स्टेट और नेशनल हाईवे को ‘मेजर डिस्ट्रिक रोड’ में तब्दील करने के चंडीगढ़ प्रशासन के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहराया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस सम्बन्ध में एनजीओ ‘एराइव सेफ इंडिया’ के हरमन सिद्धू की याचिका खारिज कर दी है।  कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि स्थानीय प्रशासन किसी भी तरह के आतंरिक परिवर्तन कर सकता है वो चाहे रोड्स की क्लासिफिकेशन का मामला ही क्यों न हो। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा हमारा आदेश बिल्कुल साफ है कि नेशनल और स्टेट हाईवे के 500 मीटर के दायरे में शराब की दुकानें नहीं होंगी।

सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की है कि अगर कोई स्टेट हाईवे शहर के बीच से होकर गुजरता है, तो उसे डिनोटिफाई किया जा सकता है, क्योंकि शहर के बीच से गाड़िया आम तौर पर धीमी रफ्तार से ही चलती हैं। सिटी के अंदर के हाईवे और सिटी के बाहर के हाईवे में बहुत अंतर है। हाईवे से हमारा मतलब था, जहां तेज रफ्तार में गाड़ियां चलती हों और हमारे आदेश का उद्देश्य सिर्फ यह था कि हाईवे के पास शराब उपलब्ध न हो। लोग शराब पीकर तेज रफ़्तार में गाड़ियां चलाते हैं और फिर दुर्घटना हो जाती है।

दरअसल चंडीगढ़ में कई जगह हाईवे का नाम बदलकर ‘मेजर डिस्ट्रिक रोड’ का नाम कर दिया गया है और इसी को लेकर एराइव सेफ इंडिया एनजीओ ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की थी। याचिका में कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने हाईवे पर शराब की दुकानों को बंद करने का फैसला जनहित में हैं और इससे सड़क दुर्घटनाएं रूकती  हैं। ऐसे में चंडीगढ़ प्रशासन के ये फैसलें सुप्रीम कोर्ट के आदेश को निष्प्रभावी कर देती हैं और इन फैसलों पर रोक लगनी चाहिए।

पर सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से दूसरे राज्यों में भी असर पड़ेगा, जहां हाईवे शहर से होकर सिटी रोड की तरह गुजरते हैं। अब कई स्थानीय प्रशासन चंडीगढ़ के तर्ज पर ऐसे फैसले लेंगे,ताकि शराब बिक्री कर राजस्व बढ़ाया जा सके।

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