अनुच्छेद 370 को लेकर दाखिल की गई याचिकाओं पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। CJI की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई की। केंद्र सरकार की तरफ से SG अपनी दलील दे रहे हैं। अनुच्छेद 370 को लेकर अपनी दलील देते हुए SG ने राष्ट्रीय अभिलेखागार के दस्तावेजों और श्वेत पत्र के आधार पर उन राज्यों का उदाहरण दिए जिन्होंने भारत मे विलय के लिए समझौते के बिना भारत का हिस्सा बन गए।
हालांकि पिछली सुनवाई में SG ने तर्क दिया था कि विलय समझौते की कमी का मतलब यह नहीं है कि जम्मू-कश्मीर ने भारत मे विलय के दौरान अपनी संप्रभुता पूरी तरह से भारत को नहीं सौंपी। SG ने कहा कि सभी मामलों को संशोधन के साथ लागू किया गया था। उदाहरण के लिए धारा 368 को तो लागू किया गया था लेकिन इस प्रावधान के साथ कि भारतीय संविधान में किया गया कोई भी संशोधन जम्मू-कश्मीर पर तब तक लागू नहीं होगा जब तक कि धारा 370 के रास्ते लागू नहीं किया जाता है।
SG ने अपने तर्क के लिए उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के संविधान में संशोधन किया गया और अनुच्छेद 21A का अधिकार जोड़ा गया। यह 2019 तक जम्मू-कश्मीर पर कभी लागू नहीं हुआ क्योंकि इस रूट का पालन ही नहीं किया गया था। CJI ने कहा कि इसी तरह आपने कहा था कि प्रस्तावना में 1976 में संशोधन किया गया था। इसलिए धर्मनिरपेक्षता और समाजवाद संशोधन को जम्मू-कश्मीर में कभी नहीं अपनाया जा सका।
SG ने हां में कहा कि यहां तक कि अखंडता शब्द का भी लागू नहीं किया गया। SG ने कहा कि 1 मई 1951 को युवराज करण सिंह की उद्घोषणा से पता चलता है कि जम्मू-कश्मीर संविधान और संविधान सभा को भारतीय संविधान के अधीन होना था। CJI ने कहा जम्मू-कश्मीर संविधान सभा का दायरा और उसके कार्य के दायरे को विधान सभा मानना कठिन है।
SG ने कहा जब जम्मू-कश्मीर विधानसभा का गठन हुआ था।तब कोई विधानसभा नहीं थी लेकिन यह स्पष्ट है कि राष्ट्रपति के चुनाव के उद्देश्य से संविधान सभा को विधान सभा के रूप में माना गया था। इस पर CJI ने कहा लेकिन ऐसा इसलिए था क्योंकि वहां कोई विधान सभा नहीं थी। SG ने कहा कि संविधान सभा और विधान सभा इन शब्दों का इस्तेमाल फ्लोटिंग तरीके से एक दूसरे के स्थान पर किया गया है।
इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि जब भी अनुच्छेद 370 में कोई शब्द निरर्थक हो जाता है। उसे आने वाले समय में उत्तराधिकारी द्वारा बदल दिया जाता है। उदहारण के लिए सदर-ए-रियासत की जगह राज्यपाल बनना । SG ने कहा अनुच्छेद 370 और 357 के संयुक्त उपयोग के प्रशासनिक कार्रवाई द्वारा संविधान के किसी भी भाग को संशोधित, परिवर्तित, समाप्त किया जा सकता है या नए प्रावधान जोड़े जा सकते हैं और इसका प्रयोग पहले भी कई बार किया जा चुका है।
SG ने कहा समय के साथ संविधान के कई प्रावधान भारत पर लागू करने के लिए बनाए गए, लेकिन चौंकाने वाले तरीके से। जम्मू और कश्मीर पर क्या लागू किया गया और क्या नहीं, इसके बारे में बहुत कुछ कहा जाना बाकी है। उन्होंने बताया कि भाग IV [राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत], भाग VI [राज्य], भाग VII [अनुसूची 1 के भाग बी में राज्य], भाग VIII [केंद्र शासित प्रदेश], भाग X [अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र], 5वां अनुसूची, 6वीं अनुसूची, को लागू नहीं किया गया।
SG ने कहा कि जम्मू कश्मीर के संविधान की प्रस्तावना लागू की गई, लेकिन समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द लागू नहीं किए गए। इसने अनुच्छेद 7 में जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों के लिए एक अलग प्रावधान प्रदान किया। उन्होंने कहा अनुच्छेद 15(4) से अनुसूचित जनजातियों के संदर्भ को हटा दिया गया। अनुच्छेद 19, 22, 31, 31ए और 32 को संशोधन के साथ लागू किया गया,अनुच्छेद 21 और 22 लागू नहीं होंगे। जो कि किसी भी लोकतंत्र में अकल्पनीय है। CJI ने कहा कि अपनी सरकार ने ही किया और आप उसके लिए दलील दे रहे हैं।
SG ने कहा सरकार को गलतियों को सुधारने का अधिकार है जो सरकार ने किया। पूर्व में जो गलतियाँ हुई है उनका असर आने वाली पीढ़ी पर नहीं हो। उन गलतियों के सुधार को सही साबित कर रहा हूं। SG ने कहा अनुच्छेद 35ए के जरिए जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों के संबंध में एक अलग भाग डाला गया था। अनुच्छेद 370 पर सुनवाई के दौरान CJI ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अनुच्छेद 35 ने नागरिकों के कई मौलिक अधिकारों को छीन लिया। इसके जरिए देश के बाकी नागरिकों से जम्मू- कश्मीर में रोजगार, अवसर की समानता, संपत्ति अर्जित करने के अधिकार छीन लिया।
CJI ने कहा राज्य के अधीन किसी भी कार्यालय में रोजगार या नियुक्ति से संबंधित मामलों में सभी नागरिकों के लिए अवसर की समानता, अचल संपत्ति अर्जित करने का अधिकार को राज्य सरकार के तहत रोजगार का अधिकार यह अनुच्छेद नागरिकों से छीनता है। यह स्थानीय निवासियों के विशेष अधिकार थे। उन्होंने कहा संवैधानिक सिद्धांत के अनुसार। भारत सरकार एक एकल इकाई है। मंगलवार को भी संविधान पीठ में मामले की सुनवाई जारी रहेगी।