“सिलेबस रेशनलाइजेशन” पर क्यों हो रहा बवाल? जानें क्या है NCERT से जुड़ा विवाद…

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नेशनल काउंसिल ऑफ एजुकेशन, रिसर्च एंड ट्रेनिंग (एनसीआरटी) की किताबों से इतिहास के कुछ हिस्सों को हटाए जाने के मामले ने इस समय तूल पकड़ा हुआ है। काउंसिल ने भी कहा है कि ऐसा राजनीति के चलते नहीं किया गया है बल्कि इसका मकसद छात्रों का अकादमिक बोझ कम करना है। दरअसल एनसीआरटी की 12वीं क्लास की किताब से मुगलिया इतिहास को हटाने को लेकर सियासत गर्मायी थी जिसके बाद से मामला शांत नहीं हो रहा है। एनसीआरटी की ओर से इसे “सिलेबस रेशनलाइजेशन” करार दिया जा रहा है।

एनसीईआरटी की वेबसाइट पर एक नोट में लिखा है, “कोविड-19 महामारी को देखते हुए, छात्रों पर सिलेबस के बोझ को कम करना अनिवार्य महसूस किया गया था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 भी सिलेबस के भार को कम करने और अनुभवात्मक सीखने के अवसर प्रदान करने पर जोर देती है। एनसीईआरटी ने सभी कक्षाओं और सभी विषयों की पाठ्यपुस्तकों को युक्तिसंगत बनाने की कवायद की है।” “वर्तमान संस्करण परिवर्तनों को करने के बाद एक सुधारित संस्करण है। वर्तमान पाठ्यपुस्तकें तर्कसंगत पाठ्यपुस्तकें हैं। इन्हें सत्र 2022-23 के लिए युक्तिसंगत बनाया गया था और 2023-24 में यह जारी रहेगा।”

मामले पर एनसीआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी का कहना है, “जैसा कि हमने पिछले साल भी समझाया था, कोविड महामारी के कारण छात्रों का बहुत नुकसान हुआ है। तनावग्रस्त छात्रों की मदद करने के लिए, और समाज और राष्ट्र के प्रति एक जिम्मेदारी के रूप में, यह महसूस किया गया कि सिलेबस कुछ कम किया जाना चाहिए।” उन्होंने कहा कि छात्रों पर पढ़ाई का बोझ कम करने के लिए कुछ हिस्सों को हटा दिया गया है क्योंकि कोरोना के बाद से छात्र बहुत तनाव में रहने लगे थे। सकलानी ने कहा कि कोई नई पुस्तकें नहीं हैं और पिछले वर्ष किए गए संशोधन इस शैक्षणिक वर्ष में भी जारी रहेंगे। उन्होंने कहा, “एक प्रक्रिया अपनाई गई, जो पूरी तरह से पेशेवर थी।” एनसीईआरटी के निदेशक ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया कि बदलाव एक खास विचारधारा के अनुरूप किए गए हैं।

गौरतलब है कि कई विपक्षी दलों के नेताओं का कहना है कि यह बीजेपी की एक सांप्रदायिक चाल है। सांप्रदायिक इतिहास लिखने की कोशिश की जा रही है और इतिहास को बदला जा रहा है। नेता यहां तक कह रहे हैं कि अब इतिहास अपने तरीके से लिखा जा रहा है। इस पर जवाब देते हुए एनसीआरटी निदेशक ने कहा कि ये आरोप फर्जी हैं और निराधार हैं।

मामले पर टिप्पणी करते हुए सांसद कपिल सिब्बल ने तंज किया कि आधुनिक इतिहास 2014 के बाद माना जाना चाहिए। गांधी जी के हिंदू मुस्लिम भाईचारे, आरएसएस पर रोक, गुजरात दंगे और आधुनिक भारत के आंदोलनों को सिलेबस से हटाया जा रहा है। वहीं कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि न सिर्फ मुगलिया इतिहास बल्कि दलित लेखकों का इतिहास भी मिटाया जा रहा है। आरएसएस न सिर्फ गांधी की हत्या के लिए कसूरवार है बल्कि वह अंबेडकर का भी विरोध करती थी।

एनसीआरटी के फैसले को सही बताते हुए केंद्रीय मंत्री शोभा करंदलाजे ने कहा कि कांग्रेस ने भारत के इतिहास के साथ छेड़छाड़ की और बीजेपी इन गलतियों को सुधार रही है।

बता दें कि एनसीआरटी की स्थापना साल 1961 में की गयी थी। यह शिक्षा मंत्रालय के अधीन काम करती है।

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