आज दिन भर सुर्खियों में तीन तलाक की चर्चा रही। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रथा पर रोक लगाते हुए इसे असंवैधानिक और मौलिक अधिकारों का हनन करने वाला बताया। यूं तो इस केस में कई याचिकाकर्ता शामिल थे, लेकिन तीन महिलाओं की याचिका ऐसी थी, जिन्होंने इस बहस को एक नया रूप देने का काम किया।
सबसे पहले बात सायरा बानो की, जिसके शौहर ने 15 सालों तक शादी के बंधन में रहने के बाद 2015 में तीन तलाक बोलकर रिश्ता खत्म कर दिया। इसके बाद सायरा ने 2016 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। सायरा ने अपनी याचिका में तलाक-ए-बिदत यानि एक साथ तीन बार तलाक बोलकर तलाक देने, बहुविवाह और निकाह हलाला को संविधान के मौलिक अधिकारों के आधार पर गैरकानूनी घोषित करने की मांग की। सायरा के शौहर ने मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाला देते हुए इन तीनों बिंदुओं का विरोध किया, लेकिन जिद्दी सायरा अपने मांग पर डटी रहीं।
पश्चिम बंगाल के हावड़ा की इशरत जहां ने अगस्त 2016 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। 30 साल की इशरत ने अपनी याचिका में कहा था कि उसके पति ने दुबई से ही फोन पर तलाक दे दिया। अपनी याचिका में इशरत ने कोर्ट को बताया कि उसके चार बच्चे भी हैं जो उसके पति ने जबरन अपने पास रख लिए हैं। याचिका में इशरत ने बच्चों को वापस दिलाने और उसे पुलिस सुरक्षा दिलाने की मांग की। याचिका में यह भी कहा गया था कि तीन तलाक गैरकानूनी और मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों का हनन है।
जाकिया सोमन भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की संस्थापक हैं। इनके संगठन ने लगभग 50 हज़ार मुस्लिम महिलाओं के हस्ताक्षर वाला एक ज्ञापन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपा था। ज्ञापन में तीन तलाक को गैर कानूनी बनाने की मांग की गई थी। खास बात यह थी कि इस ज्ञापन पर मुस्लिम समाज के कई मर्दों ने भी हस्ताक्षर किए थे। आपको बता दें कि यह संस्था पिछले 11 सालों से मुस्लिम महिलाओं के बीच काम कर रही है। इस संस्था ने देश के 10 राज्यों के करीब 4700 महिलाओं मुस्लिम महिलाओं के बीच सर्वे किया था। 2012 में सस्था ने दिल्ली में पहली पब्लिक मीटिंग भी की थी, जिसमें देशभर से करीब 100 महिलाएं ऐसी आईं जो तीन तलाक से पीड़ित थीं।
इन तीनों महिलाओं के अलावा आफरीन और दूसरी कई महिलाओं ने भी कोर्ट में तीन तलाक के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आज यह ऐतिहासिक फैसला सुनाया है।
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