G7 ने Russia के कच्चे तेल पर लगाई मूल्य सीमा, जानिए इससे India पर कितना होगा असर और वैश्विक बाजार में क्या बदलेगा

पिछले 10 महीनों से यूक्रेन (Ukraine) के खिलाफ युद्ध लड़ रहे रूस (Russia) के उपर पश्चिमी देशों (G7) और आस्ट्रेलिया ने सोमवार 5 दिसंबर 2022 से रूसी तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की मूल्य सीमा लागू कर दी है.

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G7 Russia Crude Oil

पिछले 10 महीनों से यूक्रेन (Ukraine) के खिलाफ युद्ध लड़ रहे रूस (Russia) के उपर पश्चिमी देशों (G7) और आस्ट्रेलिया ने सोमवार 5 दिसंबर 2022 से रूसी तेल पर 60 डॉलर प्रति बैरल की मूल्य सीमा लागू कर दी है. इसके साथ ही कुछ अन्य प्रतिबंध भी लगाने शुरू कर दिए है. हालांकि रूस ने कहा है कि “तेल के दामों पर लगाई गई सीमा का यूक्रेन में जारी ‘विशेष अभियान’ (रूस, यूक्रेन में जारी युद्ध को स्पेशल ऑपरेशन कहता है) पर कोई असर नही पड़ेगा”.

आज से प्रतिबंधों के लागू होने के कारण अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय तेल बास्केट में 5 फीसदी से भी ज्यादा की तेजी देखी गई है.  

किसने लगाए है रूसी तेल पर प्रतिबंध?

फ्रांस, ब्रिटेन, कनाडा, जापान, अमेरिका, इटली, जर्मनी (G7) के अलावा ऑस्ट्रेलिया और 27 देशों के यूरोपीय संघ (European Union) ने शुक्रवार को रूसी तेल के लिए 60 डॉलर प्रति बैरल की सीमा तय की थी. हालांकि अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि इन प्रतिबंधों से रूसी तेल की पहुंच का वैश्विक बाजार पर असर पड़ेगा भी या नहीं. सोमवार को अमेरिकी मानक कच्चा तेल (WTI) 2 फीसदी बढ़कर 81.64 डॉलर प्रति बैरल के भाव पर था. सात देशों के समूह, ऑस्ट्रेलिया और 27 यूरोपीय संघ के देशों ने

पहले से ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में दुनिया की दूसरे नंबर की अर्थव्यवस्था चीन में कोविड-19 के चलते लगाए गए प्रतिबंधों सहित अन्य कारणों से कच्चे तेल की मांग और कीमतें प्रभावित हुई हैं. उत्पादन में कटौती समेत कई निर्णयों के बावजूद भी दुनिया में कच्चे तेल की कीमतें युद्ध के दौरान अपने उच्चतम स्तर से काफी नीचे हैं.

प्रतिबंधों को लेकर रूस के उप प्रधानमंत्री अलेक्जेंडर नोवाक ने कहा है कि, ”हम केवल उन देशों को तेल और तेल से जुड़े हुए उत्पाद बेचेंगे, जो बाजार की शर्तों पर हमारे साथ काम करेंगे, भले ही हमें कुछ हद तक उत्पादन को घटाना पड़े.”

वहीं दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका ने कहा है कि रूस से निर्यात होने वाले तेल की कीमतों पर लगाई गई सीमा से “पुतिन (रूस के राष्ट्रपति) के सबसे महत्वपूर्ण राजस्व स्रोत पर होगा.”

3 दिसंबर को किए गए एक ट्वीट के माध्यम से अमेरिका की वित्त मंत्री जैनेट येलेन ने कहा कि “कई महीनों की कोशिश के बाद आधिकारिक तौर पर पश्चिम के सहयोगी मुल्कों ने शुक्रवार को तेल की कीमतों पर सीमा लगाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.

इस समझौते के अनुसार ये देश समुद्र के रास्ते निर्यात किए जाने वाले रूसी तेल की कीमत का 60 डॉलर प्रति बैरल से अधिक नहीं देंगे”. येलेन ने आगे कहा कि इस सीमा के लगाने से कम और मध्यम आय वाले उन देशों को ख़ास फायदा होगा जो तेल और गैस की और अनाज की बढ़ती कीमतों की परेशानी से दो-चार हो रहे हैं.

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कब आया था ये प्रस्ताव?

सितंबर 2022 में G7 देशों में शामिल सदस्य देशों (अमेरिका, कनाडा, यूके, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान और यूरोपीय संघ) ने यूक्रेन युद्ध को चलाए रखने की रूस की आर्थिक ताकत को सीमित करने के इरादे से रूस से निर्यात होने वाले तेल की कीमत पर सीमा लगाने का प्रस्ताव दिया था. हालांकि लंबी चली चर्चा के बाद समूह के सभी सदस्य देशों ने दो दिसंबर को इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.

पोलैंड चाहता था और सख्ती

वहीं, इस मंजूरी से पहले इन देशों को एक सदस्य देश पोलैंड को मनाने के लिए काफी कोशिश करनी पड़ी, क्योंकि पोलैंड चाहता था कि तेल की कीमत पर कम से कम सीमा ($40) रखी जाए और इसे इस तरह रखा जाए कि ये बाजार की दरों से काफी नीचे रहे. पोलैंड ने इस प्रस्ताव को अपना समर्थन जब दिया जब बाकि सदस्यों ने कहा कि तेल की कीमतों पर लगी सीमा बाजार की दर से कम से कम पांच फीसदी कम रखी जाएगी.

तय की गई सीमा को लेकर कई रिपोर्टस में दावा किया गया है कि यूरोपीय संघ (European Union) चाहता था कि तेल की कीमत को 65 से 70 डॉलर प्रति बैरल रखी जाए लेकिन इस प्रस्ताव को मानने से पोलैंड के साथ-साथ लिथुआनिया और इस्टोनिया ने ये कहते हुए मना कर दिया कि ये कीमत काफी ज्यादा है.

A tanker loading with RUssian oil

विशलेषकों का मानना है इस फैसले का असर दुनियाभर में होने वाले तेल के निर्यात पर पड़ेगा. इस फैसले के लागू होने के बाद जो देश जी7 देशों के नेतृत्व वाली नीतियों को मानेंगे वो समंदर के रास्ते होने वाले तेल और पेट्रोलियम उत्पाद का आयात के समय तय की गई सीमा से कम कीमत में ही इसे खरीद सकते हैं.

जारी किए गए एक पत्र में कहा गया है कि यूक्रेन के सहयोगी पश्चिमी देश इस बात की भी योजना बना रहे हैं कि रूसी तेल को ले जाने वाले ऐसे टैंकर जो तेल पर लगाई गई सीमा को न मानते हों उनका बीमा (Insurance) न किया जाए.

भारत और चीन पर सबकी नजर, लेकिन क्यों?

G7 द्वारा रूस के तेल पर लगाए गए प्रतिबंधों का बड़ा असर रूस पर पड़ेगा लेकिन ये भी माना जा रहा है कि भारत और चीन जैसे दुनिया के दो बड़े बाजार रूस पर इस कदम के असर को कम कर सकते हैं. इस समय ये दोनों ही रूसी तेल के बड़े खरीदार हैं.

एक भारतीय अधिकारी ने Mint से बात करते हुए कहा कि, ‘हमें रूस सहित जहां से भी खरीदारी करने की जरूरत होगी, हम खरीदना जारी रखेंगे. वैश्विक तेल आपूर्तिकर्ताओं ने भारत को आश्वासन दिया है कि आपूर्ति में कोई बाधा नहीं आएगी.”

रूस-यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत से पहले भारत रूस से एक फीसदी से भी कम तेल का आयात करता था जो अक्टूबर में बढ़कर 4.24 मिलियन टन या आसान शब्दों में कहें तो लगभग 1 मिलियन बैरल प्रतिदिन हो गई, जो भारत की कुल तेल जरूरतों का 21 फीसदी थी. भारत में रूस से होने वाले तेल आयात का हिस्सा अभी इराक से 23 फीसदी कम तो वहीं सऊदी अरब से लगभग 15 फीसदी अधिक है.

G7 देशों द्वारा लगाई गई मूल्य सीमा भारत, चीन और अन्य प्रमुख खरीदार जो रूस से रियायती बैरल खरीद रहे हैं के लिए फायदेमंद होने की संभावना है. इस मूल्य सीमा कते चलते इन देशों को रूस को किए जाने वाले भुगतान को कम करने का अवसर देगी.

भारत और कच्चा तेल?

भारत के तेल आयात में रूस की हिस्सेदारी पिछले महीने ही 19 फीसदी से बढ़कर 23 फीसदी के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई, वहीं, भारत में आयात होने वाले मध्य पूर्व के तेल की हिस्सेदारी 59 फीसदी से घटकर 56.4 हो गई है. इराक अभी भी भारत का शीर्ष आपूर्तिकर्ता बना हुआ है जबकि रूस, सऊदी अरब को पीछे छोड़कर दूसरे स्थान पर है.

हालांकि, भारतीय रिफाइनर पहले से ही मूल्य सीमा के नीचे या उसके पास रूसी तेल खरीद रहे हैं. इसलिए, जब कभी भी मूल्य सीमा लगाई जाएगी, भारत के तेल आयात पर इसका कोई खासा नकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है.

लेकिन, हाल के महीनों में रूस ने कच्चे तेल पर छूट को सीमित कर दिया है, इसलिए भारत अब रूस से आने वाले तेल पर लगने वाले ज्यादा किराये की वजह से अफ्रीका और मध्य पूर्व की ओर रुख कर रहा है.

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, और 2021-22 (वित्त वर्ष 2021-22) तक कच्चे तेल की अपनी कुल मांग का 85 फीसदी आयात से पूरा करता है.

तेल मंत्रालय के पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ (PPAC) के आंकड़ों के अनुसार, वित्त वर्ष 2022 में भारत का आयात बिल लगभग दोगुना होकर 119.2 बिलियन डॉलर हो गया. जो 2020-21 में 62.2 बिलियन डॉलर से लगभग दोगुना है.

पेट्रोलियम योजना और विश्लेषण प्रकोष्ठ के अनुसार, भारत ने 2021-22 में 212.2 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात किया, जो पिछले वर्ष के 196.5 मिलियन टन से ज्यादा है.

भारत ने 2022 वित्तीय वर्ष में 202.7 मिलियन टन पेट्रोलियम उत्पादों की खपत की, जो पिछले वर्ष में 194.3 मिलियन टन थी. इसी तरह, देश ने 2021-22 में आयातित 32 बिलियन क्यूबिक मीटर एलएनजी पर 11.9 बिलियन डॉलर खर्च किए, वहीं पिछले वर्ष 33 बीसीएम गैस के आयात पर 7.9 बिलियन डॉलर खर्च किए गए थे.

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