तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद अब मुस्लिम महिलाओं का एक समूह खतने पर प्रतिबंध को लेकर आवाजें उठाने लगा है। बोहरा मुस्लिम समुदाय की एक महिला मासूमा रानाल्वी ने प्रधानमंत्री मोदी को एक खुला खत लिखकर इस कुप्रथा को रोकने की मांग की है।

मासूमा अपने इस खुले खत में लिखती है- ‘आजादी वाले दिन आपने जब मुस्लिम महिलाओं के दर्द और दुखों का जिक्र लालकिले के प्राचीर से किया था, तो उसे देख-सुनकर काफी अच्छा लगा था। हम मुस्लिम औरतों को तब तक पूरी आजादी नहीं मिल सकती जब तक हमारा बलात्कार होता रहेगा। हमें तब तक संस्कृति, परंपरा और धर्म के नाम पर प्रताड़ित किया जाता रहेगा। तीन तलाक एक गुनाह है लेकिन इस देश की औरतों की सिर्फ़ यही एक समस्या नहीं है। मैं आपको औरतों के साथ होने वाले खतने के बारे में बताना चाहती हूं, जो छोटी बच्चियों के साथ किया जाता है।’

क्या होता है खतना प्रथा

बोहरा समुदाय में सालों से ‘ख़तना’ या ‘ख़फ्ज़’ प्रथा का पालन किया जाता है। जैसे ही कोई बच्ची 7 साल की हो जाती है, उसकी मां या दादी मां उसे एक दाई या लोकल डॉक्टर के पास ले जाती हैं। बच्ची को यह नहीं बताया जाता कि उसे कहां ले जाया जा रहा है या उसके साथ क्या होने वाला है। दाई, आया या डॉक्टर उसके प्राइवेट अंग को काट देते हैं। इस प्रथा का दर्द ताउम्र के लिए उस बच्ची के साथ रह जाता है। इस प्रथा का एकमात्र उद्देश्य बच्ची या महिला के यौन इच्छाओं को दबाना होता है।

संयुक्त राष्ट्र ने भी लिया है संज्ञान

गौरतलब है कि दुनियाभर में हर साल करीब 20 करोड़ बच्चियों या लड़कियों का खतना होता है। इनमें से आधे से ज्यादा केस सिर्फ तीन देशों मिस्र, इथियोपिया और इंडोनेशिया में घटित होती हैं। संयुक्त राष्ट्र ने 6 फरवरी को महिलाओं के खतना के खिलाफ जीरो टॉलरेंस का अंतर्राष्ट्रीय दिवस घोषित किया है। इस साल का थीम 2030 तक एफजीएम के उन्मूलन के जरिए नए वैश्विक लक्ष्यों को पाना रखा गया है।

खतना के दुष्प्रभाव

मासूमा कहती हैं कि वे हमेशा कहते हैं कि सिर्फ एक छोटा और मामूली सा कट है और इससे कोई नुकसान नहीं होगा। लेकिन ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं जहां ये छोटे से कट खतरनाक साबित हुए हैं। इस खतने की वजह से बहुत ज्यादा खून बहता है और दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं भी होती हैं। इनमें सिस्ट बनना, संक्रमण, बांझपन तो आम हैं और साथ ही साथ बच्चे के जन्म के समय कठिनाइयां बढ़ जाती हैं। इससे नवजात बच्चे के भी जान को खतरा होता है।

WeSpeakOut On FGM कैंपेन

मासूमा के साथ इन महिलाओं ने Change.org नाम के एक वेबसाइट पर एक कैंपन की शुरुआत की थी, लेकिन उन्हें पर्याप्त समर्थन नहीं मिला। भारत में खतना को लेकर कोई कानून नहीं है। 2015 में बोहरा समुदाय की कुछ महिलाओं ने एकजुट होकर ‘WeSpeakOut On FGM’ (Female Genital Mutilation) नाम से एक कैंपेन शुरू किया था। यहां पर महिलाएं आपस में एक दूसरे की दुख भरी कहानियां साझा करती हैं।

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मासूमा की कहानी

मासूमा ने अपनी कहानी साझा करते हुए बताया कि जब वह 7 साल की थीं तो उनकी मां ने उनसे टॉफी दिलाने का वादा किया और उन्हें एक घर के पीछे के रास्ते से एक अंधेरे गली होते हुए एक छोटे से कमरे में लाया गया। इसके बाद मासूमा को कसकर पकड़ लिया गया और इसके बाद का असहनीय दर्द ही बस उन्हें याद है। वह घर आते हुए पूरा रास्ता रो रही थीं। मासूमा ने बताया कि उन्हें अगले 20-25 साल तक समझ नहीं आया कि उनके साथ हुआ क्या था। फिर उन्हें महिला खतने के बारे में पता चला।

पीएम मोदी से किया अपील

मासूमा ने अपने ओपन लेटर में पीएम मोदी से आपील करते हुए लिखा है, ‘आपकी बातें सुनकर मुझे लगा कि आपको मुस्लिम बहनों की चिंता है इसलिए मैं आप से और आपकी सरकार से दर्खास्त करती हूं इस कुप्रथा का अंत करवाइए। इस प्रथा को बैन करके बोहरा बेटी बचाना बहुत ज़रूरी है।’

बोहरा समुदाय का परिचय

भारत के पश्चिमी भाग यानी गुजरात और महाराष्ट्र में दाऊदी बोहरा समुदाय के लोग रहते हैं, जो मजबूत व्यापारी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। इस समुदाय का मुख्यालय दक्षिणी मुंबई के मालाबार हिल इलाके में है। भारत में इस समुदाय के करीब 10 लाख लोग मुंबई और आसपास के इलाकों में रहते हैं।

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