देश के शिक्षा व्यवस्था से किस तरह का खिलवाड़ किया जा रहा है, इसका एक उदाहरण 2017 में एमबीबीएस में हुए दाखिलें हैं। एमबीबीएस में दाखिला लेने के लिए छात्रों को नीट परीक्षा पास करनी पड़ती है। लेकिन 2017 में ऐसे छात्रों को भी प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में दाखिला दिया गया है जिनके या तो 0 नंबर आए हैं या इससे भी कम यानी निगेटिव मार्किंग। आंकड़ों के मुताबिक करीब 400 छात्र ऐसे हैं जिनको फिजिक्स और केमिस्ट्री में एक से नौ तक अंक मिले। इसके अलावा करीब 110 छात्र ऐसे भी हैं जिन्हें 0 या इससे भी कम नबंर मिले।

इस तरह के दाखिलों से कई सवाल खड़े होते हैं। बड़ा सवाल ये है कि जब छात्र दाखिले की मुख्य परीक्षा ही पास नहीं कर पाया तो उसे दाखिला क्यों दिया गया। वहीं दाखिले के लिए हर विषय में कम से कम 50 फीसदी अंक लाना अनिवार्य माना जाता है। हालांकि बाद की अधिसूचना में प्रतिशत प्रणाली को जोड़ा गया जिसमें हर विषय के अंकों को अलग-अलग मानने की बजाय कुल नंबर का प्रतिशत माना गया। वहीं जब इसकी पड़ताल की गई तो पता चला कि जिन छात्रों को 720 में से 150 अंक भी मिले। उन्हें 2017 में एमबीबीएस में दाखिला दिया गया। तकरीबन 503 छात्र तो ऐसे हैं जिनके फिजिक्स और केमिस्ट्री में या तो 0 से 9 तक मिले। इनमें से कई छात्रों के तो 0 से भी कम यानी नेगेटिव में नंबर मिले हैं।

ऐसे कई उदाहरण हैं जो बताते हैं कि कई छात्रों को कम नंबर में भी दाखिला मिल जाता है। जिसके लिए उनसे मोटी रकम भी वसूली जाती है। कई कॉलेजों में तो सालाना फीस 17 लाख तक रखी गई है। जिसमें मेस, होस्टल, लाइब्रेरी और अन्य सुविधाओं के लिए अलग से पैसे देने होते हैं। जिन 530 छात्रों के सिंगल डिजिट, 0 या उससे भी कम अंक हैं उनमें से 507 को प्राइवेट कॉलेजों में दाखिला दिया गया। जिनमें से अधिकतर डीम्ड यूनिवर्सिटी हैं।

                                                                                                                         एपीएन ब्यूरो

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