कौन कहता है कि भारत में सिर्फ पुरुषों को ही आगे बढ़ने का मौका मिल पाता है, केवल पुरुष ही बड़े-बड़े पद पर काबिज़ होते है। 21वीं शताब्दी के इस आधुनिक भारत में महिलाएं भी उतनी ही तेजी से आगे बढ़ रही है जितने की पुरुष। न्याय व्यवस्था के शीर्ष पदों में अब तक पुरुषों का ही बोलबाला रहा है लेकिन भारतीय इतिहास में पहली बार एक ऐसा संयोग बना है, जिससे हम यह समझ सकते है कि वाकई अब महिलाओं को लेकर देश में स्थिति बदल रही है। भारत में इस वक्त चार सबसे पुराने हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश के पद पर महिलाएं काबिज़ है। देश में पहली बार चारों बड़े और सबसे पुराने बॉम्बे, मद्रास, कलकत्ता और दिल्ली उच्च न्यायालयों में चीफ जस्टिस महिलाएं हैं।

मद्रास हाईकोर्ट में महिला जज नियुक्ति के बाद बना इतिहास

आपको बता दें कि इन चारों उच्च न्यायालयों की स्थापना औपनिवेशिक शासन के दौरान हुई थी। हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट की चीफ जस्टिस के तौर पर इंदिरा बनर्जी को नियुक्त किया गया है। इंदिरा बनर्जी की नियुक्ति के साथ देश के इतिहास में भारतीय महिलाओं के नाम एक नया कीर्तिमान दर्ज हो गया। मद्रास हाई कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश को मिलाकर कुल 6 महिला जज हैं, जबकि 53 पुरुष जज हैं।

बॉम्बे हाईकोर्ट में सबसे ज्यादा महिला जज

अगर हम बॉम्बे हाई कोर्ट की बात करें तो यहां महिला जजों की संख्या देश में सबसे ज्यादा है। यहां 61 पुरुष के साथ-साथ 11 महिलाएं न्यायधीश भी हैं। इसके अलावा दिलचप्स बात ये है कि बॉम्बे हाई कोर्ट में शीर्ष के दो पदों पर महिलाएं ही हैं। चीफ जस्टिस मंजुला चेल्लुर हैं तो वहीं उनके बाद दूसरी शीर्ष जज के पद पर जस्टिस वी एम ताहिलरामनी हैं।

दिल्ली और कलकत्ता हाईकोर्ट की चीफ जस्टिस है महिलाएं

बॉम्बे से ही मिलता जुलता हाल दिल्ली का भी है। दिल्ली हाई कोर्ट में भी शीर्ष स्थानों पर महिलाओं का ही अधिकार है। दिल्ली हाईकोर्ट में चीफ जस्टिस के पद पर जस्टिस जीएस रोहिणी कार्यरत है तो वहीं दूसरे स्थान पर एक महिला जज जस्टिस गीता मित्तल कार्यरत हैं। दिल्ली उच्च न्यायालय में 9 महिला और 35 पुरुष जज हैं। कलकत्ता हाईकोर्ट की कमान भी महिला जज चीफ जस्टिस निशिता निर्मल म्हात्रे के हाथ में है। वह बीते साल 1 दिसंबर से इस पद पर हैं। यहां 35 पुरुष जजों के मुकाबले सिर्फ 4 महिला जज नियुक्त हैं।

निकी हेली ने कहा महिला होने की वजह से उनकी मां नहीं बन पाई जज

गौरतलब है कि हाल ही में यूएन में अमेरिका की स्थाई सदस्य और भारतीय मूल की महिला निकी हेली ने कहा था कि भारत में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबलें में काफी कम मौके मिलते हैं  जिसकी वजह से किसी बड़े मुकाम को हासिल नहीं कर पाती। निकी हेली ने कहा कि इसी वजह से उनकी मां को महिला होने के कारण भारत में न्यायधीश नहीं बनने दिया गया। शायद निकी हेली को नहीं पता कि भारत में आजादी से पहले और निकी के माता-पिता के भारत छोड़ने से करीब दो दशक पहले अन्ना चांडी त्रावनकेर में जज रह चुकी थीं। इसके अलावा देश के आजाद होने के बाद चांडी 1948 में जिला जज और 1959 में हाईकोर्ट के लिए पदोन्नत हुई थीं।

बदल रहा है देश

हालांकि इस वक्त देश के 24 हाईकोर्ट में करीब 632 जजों में सिर्फ 68 जज महिलाएं हैं। यह आंकड़ा कुल जजों का लगभग 10.7 फीसदी है। जबकि सुप्रीम कोर्ट में 28 जजों में से सिर्फ एक महिला जज है। महिला और पुरुष जजों का यह अनुपात तो वाकई खुश करने वाला नहीं है लेकिन हम इस बात से भी इंकार नहीं कर सकते की तेजी से विकास की ओर बढ़ रहे भारत में महिला सशक्तिकरण का विकास भी उतनी ही तेजी से हो रहा है।

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