बॉलीवुड के अभिनेता सलमान खान को जोधपुर कोर्ट ने हिरण की हत्या का दोषी पाते हुए 20 साल बाद 5 साल की सजा सुनाई। इसके साथ ही 10 हजार का जुर्माना भी लगाया। वहीं बाकी लोगों को बरी कर दिया गया। सलमान खान को जेल तक पहुंचाने के पीछे सबसे बड़ी लड़ाई बिश्नोई समाज ने लड़ी। बिश्नोई समाज ने काले हिरण के शिकार हत्या करने के अपराध मामले में सलमान और अन्य के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी और आखिरकार सलमान को जेल तक पहुंचाया। वन और वन्यजीवों के लिए यह उनकी पहली लड़ाई नहीं है। इससे पहले भी बिश्नोई समाज के 300 से अधिक लोग पेड़ों को बचाने के लिए अपनी जान की कुर्बानी दे चुके हैं।

बिश्नोई समाज के गुरू हैं जम्भेश्वर
बिश्नोई समाज के धार्मिक गुरु हैं गुरु जम्भेश्वर। ये जाम्भोजी के नाम से भी जाने जाते है। इन्होंने बिश्नोई समाज की 1485 में  स्थापना की। बिश्नोई शब्द मूल रूप से वैष्णवी शब्द से निकला है, जिसका अर्थ है :- विष्णु से सम्बंधित अथवा विष्णु के उपासक। गुरु जम्भेश्वर का जन्म 1451 में हुआ था। बीकानेर जिले मे स्थित समरथल बिश्नोई समाज का सबसे बड़ा तीर्थ स्थल है। वहीं मकाम में गुरु जम्भेश्वर का समाधि स्थल है।

29 नियमों का करते थे पालन
गुरु जम्भेश्वर का मानना था कि  भगवान हर जगह है। वे हमेशा पेड़ पौधों की तथा जानवरों की रक्षा करने का संदेश देते थेथे। गुरू महाराज द्वारा बनाये गये 29 नियम का पालन करने पर इस समाज के लोग 20+9 = 29 (बीस+नौ) बिश्नोई कहलाये।

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वन संरक्षण और वन्य जीव संरक्षण के नियम का पालन करता है बिश्नोई समाज
बिश्नोई समाज इन्हीं के बताए गए नियमों का पालन करता है। इनके बताए गए नियमों में से एक नियम है वन संरक्षण और वन्य जीव संरक्षण। इसी कारण बिश्नोई समाज के लोग किसी परिजन की मृत्यु हो जाने पर उसके शव को जलाते नहीं हैं बल्कि दफनाते हैं। इसके पीछे तर्क है कि ऐसा करने से लकड़ी की बचत होगी और पर्यावरण को नुकसान कम होगा। गौरतलब है कि राजस्थान एक मरुस्थल है, जहां पहले से ही पेड़ों की संख्या कम है। ऐसे में दाह संस्कार के लिए लकड़ी काटने पर पर्यावरण को और नुकसान होगा।

इतना ही नहीं बिश्नोई समाज के कई धार्मिक क्रिया-कलाप प्रकृति के संरक्षण को ध्यान में रखकर किए जाते हैं। बाकी हिंदुओं से अलग अंतिम संस्कार की प्रथा होना भी प्रकृति के संरक्षण के लिए उठाया गया इनका बड़ा धार्मिक कदम है।

बड़ी संख्या में हरियाणा में
बता दें कि बिश्नोई समाज के लोग राजस्थान के अलावा हरियाणा में भी बड़ी संख्या में रहते हैं। साथ ही पंजाब, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में भी इस समाज के लोग बसते हैं। जो लोग राजस्थान को छोड़कर दूसरे राज्यों में बसे, उनमें से कुछ ने छोटे घर, सामाजिक प्रभाव और हिंदुओं के लिए कब्रिस्तान की कमी के कारण शवों को जलाने का संस्कार अपनाया।

अमावस्या तिथि को लगता है मेला
राजस्थान में जोधपुर तथा बीकानेर में बड़ी संख्या में इस संप्रदाय के मंदिर और साथरियां बनी हुई हैं। मुकाम नामक स्थान पर इस संप्रदाय का मुख्य मंदिर बना हुआ है। हर साल फाल्गुन की अमावस्या तिथि को यहां एक बहुत बड़ा मेला लगता है, जिसमें हजारों लोग भाग लेते हैं।

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