अनुच्छेद 370 हटाना सही या गलत? सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के सामने रहे ये 13 बड़े सवाल…

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Article 370: जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 और 35A को समाप्त करने के मामले पर दाखिल कुल 23 याचिकाओं पर आज सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुनाएगा। 16 दिनों की सुनवाई के बाद 5 सितंबर को CJI डी वाइ चंद्रचूड़की अध्यक्षता वली पांच जजों की संविधान पीठ ने अपना फैसला फैसला सुरक्षित किया था।

दरअसल केंद्र सरकार ने पांच अगस्त 2019 को जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 व अनुच्छेद 35A को सरकार ने पांच अगस्त 2019 को खत्म करते हुए जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को दो भागों में बांट दिया और दोनों को अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया है।

केंद्र सरकार के इस फैसले को जम्मू-कश्मीर के दो प्रमुख राजनीतिक दल नेशनल कांफ्रेंस और पीडीपी के नेता समेत अन्य ने चुनौती दी है। इन याचिकाओं में जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों, जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में बांटे जाने के कानून जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन एक्ट को भी चुनौती दी गई है।

CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस संजय किशन कौल , जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की संविधानिक पीठ के सामने मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, दुष्यंत दवे राजीव धवन, दिनेश द्विवेदी, गोपाल शंकरनारायण समेत 18 वकीलों ने दलीलें रखी थी। जबकि केंद्र और दूसरे पक्षकारों की ओर से AG आर वेंकटरमणी, SG तुषार मेहता, वरिष्ठ हरीश साल्वे, महेश जेठमलानी, मनिंदर सिंह, राकेश द्विवेदी ने दलीलें दी गई थी।

अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य रूप से ये सवाल रहे…

  • क्या अनुच्छेद 370(1)(डी) का उपयोग वैध रूप से अनुच्छेद 370 की व्याख्या को बदलने के लिए किया जा सकता है? जैसा कि राष्ट्रपति के आदेश सीओ 272 द्वारा किया गया था ?
  • क्या राष्ट्रपति शासन के दौरान विधान सभा की सहमति के बिना अनुच्छेद 370 को निरस्त करके वैधानिक प्रस्ताव और सीओ 273 संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के तहत जम्मू-कश्मीर के लोगों के मौलिक लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं ?
  • क्या जम्मू और कश्मीर (पुनर्गठन) अधिनियम, 2019 संविधान के अनुच्छेद 3 और भाग III का उल्लंघन करता है?
  • क्या 1957 में जम्मू और कश्मीर संविधान सभा को भंग करने के बाद अनुच्छेद 370 ने एक स्थायी स्वरूप धारण कर लिया था? 
  • क्या उस समय राष्ट्रपति की उद्घोषणा द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करना लोकतांत्रिक भावना और संघीय ढांचे के भीतर कानूनी रूप से उचित था वो भी तब जब जम्मू कश्मीर राज्य राष्ट्रपति शासन के अधीन था? 
  • क्या जम्मू-कश्मीर के लोगों की इच्छा का जिक्र न करके सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत प्रदत्त कानून के समक्ष समान व्यवहार के उनके मौलिक अधिकार का उल्लंघन किया है?
  • क्या राज्यपाल, राज्य विधानमंडल और संविधान सभा सभी एक बराबर की संस्थाएं है जैसा सरकार और 370 के खिलाफ दाखिल याचिकाओं का विरोध करने वाले कुछ अन्य दलों ने अपने तर्क दिया है?
  • संविधान में अनुच्छेद 370 का प्रावधान अस्थाई था या स्थाई यानी क्या इसको निष्प्रभावी किया जा सकता था या नहीं क्योंकि यही सवाल इस केस का आधार है।
  • क्या जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की भूमिका भारत की संसद ले सकती है।
  • क्या जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित राज्यों में बांटने का फैसला संविधान के तहत लिया गया या नहीं?
  • क्या अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के असल वजह राजनीतिक थी?
  • क्या अनुच्छेद 370 को राष्ट्रपति के आदेश भर से निष्प्रभावी किया जा सकता है?
  • क्या सुप्रीम कोर्ट अपने फैसले मे कश्मीर में अनुच्छेद 370 को बहाल करेगी? या केंद्र सरकार के अनुच्छेद 370 को रद्द करने के फैसले को बरकरार रखा जाएगा ?

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान कुछ टिप्पणियां भी की हैं। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा है कि जम्मू कश्मीर में धारा 35ए ने देश के अन्य हिस्सों में रहने वाले लोगों के मूल अधिकारों को छीन लिया था। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 35ए को 1954 में राष्ट्रपति के आदेश से संविधान में जोड़ा गया था, इसने लोगों के तीन मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया। कोर्ट ने कहा कि 35ए ने जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 16(1) के तहत पहला अधिकार सार्वजनिक नौकरियों में देश के अन्य राज्यों के लोगों से अवसर की समानता का अधिकार छीन लिया।

दूसरा अनुच्छेद 19(1)(एफ) और 31 के तहत राज्य में संपत्तियों के अधिग्रहण का अधिकार छीन लिया। इसके अलावा 35ए ने जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 19(1)(ई) के तहत देश के किसी भी हिस्से में बसने का अधिकार भी अन्य हिस्सों के लोगों से छीन लिया। जिसने देश के अन्य नागरिकों के बीच भी एक अंतर पैदा कर दिया था। कोर्ट ने कहा कि केंद्र का कहना है कि अनुच्छेद 35ए एक गलती थी और साल 2019 में इस अनुच्छेद को संविधान से हटाकर देश की वर्तमान सरकार ने गलती सुधारने की कोशिश की है।

इसके अलावा जम्मू कश्मीर की विधान सभा में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का जिक्र भी कोर्ट मे हुआ। केंद्र की ओर से कहा कि जम्मू-कश्मीर की नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के नेता मोहम्मद अकबर लोन ने विधानसभा में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए थे। जो इस मामले में एक याचिकाकर्ता भी हैं।जिनका पक्ष कपिल सिब्बल रख रहे थे।केंद्र के आरोप पर कोर्ट ने कहा कि मोहम्मद अकबर लोन को इसके लिए माफी मांगनी होगी। कोर्ट ने आदेश दिया कि इसके लिए अकबर लोन बाकायदा हलफनामा दाखिल करेगे।

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