मथुरा और वृंदावन में यमुना नदी में प्रदूषण को लेकर याचिका की सुनवाई के दौरान शुक्रवार (22 दिसंबर) को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को मथुरा-वृंदावन में यमुना के अंतिम बाढ़ बिंदु से 200 मीटर तक कोई निर्माण ना होने देने का आदेश दिया है।

जस्टिस अरुण टण्डन और जस्टिस राजीव जोशी की खंडपीठ को राज्य सरकार ने जानकारी दी कि जल निगम के परियोजना प्रबंधक को निलंबित करने का एमडी को निर्देश दिया गया है और एक हफ्ते में निलंबन का आदेश जारी हो जाएगा। जल निगम के परियोजना प्रबन्धक के खिलाफ यह कार्रवाई कोर्ट को गलत जानकारी देने पर की गई है। मुख्य सचिव की तरफ से हाईकोर्ट से माफी भी मांगी गई। हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव से 18 जनवरी को परियोजना प्रबन्धक के निलंबन पर रिपोर्ट मांगी है।   

बता दें कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार (21 दिसंबर) को एक सर्वेक्षण रिपोर्ट पर हैरानी जताई थी। खंडपीठ के सामने गुरुवार को हलफनामा देकर सरकार की तरफ से यह कहा गया था कि मथुरा और वृंदावन में यमुना किनारे 11,034 आवासीय भवन हैं। इसी पर कोर्ट ने हैरानी जताई और इस संख्या को अविश्वसनीय बताया और कहा कि व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं है। सरकार की तरफ से पेश हुए एडवोकेट जनरल ने भी बेंच के सामने स्वीकार किया था कि यह आंकड़ा विश्वसनीय नहीं है। उच्च न्यायालय ने सरकार को नोटिस जारी किया था और गलत जानकारी देने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया था। उच्च न्यायालय ने यह भी कहा था कि अगर कार्रवाई नहीं होती है तो हाईकोर्ट गलत हलफनामा पेश करने के लिए मुख्य सचिव के खिलाफ आदेश पारित करेगा।

न्यायमूर्ति अरुण टंडन और न्यायमूर्ति राजीव जोशी की खंडपीठ मथुरा और वृंदावन में यमुना नदी में प्रदूषण को रोकने के लिए मधु मंगल शुक्ला की याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में कहा गया है कि यमुना किनारे बने मकानों से गंदगी यमुना में जा रही है जिससे इसमें प्रदूषण बढ़ रहा है।

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