दिवाली के ठीक दूसरे दिन गोवर्धन पूजा का आयोजन किया जाता है। इस बार गोवर्धन पूजा 15 नवंबर को है। गोवर्धन पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा में पड़ता है।

गोवर्धन पूजा का सायंकाल मुहूर्त – दोपहर बाद 03 बजकर 19 म‍िनट से शाम 05 बजकर 27 मिनट तक। प्रतिपदा तिथि 15 नवंबर को सुबह 10 बजकर 36 मिनट से शुरू हो जाएगी और 16 नवंबर सुबह 07 बजकर 06 मिनट तक रहेगी।

गोवर्धन पूजा के दिन सुबह 6 बजे ही उठकर शरीर पर तेल की मालिस करने के बाद स्नान करने का प्राचीन महत्व है। स्नान करने के बाद पूजा स्थल पर बैठकर अपने कुल देवी-देवता का ध्यान करना चाहिए। इस दिन पूजा करने के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाया जाता है।

gggg

गोवर्धन पर्वत लेटे हुए पुरूष की आकृति में बनाया जाता है। यदि आप इसे अच्छे से नहीं बना सकते हैं तो अपनी इच्छा अनुसार बना लें। । प्रतीक रूप से गोवर्धन रूप में आप इसे तैयार कर लीजिए फूल, पत्ती, टहनियों एवं गाय की आकृतियों से या फिर आप अपनी सुविधा के अनुसार इसे किसी भी आकृति से सजा लीजिए।

जब गोवर्धन की प्रतिमा तैयार हो जाए तो केंद्र में श्रीकृष्ण की मूर्ति रख दें। साथ ही नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्ढा बना लें और वहां एक कटोरी या मिट्टी का दिया रख दें। इसके बाद उस बर्तन में दूध, दही, गंगाजल, शहद और बताशे इत्यादि डालकर पूजा करें। इसके बाद गोवर्धन पूजा मंत्र ‘गोवर्धन धराधार गोकुल त्राणकारक। विष्णुबाहु कृतोच्छ्राय गवां कोटिप्रभो भव।’ का जप करें और बाद में इसे प्रसाद के रूप में बांटकर स्‍वयं ग्रहण करें।

650x

कुछ स्थानों पर गोवर्धन पूजा के दिन गाय माता को नहलाने की परंपरा भी है। उन्हें सिंदूर इत्यादि पुष्प मालाओं से सजाए जाने की परंपरा भी है। इस दिन गाय का पूजन भी किया जाता है तो यदि आप गाय को स्नान कराकर उसे सजा सकते हैं या उसका श्रृंगार कर सकते हैं तो कोशिश करिए कि गाय का श्रृंगार करें और उसके सींघ पर घी लगाएं और इसके बाद गाय माता को गुड़ खिलाएं। मान्‍यता है कि ऐसा करने से लक्ष्मीजी अत्‍यंत प्रसन्न होती हैं और जातक के जीवन में सुख-समृद्धि का वास होता है।

गोवर्धन पूजा को लेकर कई कहानियां हैं। एक कहानी के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण अपने मित्र ग्वालों के साथ पशु चराते हुए गोवर्धन पर्वत जा पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि एक भीड़ उत्सव में डूबी है। श्रीकृष्ण ने इसका कारण जानना चाहा तो वहां उपस्थित गोपियों ने उन्हें कहा कि आज यहां मेघ व देवों के स्वामी इंद्रदेव की पूजा होगी और फिर इंद्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा करेंगे। फलस्वरूप खेतों में अन्न उत्पन्न होगा और ब्रजवासियों का भरण-पोषण होगा। यह सुन श्रीकृष्ण सबसे बोले कि इंद्र से अधिक शक्तिशाली तो गोवर्धन पर्वत है जिनके कारण यहां वर्षा होती है और सबको इंद्र से भी बलशाली गोवर्धन का पूजन करना चाहिए।

44750 154108

श्रीकृष्ण की बात से सहमत होकर सभी गोवर्धन की पूजा करने लगे। जब यह बात इंद्रदेव को पता चली तो उन्होंने क्रोधित होकर मेघों को आज्ञा दी कि वे गोकुल में जाकर मूसलाधार बारिश करें। भयावह बारिश से भयभीत होकर सभी गोप-ग्वाले श्रीकृष्ण के पास गए।

यह जान श्रीकृष्ण ने सबको गोवर्धन-पर्वत की शरण में चलने के लिए कहा। सभी गोप-ग्वाले अपने पशुओं समेत गोवर्धन की तराई में आ गए। तत्पश्चात श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका अंगुली पर उठाकर छाते-सा तान दिया। इंद्रदेव के मेघ सात दिन तक निरंतर बरसते रहें क‍िंतु श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र के प्रभाव से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी। यह अद्भुत चमत्कार देखकर इंद्रदेव असमंजस में पड़ गए।

तब ब्रह्माजी ने उन्होंने बताया कि श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं। सत्य जानकर इंद्रदेव श्रीकृष्ण से क्षमायाचना करने लगे। श्रीकृष्ण के इंद्रदेव का अहंकार चूर-चूर कर दिया था अतः उन्होंने इंद्रदेव को क्षमा किया और सातवें दिन गोवर्धन पर्वत को भूमितल पर रखा और ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर वर्ष गोवर्धन पूजा कर अन्नकूट का पर्व मनाएं। मान्‍यता है क‍ि तबसे ही यह पर्व मनाये जाने की परंपरा शुरू हुई।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here