कर्मचारियों की अर्दली के तौर पर तैनाती पर कोर्ट सख्‍त, Madras High Court ने अधिकारियों को लगाई फटकार

Madras High Court: जस्टिस एमएस. सुब्रमण्‍यम ने आगाह किया कि जब तक इस प्रथा को पूरी तरह से खत्‍म करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक अदालत के पास संविधान के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने के अलावा और कोई विकल्‍प नहीं होगा।

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Madras High Court: हाल ही में मद्रास हाईकोर्ट ने औपनिवेशिक दासता प्रथा जारी रखने पर अफसोस जताते हुए पुलिस उच्‍चाधिकारियों को कड़ी फटकार लगाई है। दरअसल इन अधिकारियों ने निचले स्‍तर के विभागीय कर्मियों को अपने आवासों पर अर्दली के तौर पर तैनाती की हुई है।जस्टिस एमएस. सुब्रमण्‍यम ने आगाह किया कि जब तक इस प्रथा को पूरी तरह से खत्‍म करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जाते, तब तक अदालत के पास संविधान के प्रावधानों के तहत कार्रवाई करने के अलावा और कोई विकल्‍प नहीं होगा।

जस्टिस सुब्रमण्‍यम ने कहा कि स्‍वतंत्रता के 75वें जश्‍न के बीच ये कहना बेहद दुखद है कि पुलिस के उच्‍चाधिकारियों के आवासों पर घरेलू एवं अन्‍य कार्यों के लिए औपनिवेशिक दासता प्रणाली अभी भी तमिलनाडु राज्‍य में प्रचलित है।

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Madras High Court: कोर्ट ने बताया संविधान और लोकतंत्र पर तमाचा

कोर्ट ने कहा कि ये हमारे महान राष्ट्र के संविधान और लोकतंत्र पर तमाचा है। वह भी ऐसे समय जब हम एक जीवंत लोकतंत्र की ओर बढ़ रहे हैं। राज्‍य पुलिस के उच्‍चाधिकारी प्रशिक्षित पुलिसकर्मियों से घरेलू और मामूली काम करवाने के लिए औपनिवेशिक दासता प्रणाली का पालन कर रहे हैं।

Madras High Court: ये गंभीरता के साथ विचार करने वाला विषय है।ऐसे वर्दीधारी प्रशिक्षित पुलिसकर्मी करदाताओं के धन की कीमत पर उच्‍चाधिकारियों के आवासों में घरेलू और अर्दली का काम कर रहे हैं। ऐसे में जनता को उच्‍चाधिकारियों की मानसिकता पर सवाल उठाने का अधिकार है।

कोर्ट ने यू मानिकवाल की ओर से दायर याचिका पर अंतरिम आदेश पारित किया। जिन्‍होंने तमिलनाडु सार्वजनिक परिसर नियमों के तहत जनवरी 2014 में पारित एक आदेश को रद्द करने का आदेश दिया।

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