आधार की अनिवार्यता और संवैधानिकता पर सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार (10 मई) को सुनवाई पूरी हो गई। संविधान पीठ ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

अब पांच जजों की संविधान पीठ तय करेगी कि आधार निजता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है या नहीं। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए के सीकरी, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड और जस्टिस अशोक भूषण की पांच जजों की संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई की है।

सुप्रीम कोर्ट में 17 जनवरी को आधार की सुनवाई शुरू हुई थी। अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कोर्ट में कहा कि ये सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में दूसरी सबसे लंबी सुनवाई है जो लगभग चाढ़े चार महीने चली। 1973 में मौलिक अधिकारों को लेकर केशवानंद भारती केस की सुनवाई करीब पांच महीने चली थी।

गुरुवार (10 मई) को आधार पर अंतिम सुनवाई में याचीकर्ताओं की तरफ से कहा गया कि आधार मानी बिल नहीं है और अगर ये मानी बिल नहीं है तो ये कानून की नजर में गलत है और असंवैधानिक है। इसलिए इसे असंवैधानिक करार देते हुए इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए। केंद्र ने राज्यसभा और राष्ट्रपति के अधिकारों का उल्लंघन किया है। क्योंकि पहले मनी बिल उनके सामने जाना चाहिए था। वहीं पी.वी. सुंदरम ने कहा कि पेंशन, फ़ूड जैसी जरूरी आवश्यकताओं के लिये आधार को जरूरी नहीं किया जाना चाहिए, ये मौलिक अधिकारो का हनन है। ये भी कहा गया कि अस्पताल की सुविधा को भी आधार से अलग किया जाना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति बीमार है तो सिर्फ आधार न होने की वजह से उसे इलाज  से वंचित नहीं किया जा सकता।

आधार पर फैसला आने तक सामाजिक कल्याणकारी योजनाओं के अलावा बाकी सभी केंद्र व राज्य सरकारों की योजनाओं में आधार की अनिवार्यता पर रोक लगाई गई है. इनमें मोबाइल सिम व बैंक खाते भी शामिल हैं।

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