भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) जासूसी मामले में पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन के साथ ही के चंद्रशेखर का नाम भी आया था। जब सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को नंबी को 50 लाख मुआवजे का ऐलान किया चंद्रशेखर तब तक कोमा में जा चुके थे। नंबी, चंद्रशेखर और चार दूसरे लोगों को सुप्रीम कोर्ट ने 1998 के इस केस में निर्दोष करार दिया था। चंद्रशेखर 20 साल तक इस फैसले का इंतजार करते रहे लेकिन रविवार रात उनका निधन हो गया।
जासूसी कांड पर अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 1994 के जासूसी मामले में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायणन को गैरजरूरी तौर पर गिरफ्तार किया और सताया गया और मानसिक क्रूरता से गुजारा गया।
सुप्रीम कोर्ट ने नारायणन को मानसिक क्रूरता के एवज में 50 लाख रूपये का मुआवजा देने का भी आदेश दिया था। इसरो जासूसी कांड के छह आरोपियों में नारायणन के साथ चंद्रशेखर भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट का दीर्घप्रतीक्षित फैसला शुक्रवार को 11 बजे आया, लेकिन तब तक चंद्रशेखर कोमा में जा चुके थे।
डबडबाई आंखों से उनकी पत्नी केजे विजयम्मा ने मंगलवार को बताया, वह शुक्रवार को सुबह सवा सात बजे कोमा में चले गए और रविवार को कोलंबिया एशिया अस्पताल में रात 8.40 बजे अंतिम सांस ली। उन्होंने बताया कि सुबह से ही वह उच्चतम न्यायालय के फैसले का इंतजार कर रहे थे। वह जानते थे कि आज फैसला आएगा और उन्हें विश्वास था कि सभी लोगों की जीत होगी। लेकिन दो दशक से ज्यादा के लंबे इंतजार के बाद जब फैसला आया तो सुनने के लिए वह नहीं थे। चंद्रशेखर ने भारतीय प्रतिनिधि के तौर पर रूसी अंतरिक्ष एजेंसी ग्लोवकोस्मोस में काम किया।