परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में सदस्यता को लेकर चीन ने भारत की चिंता फिर से बढ़ा दी है। सोमवार को चीन की विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने साफतौर पर कहा कि भारत को लेकर हमारा इरादा बिल्कुल भी नहीं बदला है और एनएसजी में गैर-एनपीटी सदस्यों की भागीदारी को लेकर अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया है। चुनयिंग ने कहा कि “हम 2016 के पूर्ण अधिवेशन के आदेश के बाद और द्वि- चरणीय दृष्टिकोण से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिए खुली और पारदर्शी अंतर सरकारी प्रकिया पर सहमति बनने के बाद एनएसजी का समर्थन करते हैं।”

जैसा कि हमें मालूम है कि भारत परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर बिना साइन किए एनएसजी की सदस्यता पाना चाहता है और इसके लिए उसने अपने कठिन प्रयासों से एनएसजी के 48 में से 47 देशों को मनाने में सफल भी हो गया किंतु सिर्फ चीन ही है जो उसकी सदस्यता में अडंगा लगा रहा है। सोमवार को जारी चीन के बयान से यह साफ हो गया है कि चीन अगले महीने होने वाले एनएसजी बैठक में वह भारत का साथ नहीं देगा।

किंतु भारत भी चुप बैठने वाला नहीं है उसने भी यह स्पष्ट संकेत दिए हैं कि अगर उसे एनएसजी की सदस्यता नहीं मिली तो परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम में विदेशी सहयोग का कोई मतलब नहीं है और इसकी बजाए वह स्वदेशी तकनीत विकसित करेगा। वैसे भारत रूस के सहारे भी चीन पर दबाव बनाने की प्लानिंग बना रहा है। जानकारी के मुताबिक रूस के उपप्रधानमंत्री दमित्री रोगोजिन और भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के बीच में कुडनकुलम में परमाणु समझौते को लेकर बातचीत हुई है।

विदेश मंत्रालय के आला अधिकारियों के मुताबिक, चीन के वन बेल्ट-वन रोड परियोजना में रूस महत्वपूर्ण भागीदार है। रूस को इस परियोजना में मिलाने के लिए चीन ने बड़ी मेहनत की थी। ऐसे में भारतीय अधिकारियों का मानना है कि कुडनकुलम का दबाव डालने से रूस एनएसजी के मुद्दे पर चीन पर दबाव डालेगा।

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