भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने असम और अरुणाचल प्रदेश की सीमा में देश का सबसे बड़ा पुल का उद्घाटन करके वहां कि जनता को अनेक समस्याओं से बाहर निकाला। दरअसल, पीएम मोदी का मक़सद इस पुल के जरिए वहां के लोगों की परेशानियों को कम करने के साथ-साथ चीन को चेतावनी देना भी था। पीएम मोदी के ये दोनों मकसद कामयाब हुए। इस पुल के बनने से चीन की चिंता बढ़ी और उसने कहा कि जब तक भारत-चीन का सीमा विवाद सुलझ ना जाएं तब तक वह अरुणाचल प्रदेश में नए निर्माण कार्यों से बचें।
चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने भारतीय न्यूज़ एजेंसी से कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि सीमा विवाद को सुलझाने और बॉर्डर में शांति बनाए रखने के लिए भारत सावधानी बरतेगा। इस बातचीत के दौरान सीधे तौर पर पुल के बारे में कुछ ना बोलते हुए चीनी प्रवक्ता ने कहा “पूर्वी राज्य और चीन-भारत सीमा पर चीन की स्थिति सुसंगत और स्पष्ट है, भारत को इस ओर ध्यान देते हुए सतर्कता से आगे बढ़ना चाहिए”। इस बातचीत में चीनी प्रवक्ता ने सीमा विवाद जल्द से जल्द सुलझाने पर जोर दिया।
दरअसल, दोनों देशों के बीच लंबे समय से सीमा विवाद है और चीन यह दावा करता है कि अरुणाचल प्रदेश उसका हिस्सा है। भारतीय रक्षा विशेषज्ञों का ऐसा मानना है कि अगर 1962 के भारत-चीन के युद्ध के वक्त यह पुल होता तो शायद भारत की स्थिति मजबूत होती। युद्ध के बाद कई बार इस पुल को बनाने के लिए बातें हुई लेकिन तभी ऐसा माना जाता था कि अगर यह पुल बन जाता है तो चीन की ओर से घुसपैठिये ज्यादा आसानी से भारतीय सीमा में घुस सकते हैं। बहराल अब समय बदला, दौर बदला, भारत की स्थिति बदली और पुल का निर्माण हुआ। आपको बता दें कि पीएम मोदी द्वारा उद्घाटन किए गए भूपेन हजारिका पुल की क्षमता भी काफी है। इस पुल को इस तरीके से बनाया गया है कि जरूरत पड़ने पर इसके ऊपर से भारतीय सेना के बड़े-बड़े टैंकों को भी पार किया जा सकता है। इस पुल की यही खासियत भारत की चीन को चेतावनी और उसकी चिंता बढ़ाने का कारण है।