Book Review:’हूल’ में अपने मूल्यों को बचाने की कवायद करता दिखता है चांगदेव पाटिल

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मराठी लेखक भालचंद्र नेमाड़े का उपन्यास ‘हूल’ उनके चांगदेव चतुष्टय की दूसरी कड़ी है। इसमें नायक चांगदेव पाटिल एक छोटी सी जगह में जाकर कॉलेज में पढ़ाने का काम करने लगता है। वह वहां बिल्कुल खुश नहीं है। अब उसके आसपास बिल्कुल ही अलग तरह के लोग हैं जैसे कि बिढार (पहली कड़ी) में नहीं थे। अब चांगदेव कॉलेज में पढ़ाने वाले औसत दर्जे के शिक्षकों से घिरा है जिनका साहित्य से कोई खास लेना देना नहीं है। चांगदेव ऐसे लोगों के बीच है जिनका निशाना अपनी कक्षा की छात्राएं ही हैं। इसके अलावा अपने कॉलेज में चांगदेव जातिवाद, लिंगभेद और संकीर्ण विभागीय राजनीति से भी परिचित होता है। कुलमिलाकर सबकुछ ऐसा है जो कुंठित कर छोड़ दे।

चांगदेव एक ऐसी जगह रहता है जहां आसपास कुछ भी ढंग का नहीं है। साफ पता चलता है कि चांगदेव अपने आसपास के माहौल से कितना कुंठित है। आमतौर पर कोई शख्स एक कॉलेज में पढ़ाने को लेकर जो भी उम्मीदें करता है सब उसके विपरीत हैं। चांगदेव बस चाहता है कि वह यहां से जल्द से जल्द निकले। बिढार में जो चांगदेव के जीवन की चुनौतियां थीं, हूल में वह बिल्कुल अलग हैं। मसलन चांगदेव को ऐसे बच्चों को पढ़ाना है जो कक्षा में शिष्टाचार से पेश भी नहीं आते। चांगदेव को समझ आ गया है न तो वह किसी शहर में रह सकता है न इस तरह की जगह में।

हूल चांगदेव पाटिल के जीवन का एक हिस्सा है। जहां उसके नौकरी के दिनों के तजुर्बे हैं। पाटिल एक छोटे शहर में आ गया है। इस शहर में अलग-अलग तरह के लोग हैं, जैसे कुछ नए नए ईसाई हुए हैं, गरीब मुसलमान, अलग-अलग जातियों के लोग। एक युवा के रूप में चांगदेव क्या क्या उम्मीदें अपने करियर को लेकर करता है इसमें ये भी बताया गया है। हालांकि चांगदेव अपने आस पास के लोगों सा होकर नहीं रहता। चांगदेव विरोध करने और अपने आप को बचाने की कवायद करता रहता है।

भालचंद्र नेमाड़े के किरदार चांगदेव पाटिल में बहुत ही विरोधाभास आपको देखने को मिलता है। पाटिल का दिमाग कब क्या करने को कहेगा ये कहना मुश्किल है। चांगदेव एक बार में आपको बेवकूफ लगेगा पर उसकी बातें कभी-कभी ऐसी होती हैं कि जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगी। भालचंद्र नेमाड़े के लेखन की खासियत है कि वे यथार्थवादी हैं।

चांगदेव की सोचने की प्रक्रिया पर जब लेखक नेमाड़े लिखते हैं तो कई लंबे पैराग्राफ हो जाते हैं लेकिन वहीं पाठक को कई बार ये लगेगा कि पाटिल बहुत सी आसान चीजों को भी नहीं समझ पाता है और पाठक को हंसी और दया दोनों आती है। चांगदेव बहुत असमंजस में रहता और अंदर से खाली किस्म का शख्स है। हालांकि चांगदेव हमेशा कुछ न कुछ सोचता रहता है। अगर उसके दिमाग में पकने वाली खिचड़ी को एक तरफ कर दिया जाए तो उसके पास कुछ नहीं है।

पुस्तक के बारे में-

लेखक- भालचंद्र नेमाड़े
प्रकाशक-राजकमल प्रकाशन
मूल्य- 299 रुपये (पेपरबैक)
पृष्ठ संख्या- 240

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