भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन (NRC) के मुद्दे पर राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने स्पष्ट कर दिया कि अवैध घुसपैठियों के मुद्दे पर केंद्र सरकार और पार्टी का रुख और ज्यादा सख्त होने वाला है। अमित शाह ने कहा, कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के नेतृत्व वाली सरकार भारत को अवैध घुसपैठियों के ठिकाने के रूप में इस्तेमाल नहीं होने देगी। एक-एक घुसपैठिए की पहचान की जाएगी और नागरिकता से वंचित करने के बाद उन्हें निर्वासित किया जाएगा। बता दें कि सरकार ने रोहिंग्या घुसपैठियों को पहचानने की प्रक्रिया देश के कई शहरों में शुरू कर दी है और उनके निर्वासन के लिए उचित कार्रवाई की जाएगी।’

अमित शाह के बयान और पार्टी के कड़े तेवर से अब साफ हो गया है कि पारदर्शी तरीके से सबको अपनी नागरिकता साबित करने का पूरा मौका मिलेगा, लेकिन इस मौके के बावजूद जो अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाएगा, उस अवैध घुसपैठिए की पहचान कर देश से बाहर निर्वासित किया जाएगा।

खासतौर से रोहिंग्या को लेकर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के बयान से बीजेपी की आक्रामकता का एहसास हो रहा है। पार्टी किसी भी सूरत में रोहिंग्या को अवैध रूप से भारत में रहने देने को तैयार नहीं होगी। विरोध और तेज होने वाला है।

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के दिल्ली की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में दिए बयान के अगले ही दिन दिल्ली में एक कार्यक्रम में एनआरसी के मुद्दे पर ही चर्चा हुई, जिसमें बीजेपी महासचिव और नॉर्थ ईस्ट मामलों के प्रभारी राम माधव, बीजेपी उपाध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे के साथ असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल भी मौजूद थे। एनआरसी के मुद्दे पर इस कार्यक्रम के दौरान असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने एनआरसी को सिर्फ असम ही नहीं बल्कि बिहार, मेघालय, बंगाल समेत सभी राज्यों में लागू करने की जरूरत बताई।

असम के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने असम में बढ़ती जनसंख्या और उस अनुपात में बाहरी घुसपैठियों की भूमिका का जिक्र करते हुए कहा ‘1901 से 1941 में असम की जनसंख्या दोगुनी हो गई थी, जबकि 1941 से 1971 के बीच जनसंख्या 30 फीसदी की रफ्तार से बढ़ गई। जबकि 1971 से लेकर 1991 के बीच यह आंकड़ा 52.2 फीसद तक पहुंच गया। यानी इन बीस सालों में असम की जनसंख्या 52 फीसदी के रफ्तार से ज्यादा बढ़ गई। अगर इसे जनसंख्या के लिहाज से देखें तो इन बीस सालों में असम की जनसंखा 32.90 लाख से बढ़कर 1 करोड़ 46 लाख तक पहुंच गई।’

मुख्यमंत्री ने इस मुद्दे पर कांग्रेस की सरकारों के ढुलमुल रवैये का जिक्र करते हुए कहा ‘कांग्रेस कभी भी देशवासियों के लिए कोई काम नहीं करती. कभी सिन्सियरिटी नहीं दिखाती।’

दरअसल, बीजेपी इस बात को बार-बार कहती रही है कि कांग्रेस के जमाने से ही अवैध घुसपैठिए का मसला उठता रहा है, लेकिन, वोट बैंक पॉलिटिक्स के कारण उसने अपनी आंखें मूंद ली थीं, जिसके कारण आज इस समस्या ने इतना विकराल रुप धारण कर लिया है।

1950 के कानून का जिक्र करने के बाद बीजेपी महासचिव राम माधव ने 1971 के असम समझौते का जिक्र करते हुए फिर कांग्रेस पर हमला बोला। राम माधव ने कहा ‘हमने 1971 के असम समझौते के वक्त को ही कट ऑफ ईयर रखा है।’ राम माधव बार-बार यह बताने की कोशिश करते दिखे कि कैसे बीजेपी सरकार ने पारदर्शी तरीके से सभी लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने का वक्त दिया है। लेकिन, बीजेपी यह साफ करती दिख रही है कि अगर पर्याप्त मौका मिलने के बावजूद कोई नागरिकता नहीं साबित कर पाया तो वो घुसपैठिया है और बीजेपी उन्हें निर्वासित करने से पीछे नहीं हटने वाली।

बीजेपी की तरफ से राम माधव ने एक बार फिर साफ कर दिया  कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन समेत जो वहां अल्पसंख्यक समुदाय के शरणार्थी हैं, उन्हें न केवल पूरा संरक्षण भी मिलेगा बल्कि उन्हें नागरिकता का दावा करने का अधिकार भी होगा।

दरअसल, बीजेपी को लगता है कि एनआरसी के मुद्दे पर असम के अलावा नॉर्थ-ईस्ट, बंगाल समेत देश के दूसरे राज्यों में भी अपने पक्ष में माहौल बनाया जा सकता है। इस मुद्दे पर कांग्रेस बैकफुट पर है, लिहाजा अब यह मुद्दा अगले चुनावों में भी जोर-शोर से उठाने की तैयारी है।

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