सुप्रीम कोर्ट के द्वारा हाल में ही एससी/एसटी एक्ट को लेकर दिए फैसले के विरोध में देशभर के सियासी दलों के साथ ही दलित और आदिवासी संगठनों में हंगामा मचा है… विरोध में आज देशव्यापी बंद बुलाया गया है….बंद को कई राज्यों में अलग-अलग सियासी दलों ने सपोर्ट कर रहे हैं…इसे देखते हुए कई राज्यों में सुरक्षा के खास बंदोबस्त किए गए हैं….वहीं, SC/ST एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार आज पुनर्विचार याचिका दायर करेगी…फैसले के विरोध में सियासी छौंक सामने आई तो कई सामाजिक संगठन भी सामने आ गए हैं…सभी की मांग है कि, संशोधन को शिथिल करने की बजाय पहले की तरह ही बहाल रखा जाए… सुप्रीम कोर्ट ने 20 मार्च को अपने दिये फैसले में एससी-एसटी एक्ट के दुरुपयोग की बात कहते हुए ऐसे मामलों में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी…साथ ही अग्रिम जमानत की भी बात कही थी…इस मामले में एनडीए के भीतर पर असंतोष देखने को मिला…एलजेपी नेता रामविलास पासवान ने अपनी आवाज मुखर की…इसी का परिणाम था कि, सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत की अगुआई में एक प्रतिनिधिमंडल ने पीएम  मोदी से मुलाकात की…इसमें रामविलास पासवान, अर्जुनराम मेघवाल, अजय टम्टा समेत कई बीजेपी नेता शामिल थे…बाद में बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले का भी रौद्र रूप देखने को मिला…मोदी सरकार में मंत्री रामविलास पासवान ने भी कहा था कि इस फैसले से दलित समुदाय में नाराजगी है और सरकार को फौरन पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी चाहिए…

एनडीए में विरोध की उठी आवाज को कांग्रेस ने तुरंत हवा दी…कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की अगुआई में प्रमुख विपक्षी दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति से मुलाकात कर रिव्यू पिटिशन लगाने की मांग की गई…इनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दलित असुरक्षित महसूस कर रहे हैं…कांग्रेस ने मोदी सरकार पर पैरवी में ढिलाई बरतने का सीधा आरोप लगाया…

Bharat Bandh it is how much right?फिलहाल देश की सबसे बड़ी अदालत के फैसले के विरोध करने के पीछे विरोध की आवाज ज्यादा बुलंद है…लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने देशभर में एससी/एसटी एक्ट के बड़े पैमाने पर गलत इस्तेमाल को लेकर जो ऐतिहासिक फैसला दिया था उसकी आत्मा में झांकना ही होगा…जिसके तहत सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और जस्टिस यूयू ललित की बेंच ने ऐसे मामलों में नए सिरे से गाइडलाइंस जारी की थी…कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम (एससी/एसटी एक्ट 1989) के तहत दर्ज मामलों में तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी…कोर्ट ने ऐसे मामलों में निर्दोष लोगों को बचाने के लिए कोई भी शिकायत मिलने पर तुरंत मुकदमा दर्ज करने की बजाय पहले शिकायत की शुरुआती जांच डीएसपी लेवल के पुलिस अफसर द्वारा 7 दिनों के भीतर करने को कहा था…जिससे कि, डीएसपी की शुरुआती जांच में ये साबित हो सके तो मामला झूठा तो नहीं है…सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं करने का फैसला सुनाया था…कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि सरकारी कर्मचारियों की गिरफ्तारी सिर्फ सक्षम अथॉरिटी की इजाजत के बाद ही हो सकती है और जो लोग सरकारी कर्मचारी नहीं है, उनकी गिरफ्तारी एसएसपी की इजाजत से हो सकेगी…हालांकि, कोर्ट ने यह साफ किया है कि गिरफ्तारी की इजाजत लेने के लिए उसकी वजहों को रिकॉर्ड पर रखना होगा…तब, जस्टिस गोयल ने कहा भी था कि, आज के समय में खुले मन से सोचने की आवश्यकता है…अगर किसी मामले में गिरफ्तारी के अगले दिन ही जमानत दी जा सकती है तो उसे अग्रिम जमानत क्यों नहीं दी जा सकती…? उन्होंने फैसला सुनाते हुए देश की सभी निचली अदलतों के मजिस्ट्रेट को निर्देश जारी किए थे, जिसके तहत उन्हें कहा गया है कि एससी/एसटी एक्ट के तहत जातिसूचक शब्द इस्तेमाल करने के आरोपी को जब मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया जाए तो उस वक्त उन्हें आरोपी की हिरासत बढ़ाने का फैसला लेने से पहले गिरफ्तारी की वजहों की समीक्षा करनी चाहिए…वैसे भी न्याय का मूल सिद्धांत सबों के लिए एक समान न्याय पद्धति की है…जिसका मूल तत्व निर्दोष को हर हाल में बचाना ही है…

एपीएन डेस्क

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