मथुरा के जवाहरबाग में हुई हिंसा मामले की जांच अब सीबीआई करेगी। इलाहाबाद हाईकोर्ट में बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय, विजय पाल सिंह तोमर और इस कांड में मारे गए एसएसपी मुकुल द्विवेदी की पत्नी अर्चना द्विवेदी समेत नौ अन्य लोगों की जनहित याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस डीबी भोंसले और जस्टिस यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने आज इस बाबत आदेश देते हुए कहा कि सीबीआई इस मामले में एक विशेष टीम का गठन करे और जांच तुरंत शुरू करते हुए दो महीने के अन्दर रिपोर्ट दाखिल करे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस आदेश को राज्य सरकार के लिए चुनावों के बीच एक झटका माना जा रहा है। कोर्ट के इस आदेश के बाद यूपी पुलिस अब इस जांच से अलग हो जाएगी। इस मामले में पहले से ही सीबीआई जांच की मांग उठती रही थी। इस मामले में कोर्ट भी पुलिस के रवैये से खुश नहीं थी। कोर्ट की नाराजगी का कारण इस मामले में मुख्य आरोपी रामवृक्ष यादव का डीएनए टेस्ट न हो पाना और उसके बेटे की गिरफ्तारी में लगे लम्बे समय को माना जा रहा था।
कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया था कि जवाहरबाग हिंसा मामले में यूपी के तत्कालीन कैबिनेट मंत्री शिवपाल यादव समेत समाजवादी पार्टी के कई बड़े नाम शामिल हैं इसलिए इस मामले की सीबीआई जांच बेहद जरूरी है। यूपी सरकार ने सीबीआई जांच का विरोध किया था। सरकार ने कहा था कि वह मेरठ जोन के आईजी की अगुवाई में एसआईटी गठित कर मामले की फिर से जांच कराने को तैयार है। याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यूपी सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई थी। इस मामले की अंतिम सुनवाई 20 फरवरी को हुई थी जिसमे कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था।
गौरतलब है कि मथुरा के जवाहरबाग़ पार्क को यूपी के गाज़ीपुर ज़िले के रहने वाले जय गुरुदेव के अनुयायी रामवृक्ष यादव के नेतृत्व में सैकड़ों लोगों ने अपने कब्जे में लेकर इसपर अवैध कब्ज़ा कर लिया था। यह कब्ज़ा वर्ष 2014 से था। पार्क को इनके कब्जे से मुक्त कराने का आदेश इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस को दिया था। पुलिस इस आदेश पर अतिक्रमण हटाने 2 जून 2016 पहुंची। जहाँ पहले से भारी विस्फोटकों और हथियारों से लैश रामवृक्ष और उसके समर्थकों ने पुलिस पर हमला बोल दिया। इसमें पुलिस उपाधीक्षक मुकुल द्विवेदी सहित 27 अन्य लोग मारे गए थे। इस अभियान के बाद वहां से भारी मात्रा में हथियार बरामद किये गए थे।