रोहिंग्या मुसलमानों के मामले में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया है। केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि म्यांमार से रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। एफिडेविट में गृह मंत्रालय ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट उसे बाध्य नहीं कर सकता कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत आने दिया जाए।

सरकार ने कोर्ट में दाखिल हलफनामे में साफ किया कि जिनके पास वैलिड ट्रेवल सर्टिफिकेट होगा वही भारत आ सकते हैं। केंद्र सरकार ने साथ ही कहा कि रोहिंग्या मुसलमान अगर बिना वैलिड सर्टिफिकेट के भारत में आते हैं तो यह राष्ट्रहित के खिलाफ होगा और यह देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा से जुड़ा मामला है। सरकार ने जोर देकर कहा कि भारत को खुली सीमा के चलते पहले से ही घुसपैठ की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ रहा है। गैर कानूनी रूप से भारत मे रह रहे रोहिंग्या पर केंद्र ने अपना रुख स्पष्ट करते हुए कहा कि भारत में शरणार्थियों को पहचान पत्र देने की कोई नीति नहीं है और रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों की तुलना श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों से नही की जा सकती।  श्रीलंका और भारत के बीच द्विपक्षीय संधि के तहत तमिल शरणार्थियों को भारत आने की इजाजत दी गई थी। जहां तक म्यांमार की बात है उनके साथ कोई द्विपक्षीय संधि नहीं है।

इससे पहले की सुनवाई में भी रोहिंग्या शरणार्थीयों के मामले में सरकार सुप्रीम कोर्ट में कह चुकी है कि इनकी गतिविधियां सन्दिग्ध हैं जिसका सबूत खुफिया एजेंसियों के पास हैं और इनके तार अंतरराष्ट्रीय  कट्टरपंथी आतंकवादी संगठनों से जुड़े हैं। ऐसे में अगर इनको भारत मे रहने दिया गया तो देश की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। लिहाजा इन शरणार्थियों को वापस म्यांमार भेजना ही सही होगा। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से रोहिंग्या शरणार्थियों की याचिका पर जवाब मांगा था जिसमें आरोप लगाया गया था कि बीएसएफ शरणार्थियों को भारत में प्रवेश से रोकने के लिए हथगोलों का प्रयोग कर रहा है। लेकिन सरकार ने इन आरोपों से इंकार किया। सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी कहा है कि रोहिंग्या शरणार्थी को फिलहाल पहचान पत्र जारी करने की कोई योजना नहीं है। मामले की अगली सुनवाई 19 मार्च को होगी।

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