जानिए दुनियाभर में कर्मचारियों को नौकरी से क्यों निकाल रही हैं कंपनियां? आखिर क्या है ये Layoff?

एक आंकड़ें के अनुसार दुनियाभर मे इस साल लगभग 916 टेक कंपनियों के 1,44,554 से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया है. गौरतलब है कि नवंबर के महीने में सबसे ज्यादा 51,215 लोगों की छंटनी देखी गई थी.

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दुनियाभर में छाये मंदी के बादलों के बीच ट्विटर (Twitter), अमेजन (Amazon), फेसबुक (Facebook), माइक्रोसॉफ्ट (Microsoft) जैसी बड़ी कंपनियों के बाद अब दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी पेय पदार्थ बनाने वाली कंपनी पेप्सिको (PepsiCo) भी कर्मचारियों की छंटनी (Layoff) की योजना पर काम कर रही है.

अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल (Wall Street Journal) की एक खबर के अनुसार पेप्सिको इंक अपने न्यूयॉर्क हेड ऑफिस के स्नैक एवं बेवरेज इकाइयों से जुड़े 100 से अधिक कर्मचारियों को बर्खास्त करने की योजना बना रही है. हालांकि, पेप्सिको के प्रवक्ता ने छंटनी को लेकर अभी कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है. सबसे ज्यादा नौकरियां तकनीकी क्षेत्र की कंपनियों में जा रही हैं.

एक आंकड़ें के अनुसार दुनियाभर मे इस साल लगभग 916 टेक कंपनियों के 1,44,554 से अधिक कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया गया है. गौरतलब है कि नवंबर के महीने में सबसे ज्यादा 51,215 लोगों की छंटनी देखी गई थी. इसके अतिरिक्त, महामारी के बाद से सबसे बड़ी तकनीकी छंटनी का डेटा जुटाने वाली layoffs.fyi की रिपोर्ट में कहा गया है कि मेटा वर्तमान में सूची में सबसे ऊपर है जिसने 11,000 कर्मचारियों की छंटनी कर दी है.

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क्या है भारत की स्थिति?

Inc42 की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत के 52 स्टार्टअप्स द्वारा अब तक 17,604 कर्मचारियों की छंटनी की जा चुकी है, जिनमें यूनिकॉर्न BYJU’S, Chargebee, Cars24, LEAD, Ola, Meesho, MPL, Innovaccer, Udaan, Unacademy और वेदांतु शामिल हैं. रिपोर्ट में आगे लिखा गया है कि जैसे-जैसे फंडिंग की कमी आ रही है वैसै-वैसे ये स्टार्टअप छंटनी बढ़ाते जा रहे हैं.

आखिर क्या होती है छंटनी? What is Layoff?

आम तौर पर कंपनियां जब कर्मचारियों को अस्थाई या स्थाई तौर पर इस वजह से निकाल देती हैं क्योंकि उनके पास उन्हें भुगतान करने के लिए या तो धन नहीं होता है या उन कर्मचारियों के लिए कोई काम नहीं होता है तो इसे कर्मचारी कम करना (Downsizing), कार्यबल का पूरा इस्तेमाल और दोबारा से तैनाती (Re-deployment) के तौर पर जाना जाता है.

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दुनियाभर के बैंकों और वित्तीय संस्थानों (Bank and Financial Institutions) समेत पूरी दुनिया की कई कंपनियों को सितंबर 2008 में लेहमैन ब्रदर्स (Lehman Brothers) के धराशायी होने के बाद आई मंदी की वजह से छंटनी का सहारा लेना पड़ा था. 2008 में लेहमैन ब्रदर्स में 25,000 लोग काम करते थे और ये पूरे अमेरिका में चौथा सबसे बड़ा निवेश से संबंधित सलाह देने वाला संस्थान था.

अमेरिका में दिखने लगा है मंदी का असर (Recession looming in USA)

अनिश्चितता से भरे हुए आर्थिक वातावरण और लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति ने विभिन्न प्रकार के क्षेत्रों में काम करने वाली कंपनियों को परेशान कर दिया है और उन्हें लागत घटाने को लेकर मजबूर होना पड़ रहा है. अमेरिका Fed Reserve लगातार ब्याज दरें बढ़ाता जा रहा है.

अमेरिकी मीडिया भी छंटनी की मार से जूझ रहा है, अमेरिका में नेशनल पब्लिक रेडियो ने नई भर्तियों पर रोक लगा दी है तो वहीं वार्नर ब्रदर्स डिस्कवरी इंक का CNN नौकरियों में कटौती कर रहा है. अमेरिका के सबसे बड़े समाचार समूह USA Today, डेट्रायट फ्री प्रेस, इंडियानापोलिस स्टार और सिनसिनाटी इंक्वायरर की मूल कंपनी गैनेट ने गुरुवार 1 दिसंबर से ही कर्मचारियों की छंटनी शुरू कर दी है.

क्या है छंटनी के कारण? Why company gives pink slip to employee?

वैश्विक मंदी की आहट के बीच तकनीकी कंपनियां, जिन्हें आमतौर पर बड़े खर्च करने वाले संस्थानों के रूप में देखा जाता है, अब लागत में कटौती का सहारा ले रही हैं. लागत में कटौती छंटनी के सबसे बड़े कारणों में से एक है, क्योंकि कंपनियां अपने खर्चों को पूरा करने के लिये जरूरी लाभ नहीं कमा पा रही हैं या उन्हें कर्जा चुकाने के लिये अतिरिक्त नकदी की जरूरत है. इसके अलावा ये सभी कंपनियां संभावित आर्थिक मंदी (Economic Recession) से आशंकित हैं, इसके पिछे सबसे बड़ा तर्क ये दिया जा रहा है कि दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मुद्रास्फीति (Inflation) बढ़ रही है.

दुनियाभर में आर्थिक गतिविधियों पर नजर रखने वाले अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) ने COVID-19 महामारी और फरवरी 2022 से जारी रूस-यूक्रेन युद्ध को देखते हुए वर्ष 2022 के साथ-साथ 2023 में भी वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) वृद्धि के पूर्वानुमान को निराशाजनक बताया है.

इसके अलावा महामारी के दौरान, ऑनलाइन सेवाओं की मांग में काफी ज्यादा वृद्धि देखने को मिली थी. क्योंकि लोग लॉकडाउन में थे और वे इंटरनेट पर बहुत समय बिता रहे थे. जिसके चलते कंपनियों ने बाजार में बढ़ती सेवाओं की मांग को पूरा करने के लिये अपने उत्पादन में बढ़ोतरी की. वहीं, कुछ कंपनियों ने मांग को पूरा करने के लिये महामारी के बाद भी उछाल जारी रहने की उम्मीद में भर्तिया शुरू कर दी. लेकिन, जैसे-जैसे प्रतिबंधों में ढील दी गई और लोगों ने अपने घरों से बाहर निकलना शुरू किया जिससे खपत में कमी आई, जिसके परिणामस्वरूप इन बड़ी तकनीकी कंपनियों को भारी नुकसान हुआ.

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भारतीय में तकनीकी व्यवसाय? Tech Industry of India?

भारत जैसे विकासशील देश में सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र से जुड़ी हुई कंपनियां संगठित क्षेत्र (Formal Sector) में सबसे बड़े नियोक्ताओं में से हैं और किसी भी वैश्विक आर्थिक घटनाकर्म का असर सीधे तौर पर उनके विकास संबंधी अनुमानों पर पड़ना तय है. हालांकि अभी तक इससे संबंधित कोई स्पष्ट संदेश नहीं है.

भारत के टेक सेक्टर में विप्रो (Wipro) को छोड़कर, सभी प्रमुख व्यवसायों के राजस्व और शुद्ध लाभ में वृद्धि देख गई है. सितंबर तिमाही के लिये, विप्रो का शुद्ध लाभ पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 9 फीसदी कम रहा.

भारत में IT के क्षेत्र की शीर्ष दो कंपनियां, TCS और इन्फोसिस ने अभी भी नई भर्तियों को बंद नहीं किया है जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि कर्मचारियों को आकर्षित करने के वाले इस क्षेत्र में अभी भी संभावनाएं मौजूद हैं. हालांकि अधिकांश भारतीय आईटी कंपनियों ने नई नौकरियों को फ्रीज या धीमा कर दिया है क्योंकि अमेरिका में मंदी की आशंका और यूरोप में उच्च महंगाई की दर ने वैश्विक मांग को कम रखा है.

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2008 की वैश्विक मंदी के दौरान क्या थी भारत की स्थिति? (The 2008 recession strategy)

2008 में आई वैश्विक मंदी के दौरान शायद ही किसी कंपनी ने सार्वजनिक रूप से छंटनी की घोषणा की थी लेकिन वे सभी उन कर्मचारियों को निकालना चाहते थे जिनका प्रदर्शन स्तर काफी नीचे था. 2008 की मंदी के दौरान जो कंपनियां सबसे खराब दौर से गुजर रही थीं उन्होंने बेंच स्ट्रेंथ में कटौती की थी.

वहीं, यदि कोई व्यक्ति समूह में केवल एक महीने पुराना था, तो उसे कुछ प्रशिक्षण कार्यों आदि को पूरा करने के लिये कहा जा रहा था. यदि कोई पेशेवर तीन महीने से अधिक समय लगाकर एक भी परियोजना पूरी नहीं कर पाता था, तो सिस्टम स्वयं उसे बाहर निकाल देता था.

2008 की मंदी का परिणाम यह हुआ कि कंपनियों ने कर्मचारियों की संख्या में बढ़ोतरी करना कम कर दिया. इसके अलावा कैंपस से किये जाने वाले प्लेसमेंट में कमी की गई एवं चयनित किये गये व्यक्ति को कंपनी के साथ जुड़ने में 9-12 महीने का समय लगता था.

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