उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनावों में किस्मत आजमा रहे दो बाहुबली नेताओं को कोर्ट ने आज तगड़ा झटका दिया है इन दो नेताओं में मुख़्तार अंसारी और अमनमणि त्रिपाठी शामिल हैं। दोनों ही नेताओं ने चुनाव प्रचार करने के लिए कुछ दिनों की पेरोल देने की कोर्ट से अपील की थी। कोर्ट ने दोनों नेताओं की याचिका को यह कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि जेल से चुनाव लड़ने का अधिकार किसी को प्रचार के लिए रिहाई का अधिकार नहीं देता है। उनके बाहर आने से कानून व्यवस्था पर असर पड़ सकता है। मुख़्तार के पैरोल को निर्वाचन आयोग ने चुनौती दी थी

APN GRAB OF Mukhtar

मुख़्तार अंसारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमे अंसारी को 4 मार्च तक कस्टडी पैरोल देने की बात कही गई थी। कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय की हत्या के आरोप में जेल में बंद बाहुबली नेता मुख़्तार अंसारी अपना चुनाव प्रचार नहीं कर पाएंगे। इससे पहले चुनाव आयोग ने गवाहों को प्रभावित करने की बात अपनी याचिका में कही थी। याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद 17 फरवरी को पैरोल पर अंतरिम रोक लगाई थी। इसके बाद 22 फरवरी को अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया था। कोर्ट में अंसारी की ओर से पैरवी के लिए पहुंचे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने आयोग पर पक्षपात करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा था कि महज गवाहों को प्रभावित करने की आशंकाओं को ध्यान में रखकर उनके मुवक्किल को पैरोल पर रिहा करने से नहीं रोका जा सकता है। उन्होंने अंसारी के तीन बार विधायक होने की बात भी कही थी।

आज ही एक और मामले में सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अमनमणि त्रिपाठी की याचिका को ख़ारिज करते हुए उन्हें जमानत देने से इंकार कर दिया। त्रिपाठी महाराजगंज की नौतनवा विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं। उन्होंने भी यह याचिका चुनाव प्रचार के लिए पैरोल देने की मांग के साथ दाख़िल की थी। अमनमणि फ़िलहाल अपनी पत्नी सारा की हत्या के मामले में डासना जेल में बंद हैं। कोर्ट ने इससे पहले उन्हें दो दिन की पैरोल नामांकन के लिए दिया था। कोर्ट में पैरोल याचिका के खिलाफ सुनवाई की पैरवी करने सारा की माँ सीमा सिंह पहुंची थीं।

बाहुबली और अपराधिक छवि की नेताओं की भीड़ के बीच आयोग द्वारा दाख़िल याचिका पर कोर्ट का यह फैसला लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत माना जा रहा है। एक तरफ इन नेताओं के विरोधी जहाँ इनके जेल में रहने से खुश हैं वहीँ दूसरी ओर पुलिस प्रशासन ने भी चैन की सांस ली है। अब देखना है नतीजे किसके पक्ष में आते हैं और इनके जीत और हार पर इनके बाहर न आने का कितना प्रभाव होता है।

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