सीबीआई जज जस्टिस लोया की मौत के मामले की एसआईटी जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका पर कोर्ट ने शुक्रवार (16 मार्च) को अपना  फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार सहित तमाम पक्षों को सुना। वहीं इस मामले की सुनवाई के आखिरी दिन महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि इस मामले में राजनीति के अलावा कुछ भी नहीं है।

सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे CBI के विशेष जज बृज गोपाल लोया की संदिग्ध हालात में हुई मौत के मामले की जांच की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने लंबी सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया है। शुक्रवार को हुई सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र की तरफ से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि जज लोया की मौत से याचिकर्ताओं का कोई मतलब नहीं है। यह सिर्फ एक आदमी को टारगेट करना चाहते हैं और मामले को गर्म रखना चाहते हैं, रूल ऑफ लॉ और जुडिशरी को बचाने से इनका कोई मतलब नहीं है। मुकुल रोहतगी ने तर्क दिया कि जब जस्टिस लोया की मृत्यु हुई थी तो चार जज वहां मौजूद थे और उन लोगों ने लिखित तौर पर अपना बयान दिया है। मेडिकल रिकॉर्ड में यह साफ है कि कई बार प्रयास के बाद भी जज लोया को नहीं बचाया जा सका। यही नहीं पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कहा गया है कि जब उन्हें अस्पताल लाया गया तो उनकी मृत्यु हो चुकी थी लिहाजा इसकी आगे जांच की कोई जरूरत नहीं है। अगर कोर्ट चार जजों के बयान पर यकीन नहीं करती है और जांच का आदेश देती है तो यह चारों जज भी साजिश में शामिल माने जाएंगे।

CBI के स्पेशल जज लोया की मौत 30 नवंबर 2014 को हुई थी जब वो अपने मित्र जज की बेटी की शादी में शामिल होने नागपुर गए थे। उस दौरान लोया सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले की सुनवाई कर रहे थे और बीजेपी के मौजूदा अध्यक्ष अमित शाह भी उसमें आरोपी थे और जज लोया ने उन्हें मामले में कोर्ट में हाजिर होने के लिए कहा था लेकिन उससे पहले ही जज लोया की मौत हो गई. इसके बाद मामले की सुनवाई कर रहे दूसरे जज ने अमित शाह को बरी कर दिया था। लेकिन नवंबर 2017 में एक मैगजीन ने जज लोया की मौत को संदिग्ध बताते हुए कई सवाल उठाए, जिसके बाद ही मामले की SIT जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गईं।

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