ली, राजस्थान, हैदराबाद, केरल समेत कई विदेशी किन्नर भी पेशवाई में रथ पर विराजमान थी। भारी विरोध के बावजूद पहली बार प्रयागराज में पेशवाई निकालने पर किन्नर अखाड़े के लिए यह बहुत गर्व की बात है।

सभी 13 अखाड़ों की संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने पहले किन्नर अखाड़े को मान्यता देने से इनकार कर दिया था। विरोध के बावजूद किन्नर अखाड़े ने यह कहते हुए इस महाकुंभ में शिरकत की वह उप देवता है अत: उन्हें किसी से मान्यता की ज़रूरत नहीं है। किन्नर अखाड़े की प्रयागराज में पहली देवत्त यात्रा होने के कारण लोगों में इसे देखने का बहुत ललक रहा। इस देवत्त यात्रा को देखने के लिए सड़क के दोनों किनारों पर श्रद्धालुओं की भीड़ रही। लोग इनपर फूलों की वर्षा कर रहे थे। इसमें यात्रा में घोड़ा, ऊंट शामिल थे। देवत्त यात्रा के साथ चल रहे बैंड बाजों ने पूरे रास्ते अपने मधुर गीतों से शमा बांध दिया था।

-साभार, ईएनसी टाईम्स

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