– Ravindra Singh
खोखले दावे, अधूरे ख्वाब और दम तोड़ती उम्मीदें। माता-पिता की नाजों से पाली बेटियां और घर को रौशन करने वाले चराग दबाव के झोंकों से इस तरह बुझ जाएंगे, भला किसने सोचा होगा। आखिर क्यों शिक्षा का स्वर्ग कहा जाने वाला शहर कोटा शिक्षित होती पीढ़ी के लिए अब श्मशान में बदलने लगा है। 11 दिनों में 4, आठ महीने में 22, और एक वर्ष में 29 और दस वर्षों में 160 से ऊपर हुईं मासूमों की मौत ने देश को झकझोर कर रख दिया है।
ये वही कोटा है जो बचपन को मुंहमांगी कीमत और अपनी शर्तों पर डॉक्टर और इंजीनियर बनाने का ख्वाब बेचता है। ये वही कोटा है जो देश की नई पौध को शिक्षा के संस्कारों से सींचने का दावा करता है। अगर इसे ख्वाबों के ख़जाने वाला शहर या सपनों को पूरा करने वाली फैक्ट्री भी कहें तो इससे भला कौन इनकार करेगा। लेकिन सवाल तो ये है कि इन मासूमों की मौत के लिए जिम्मेदार कौन है?
हाल में दो महीनों में 9 बच्चों की खुदकुशी के पीछे की वजह आखिर है क्या? इसका जवाब प्रशासन से लेकर कोचिंग इंस्टीट्यूट के संचालकों तक किसी के पास नहीं है। हाल ये है कि माता-पिता के पास बच्चों की मौत की खबर ही पहुंचती है। खबर सुनते ही माता-पिता की अधूरी उम्मीदें किसी कांच की तरह टूटकर बिखर जाती हैं जिसका जुड़ना मुश्किल नहीं बल्कि नामुमकिन होता है।
जहन में एक ही सवाल बार-बार उठता है कि आखिर बच्चों पर प्रेशर बनाता कौन है? कोचिंग इंस्टीट्यूट की तरफ से पढ़ाई का दबाव रहता है या फैमिली प्रेशर से छात्र कुछ ऐसा कर गुजरते हैं। या फिर मनचाहे परीक्षा परिणाम नहीं मिलने पर छात्र इस कदर दवाब में आ जाते हैं कि सुसाइड जैसे कदम उठा लेते हैं। कुछ छात्र तो अपने सपनों को पूरा करने के लिए इतने प्रेशर में आ जाते हैं कि रिजल्ट आने से पहले ही ऐसा कदम उठा लेते हैं।
कोटा के विज्ञान नगर में रहकर फिजिक्सवाला क्लास से NEET की तैयारी कर रहे उत्तर प्रदेश के 17 साल के आदित्य और विज्ञान नगर में रहकर एलन कोचिंग से मेडिकल की पढ़ाई कर रहे मेहुल वैष्णव ने 27 जून को को खुदकुशी कर ली थी। दोनों छात्रा महज डेढ़ महीने पहले ही पढ़ाई करने कोटा आए थे। इस साल कोटा से अब तक 14 छात्रों के आत्महत्याओं के केस सामने आ चुके हैं। माता-पिता का दर्द तब और बढ़ जाता है जब ऐसे मामलों को सियासी जामा पहनाने वाले इस पर सियासत करते हैं।
बच्चों के माता-पिता इन घटनाओं से सहमे हुए हैं। उनका दुख बांटने वाले तो कई हैं लेकिन इन जख्मों को भरना किसी के बस की बात नहीं। वहीं सियासी दलों के इन बयानों के बाद परिवार का दर्द भी सामने आ ही जाता है। कोटा में बच्चों की खुदकुशी के बढ़ते मामले से राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी चिंतित हैं। उन्होंने इस मामले में खुद अपनी मिसाल दी।
सीएम गहलोत ने कहा कि वो खुद डॉक्टर बनना चाहते थे। रात-रात भर पढ़ाई की लेकिन नहीं बन पाए और अब वो मुख्यमंत्री हैं। केंद्रीय मंत्री भी रहे हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों पर दबाव डालने के बजाय उन्हें इस बात की छूट देनी चाहिए कि वो अपने लिए कौन सा करियर चुनना चाहते हैं। इस बीच राजस्थान सरकार के आदेश पर कोटा में बच्चों की खुदकुशी के बढ़ते मामलों को रोकने के लिए कई कदम उठाए गए हैं।
कोटा में हर साल NEET और JEE का एग्जाम क्लियर कर डॉक्टर और इंजीनियर बनने वाले लगभग ढाई से तीन लाख बच्चे कोचिंग के लिए पहुंचते हैं। वर्ष 2023 के आंकड़ों के मुताबिक डॉक्टर बनने के लिए नीट के एग्जाम में इस साल देशभर से कुल 20 लाख 38 हजार 500 छात्र बैठे थे। जिनमें से 11 लाख 45 हजार 900 ने एग्जाम क्लियर किया। जबकि MBBS की कुल सीटें सिर्फ 1 लाख थीं।
वर्तमान में बच्चों की खुदकुशी के बढ़ते मामलों को देखते हुए कई कदम उठाए गए हैं। आपको बता दें कि कोटा में लगभग 3,000 हॉस्टल हैं और हजारों की संख्या में पीजी हैं। सभी कमरों में मोटिवेशनल पोस्टर लगाना अनिवार्य किया गया है। साथ ही डिनर और लंच के दौरान बच्चों की मौजूदगी भी अनिवार्य की जाएगी यानि अनिवार्य उपस्थितिथि भी रजिस्टर में दर्ज की जाएगी। फिलहाल जो चले गए वो वापस कहां लौटने वाले, उनका हिसाब कौन देगा?
(रवींद्र सिंह समाचार चैनल एपीएन न्यूज में वरिष्ठ पत्रकार कार्यरत हैं। वे समसामयिक विषयों पर अपनी बेबाक राय रखते हैं।)