देशभर में इस वक्त मानसून अपना कहर बरपा रहा है। कहीं बाढ़ आ रही है तो कहीं भूस्खलन और इसी तरह के हालत उत्तराखंड में भी पैदा हो रहे हैं। उत्तराखंड में आसमानी कहर तो बरस ही रहा है उसके साथ-साथ देहरादून जो की प्रदेश की अस्थाई राजधानी है वहां नदियों में अतिक्रमण की वजह से लोगों की जान जा रही है और फिर भी अतिक्रमण हो रहा है।

देरहरादून के रिस्पना नदी को फिर से जीवित करने के लिए प्रदेश सरकार ने कई सौ करोड़ का बजट रखा है तो कई करोड़ खर्च कर दिए हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत पिछले लंबे समय से रिस्पना को जीवित करने की बात कर रहे हैं। लेकिन रिस्पना नदी की हालत दयनीय है। सिर्फ कुछ घंटों की बारिश से ही पानी लोगों के घरों में घुस जाता है। बाकी वक्त नदी में पानी के नाम पर गंदे नाले ही दिखाई पड़ते हैं और ये स्थिति इस लिए पैदा हुई हैं क्योंकि नदी जो की कुछ दशकों पहले 70 मीटर के करीब हुआ करती थी।

उसमें आज लोगों ने अतिक्रमण कर दिया है और अब ये नदी 20 से 25 मीटर ही चौड़ी रह गई है। अतिक्रमण की वजह से नदी का पानी तो धीरे-धीरे खत्म हो ही रहा है। उसके साथ साथ मानसून के वक्त नदी के मोहने में बसे लोगों को भी परेशानी का सामना करना पड़ता है।

रिस्पना नदी के जिम्मेदार लोगों की जान भी जा रही है। इस बार तीन लोगों की मौत हो चुकी है। लेकिन सत्ता में बैठे लोगों ने लोगों को और रिस्पना को सिर्फ वोट बैंक मानते हैं। पिछले 15 सालों से जितने भी स्थानिय विधायक रहे हैं सभी ने नदी के किनारे लोगों को बसाया। बसाया ही नही उनका वोटिंग कार्ड और राशन कार्ड भी बनवाया। साथ ही इन अवैध बस्तियों को वैध कराने की भी कोशिश की।

पूर्व की हरीश सरकार ने इन अवैध बस्तियों को वैध भी कर दिया। जबकी हाईकोर्ट इसको लेकर हमेशा कड़ा रुख अपनाता रहा है। हाईकोर्ट ने नदियों के किनारे 100 मीटर तक किसी भी निर्माण पर रोक लगा रखा है। देहरादून जो की प्रदेश का सबसे विकसित शहर हैं यहां सचिवाल, विधानसभा के साथ साथ सभी विभाग भी हैं और प्रदेश की अस्थाई राजधानी भी।

लेकिन यहां अतिक्रमण भी उतनी ही तेजी से हो रहा है। राजनेता अतिक्रमण करवा रहे हैं तो लोग तेजी से कर भी रहे हैं। वहीं नगर आयुक्त विजय जोगदंडे ने साफ किया है की हम किसी भी तरह के अवैध निर्माण के पक्ष में नही हैं  और ना ही ऐसे अवैध निर्माणों को रहने देंगे।

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