मद्रास हाईकोर्ट ने आजाद हिंद फौज के सदस्य रहे दो बुजुर्गों को स्वतंत्रता सेनानी पेंशन के लिये संघर्ष करने पर खेद व्यक्त किया है। इनमें से एक का तो निधन हो चुका है। अब मद्रास हाईकोर्ट ने तमिलनाडु और केंद्र सरकार को के.गांधी और के. मुथैया को लगभग 30 सालों से लंबित पेंशन देने का निर्देश दिया है। के. मुथैया का निधन हो चुका है और अब पेंशन उनके परिजनों को मिलेगी।

यह याचिकाएं 89 वर्षीय के. गांधी और के. मुथैया की पत्नी ने दायर की थीं। एक याचिका में पेंशन राज्य सरकार से और दूसरी में केंद्र सरकार से मांगी गई थी। तीस साल से लंबित मामले में गांधी को खुद पेंशन मिलनी है जबकि मुथैया के पांच कानूनी वारिसों को पेंशन का लाभ मिलेगा क्योंकि के. मुथैया और उनकी पत्नी का निधन हो चुका है।

याचिकाओं पर फैसला देते हुए मद्रास हाईकोर्ट के दो जजों ने आजादी की लड़ाई में इन स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान का उल्लेख किया। कोर्ट ने कहा कि देश के लिए उनकी सेवाओं का कोई मोल नहीं है। पेंशन इनके लिए कोई दान या दया नहीं है बल्कि यह नि:स्वार्थ स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में दी जाती है और राज्य को इस बात का इंतजार नहीं करना चाहिये कि इसके लिये वह आवेदन करें। के. गांधी और के. मुथैया को वर्ष 1945 में जेल में कैद किया गया था। जस्टिस के. रविचंद्रबाबू ने तमिलनाडु सरकार को दो हफ्ते में गांधी को पेंशन देने को कहा है।

दूसरी ओर मुथैया की पत्नी की याचिका पर जस्टिस आर सुरेश कुमार ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह मुथैया की अपील के समय से यानी सितंबर 1972 से उनके निधन जून 2002 के बाद की पेंशन को एकमुश्त अदा करें। पेंशन की यह रकम के. मुथैया के पांच कानूनी वारिसों को दी जाए।

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