नरेंद्र मोदी सरकार ने जलविद्युत क्षेत्र को राहत पहुंचाते हुए इसे 16000 करोड़ रूपए का पैकेज देने का फैसला किया है। इस तरह बिजली क्षेत्र को केंद्र सरकार के कार्यकाल में अब तक का  सबसे बड़ा राहत पैकेज मिल सकता है। इसके तहत सरकार ने 11,639 मेगावॉट की परियोजनाओं के लिए ब्याज दर में 4 फीसदी कटौती और जलविद्युत विकास कोष के निर्माण का प्रावधान किया है। इस कोष में रकम कोयला उपकर या राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष से आएगी इसके अलावा पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास कोष से कुछ रकम इसमें डाली जाएगी।

Center has given 16 thousand crores for hydroelectric projectsआपको बता दें कि इसमें निजी तथा सरकारी दोनों परियोजनाएं शामिल होंगी। बिजली मंत्रालय ने सभी हितधारकों को यह प्रस्ताव भेज दिया है। इसमें कहा गया है कि 25 मेगावाट से अधिक क्षमता वाली सभी सरकारी एवं निजी जलविद्युत परियोजनाओं को निर्माण के दौरान (अधिकतम 7 वर्ष के लिए) और चालू होने के बाद 3 वर्ष तक ब्याज दर में 4 फीसदी की छूट दी जाएगी। पर इनमें सिर्फ वहीं परियोजनाएं ही आएंगी, जिसे इस नीति की अधिसूचना जारी होने के 5 वर्ष के भीतर ही चालू कर दिया जाएगा।

इस कदम के तहत सभी जलविद्युत परियोजनाओं को अक्षय ऊर्जा परियोजना करार दिया जाएगा और राज्यों के लिए अन्य प्रकार की अक्षय ऊर्जा की ही तरह जलविद्युत खरीदना भी अनिवार्य होगा। फिलहाल जलविद्युत की दर प्रति यूनिट 3 रुपये से 3.15 रुपये के बीच है जबकि रुके हुए संयंत्रों में दरें 6-7 रुपये प्रति यूनिट पहुंच चुकी है। अब तक 25 मेगावाट से कम क्षमता वाली परियोजनाएं अक्षय ऊर्जा के दायरे में आती थीं और उनकी निगरानी का काम अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के पास था। बड़ी जल विद्युत परियोजनाएं बिजली मंत्रालय के अधीन थीं। यही वजह है कि देश में सबसे बड़ी जल विद्युत कंपनी एनएचपीसी लिमिटेड इसी मंत्रालय के अधीन है। पिछली सरकार के दौरान बड़े पैमाने पर जल विद्युत परियोजनाएं निजी क्षेत्र को दी गई थीं।

केंद्र सरकार के द्वारा दी गई इस राहत पर अधिकारियों का कहना है कि इस पैकेज के पीछे सरकार की मंशा पेरिस जलवायु समझौते के मुताबिक अपने उत्सर्जन लक्ष्य को पूरा करने की है। दरअसल पेरिस समझौते के वक्त  भारत ने अपने कुल ऊर्जा उत्पादन में अक्षय ऊर्जा का हिस्सा 40 फीसदी पहुंचाने का वादा किया था । अधिकारियों की मानें तो हम जलविद्युत क्षेत्र में नया निवेश चाहते हैं ताकि हम निजी कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धी के रूप में उभरे। इस तरह भारत कि पहली कोशिश यही है कि रुकी हुई परियोजनाओं को एक बार फिर से शुरू की जाए।

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