Tawang में झड़प को लेकर एक बार फिर सुर्खियों में LAC, जानिए भारत और चीन के बीच कितना पुराना है ये विवाद और कब-कब हुई हैं बड़ी घटनाएं

9 दिसंबर, 2022 को चीन के पीएलए सैनिकों ने तवांग सेक्टर (Tawang Sector) के यांग्त्से क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण करने और एकतरफा तरीके से यथास्थिति को बदलने का प्रयास किया।

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Tawang में झड़प को लेकर एक बार फिर सुर्खियों में LAC, जानिए भारत और चीन के बीच कितना पुराना है ये विवाद और कब-कब हुई हैं बड़ी घटनाएं - APN News
Tawang entrance

देश के उत्तर पूर्वी राज्य अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के तवांग सेक्टर (Tawang Sector) के यांग्त्से (Yangtse) में 9 दिसंबर को भारतीय और चीनी (India and China) सैनिको के बीच हुई हिंसक झड़प को लेकर देश में चर्चाओं का माहौल गर्म है। केंद्र सरकार की और से रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद के दोनो सदनो में इस मामले को लेकर बयान भी दिया है।

देश की सुरक्षा से जुड़े हुए कई महत्वपूर्ण लोगों का मानना है कि चीन की तरफ से कि जा रही ऐसी उकसावे की कार्रवाई होती रहेगी तो और भारत को भी प्रतिक्रिया देनी पड़ेगी। हालांकि यहां मुश्किल ये है कि ऐसी छोटी-छोटी घटनाएं कई बार बड़ा रूप ले सकती हैं और भारत को इसके लिए तैयार होना पड़ेगा।

कितनी लंबी है LAC?

भारत और चीन के बीच स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) 3,488 किलोमीटर लंबी रेखा लद्दाख, कश्मीर, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश से होकर गुजरती है।

घटना को लेकर क्या बोले भारत के रक्षा मंत्री?

घटना को लेकर भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि “9 दिसंबर, 2022 को पीएलए सैनिकों ने तवांग सेक्टर के यांग्त्से क्षेत्र में वास्तविक नियंत्रण रेखा का अतिक्रमण करने और एकतरफा तरीके से यथास्थिति को बदलने का प्रयास किया। हमारे सैनिकों ने दृढ़ता और संकल्प के साथ चीन के प्रयास का विरोध किया। फलस्वरूप आमने-सामने की हाथापाई हुई जिसमें भारतीय सेना ने बहादुरी से हमारे क्षेत्र में उन्हें अतिक्रमण करने से रोका और अपनी चौकियों पर लौटने के लिए बाध्य किया। इस झड़प में दोनों ओर के कुछ सैनिकों को चोटें आई हैं। मैं इस सदन के साथ यह साझा करना चाहता हूं कि हमारी ओर से कोई हताहत या गंभीर रूप से हताहत नहीं हुआ है।“

Tawang Area
Tawang area

Yangtse घटना को लेकर क्या कहा China ने?

चीनी सेना के पश्चिमी थिएटर कमांड के प्रवक्ता कर्नल लॉन्ग शाओहुआ ने एक बयान जारी कर कहा कि “चीनी सेना LAC के उस पार चीन के डॉन्गजांग क्षेत्र में नियमित रूप से गश्त कर रही थी जब भारतीय सैनिकों ने अवैध ढंग से सीमा रेखा पार करके चीनी सैनिकों को रोक दिया।” चीनी सेना ने आगे कहा कि, “हम भारतीय पक्ष से मांग करते हैं कि मोर्चे पर तैनात सुरक्षाबलों को कड़े ढंग से नियंत्रित और संयमित करते हुए चीन के साथ सीमा पर शांति कायम करने की दिशा में कदम उठाए जाएं। हमारे सैनिकों की प्रतिक्रिया बेहद पेशेवर, दृढ़तापूर्ण और तय नियमों के मुताबिक थी, जिससे स्थिति संभालने में मदद मिली। इसके बाद दोनों पक्ष पीछे हट गए हैं।”

इसके अलावा घटना को लेकर चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने अपनी रोजाना होने वाली प्रेसवार्ता में कहा कि “चीन और भारत के बीच सीमा पर हालात सामान्य रूप से स्थिर हैं। दोनों पक्षों के बीच कूटनीतिक और सैन्य अधिकारियों के माध्यम से सीमा से जुड़े मुद्दों को लेकर सहजता के साथ संवाद जारी है।”

कहां है Yangtse?

यांग्त्से, अरुणाचल प्रदेश के Tawang से 25 किलोमीटर उत्तर में लगभग 11.5 हजार फुट ऊंचाई पर स्थित है। ये भारत और चीन के बीच पुराना विवादित क्षेत्र है। 1990 के दशक में जब भारत-चीन के अधिकारियों ने बातचीत शुरू की थी तब भी इसे विवादित क्षेत्र माना गया था।

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Indian soldiers at LAC

भारत चीन के बीच हुई बड़ी घटनाएं (Clash between India and China)

1962

साल 1959 में जब तिब्बत में चीन के खिलाफ विद्रोह शुरू हुआ तो भारत ने तिब्बत के धर्म गुरु दलाई लामा को अपने यहां शरण दी। इससे नाराज हुए चीन ने भारत-चीन बॉर्डर पर घुसपैठ करनी शुरू कर दी और साल 1962 में अचानक भारत पर हमला कर दिया। भारत इस युद्ध के लिए तैयार नहीं था जिसकी वजह से उसे युद्ध में हार का सामना करना पड़ा।

1967

1967 में सिक्किम बॉर्डर पर नाथु ला (Nathu La) में दोनों देशों के सैनिकों की जान गई। उस वक्त चीनी सेना (PLA) ने भारतीय सीमा में घुसकर जवानों के साथ हाथापाई और गोलीबारी शुरू कर दी जिसका भारतीय जवानों ने भी मुंहतोड़ जवाब दिया। लेकिन इसमें भारत के 80 जवान शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे।

1975

1975 में अरुणाचल प्रदेश में चीनी सेना ने भारतीय सेना के गश्ती दल पर हमला किया। उस वक्त असम राइफ्ल्स के जवान LAC पर पेट्रेलिंग कर रहे थे। इस हमले में चार भारतीय जवान शहीद हुए।

1989

1987 में अरुणाचल प्रदेश के ही तवांग के उत्तर समदोरांग चू (Sumdorong Chu) में फिर एक बार झड़प हुई। भारतीय जवानों की काफी कोशिशों के बावजूद जब चीनी सेना ने यहां से वापस जाने से मना किया तो भारत ने ऑपरेशन फाल्कन (Operation Falcon) चलाया। इस ऑपरेशन के लिए भारतीय वायुसेना की मदद से जवानों को एयरलिफ्ट किया गया था।

2017

2017 में डोकलाम में चीनी सैनिक सड़क बना रहे थे। इससे दोनों देशों के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई थी। ये विवाद भी करीब 70 से 80 दिनों के बीच चला।

2020

पूर्वी लद्दाख की गलवान घाटी में 15 से 16 जून की मध्यरात्रि हुई हिंसक झड़प में भारत के एक कमांडर (Colonel) समेत 20 सैनिक शहीद हुए थे।

इसके बाद अगस्त 2020 में ही भारत ने चीन पर एक सप्ताह में दो बार सीमा पर तनाव भड़काने का आरोप लगाया था जिसे चीन ने नकारा। सितंबर 2020 में ही चीन ने भारत पर अपने सैनिकों पर गोलियां चलाने का आरोप लगाया था। इसकों लेकर भारत ने भी चीन पर ऐसा ही आरोप लगाया।

LAC को लेकर क्या है दावा?

चीन अरुणाचल प्रदेश को ‘दक्षिणी तिब्बत का क्षेत्र’ बताता रहा है। साल 1914 से पहले तक तिब्बत और भारत के बीच कोई तय सीमा रेखा नहीं थी। इस दौर में भारत में अंग्रेजों का राज हुआ करता था। ऐसे में सीमा निर्धारण के लिए भारत और तिब्बत की सरकारों के बीच 3 जुलाई 1914 को शिमला में समझौता (Simla Agreement) हुआ। इस समझौते पर भारत में राज कर रहे अंग्रजों की ओर से प्रशासक सर हेनरी मैकमोहन (Henry McMahon) और तत्कालीन तिब्बत सरकार के प्रतिनिधि ने हस्ताक्षर किए। इस समझौते के साथ ही भारत के तवांग सहित पूर्वोत्तर सीमांत क्षेत्र और बाहरी तिब्बत के बीच सीमा मान ली गई।

भारत में तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने साल 1938 में मैकमोहन लाइन दर्शाता हुआ पहली बार नक्षा प्रकाशित किया। भारत को 1947 में आजादी मिली वहीं, पीपल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना (Peoples Republic of China – PRC) 1949 में अस्तित्व में आया। लेकिन चीन शिमला समझौते को ये कहकर खारिज करता रहा है कि तिब्बत पर चीन का अधिकार है और तिब्बत की सरकार के किसी प्रतिनिधि के हस्ताक्षर वाले समझौते को वो नहीं मानेगा।

1959 में चीन के प्रधान मंत्री झोउ एनलाई ने लिखी थी पीएम नेहरू को चिट्ठी

3 जुलाई 1914 को शिमला कन्वेंशन (Simla Convention) पर हस्ताक्षर के समय से लेकर 23 जनवरी 1959 तक चीनियों ने कभी भी मैकमोहन रेखा (McMahon Line) पर कोई औपचारिक आपत्ति नहीं जताई; हालांकि उनके पास ऐसा करने के कई अवसर थे।

लेकिन, 23 जनवरी 1959 को चीन के प्रधान मंत्री झोउ एनलाई (Zhou Enlai) ने भारत के प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawaharlal Nehru) को एक पत्र लिखकर कहा कि “सबसे पहले, चीन-भारतीय सीमा को औपचारिक रूप से कभी भी सीमांकित नहीं किया गया था इसके अलावा सीमा को लेकर चीन की केंद्र सरकार और भारत सरकार के बीच कोई संधि या समझौता नहीं हुआ था। दूसरा, मैकमोहन रेखा चीन के तिब्बती क्षेत्र के खिलाफ ब्रिटिश सरकार की आक्रामक नीति का एक तत्व थी। तीसरा, झोउ ने स्वीकार किया कि तिब्बती स्थानीय अधिकारियों ने कन्वेंशन पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन ‘एकतरफा रूप से खींची गई’ (Unilaterally Drawn) रेखा से वो असंतुष्ट थे। फिर भी, झोउ ने जोर देकर कहा कि ‘चीनी सरकार मैकमोहन रेखा के प्रति यथार्थवादी रवैया (Realistic Attitude) अपनाना जरूरी समझती है।’

इसके बाद आया साल 1962 जब भारत–चीन के बीच युद्ध के दौरान चीन ने अरुणाचल प्रदेश के आधे से भी अधिक हिस्से पर कब्जा कर लिया था। वहीं, कुछ दिनों के बाद ही चीन ने अपने आप ही युद्ध विराम घोषित किया और उसकी सेना मैकमोहन रेखा (McMahon Line) के पीछे हट गई। लेकिन सामरिक मामलों के जानकार आज तक इस दुविधा में हैं कि जब चीन अरुणाचल प्रदेश को लेकर अपना दावा करता है तो फिर 1962 की लड़ाई के दौरान वो पीछे क्यों हट गया था।

चीन तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा (Dalai Lama) से लेकर भारतीय प्रधानमंत्री के अरुणाचल दौरे पर आपत्ति जताता रहा है। चीन ने 2009 में तत्कालीन भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह और 2014 में पीएम मोदी के दौरे पर आपत्ति जताई थी।

Defence Minister Rajnath Singh on clash between Indian and Chinese Soldiers

भारत और चीन के बीच विवादित क्षेत्र (Disputed areas between India and China)

तवांग (Tawang)

1947 में भारत को मिली आजादी और 1949 में चीन में नये शासन के बाद भारत और चीन के रिश्तों में तनाव के शुरुआती संकेत 1951 में ही मिलने शुरू हो गये थे। 1951 में चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया, हालांकि चीन का कहना था कि वो तिब्बत को आजादी दिला रहा है। इसी दौरान भारत ने तिब्बत को अलग देश के रूप में मान्यता दे दी थी।

साल 1972 तक अरुणाचल प्रदेश को नॉर्थ ईस्ट फ़्रंटियर एजेंसी के नाम से जाना जाता था। लेकिन, इसके बाद 20 जनवरी 1972 को इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाकर इसका नाम अरुणाचल प्रदेश रख दिया गया। वहीं, साल 1987 को अरुणाचल प्रदेश को राज्य का दर्जा दे दिया गया।

तवांग में मौजूद 400 साल पुराने बौद्ध मठ की मौजूदगी भी चीन के त्वांग पर दावे की एक वजह बताई जाती है। इस क्षेत्र में बौद्ध मठ मिलने के साथ ही भारत और तिब्बत के बीच सीमारेखा निर्धारित करने का सिलसिला शुरू हुआ था।

डोकलाम (Doklam)

भारत और चीन के बीच पूर्वी सेक्टर में स्थित डोकलाम को लेकर साल 2017 में भारत-चीन के बीच लंबे समय तक विवाद हुआ था जो करीब 70 से 80 दिन तक चलता रहा। डोकलाम मूल रूप से चीन और भूटान (Bhutan) के बीच का विवाद था। लेकिन ये सिक्किम बॉर्डर के नजदीक एक ट्राई-जंक्शन प्वाइंट है। जहां से चीन भी नजदीक है। भारत के दो पड़ोसी देश भूटान और चीन दोनों इस क्षेत्र पर अपना दावा जताते रहते हैं, लेकिन भारत भूटान के दावे का समर्थन करता है।

नाथूला (Nathu La)

नाथूला (Nathu La) जो हिमालय का एक पहाड़ी दर्रा है भारत के सिक्किम और दक्षिण तिब्बत में चुम्बी घाटी को जोड़ता है। भारत की ओर से यह दर्रा सिक्किम की राजधानी गंगटोक से तकरीबन 54 किमी पूर्व में स्थित है। 14,200 फीट की ऊंचाई पर स्थित नाथूला भारत के लिए काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि यहां से होकर चीनी तिब्बत क्षेत्र में स्थित कैलाश मानसरोवर की तीर्थयात्रा (Kailash Manasarovar Yatra) के लिए भारतीयों का जत्था गुजरता है।

1962 में हुए भारत-चीन के युद्ध के बाद इसे बंद कर दिया गया था, हालांकि साल 2006 में कई द्विपक्षीय व्यापार समझौतों के बाद नाथूला को दोबारा खोल दिया गया। क्योंकि 1890 की संधि के तहत भारत और चीन के बीच नाथूला सीमा पर कोई विवाद नहीं है। लेकिन, इस क्षेत्र में कभी-कभार तनाव की खबरें आती रहती हैं।

पैंगोंग झील (Pangong Lake)

LAC के पूर्वी हिस्से के अलावा चीन वेस्टर्न सेक्टर यानी जम्मू-कश्मीर में भी कई जगहों पर अपना दावा जताता रहता है। इसमें लद्दाख में स्थित 134 किलोमीटर लंबी पैंगोंग त्सो (Pangong Tso) झील का क्षेत्र भी शामिल है। इस झील का 45 किलोमीटर क्षेत्र भारत में तो वहीं 90 किलोमीटर क्षेत्र चीन में आता है। वास्तविक नियंत्रण रेखा इसी झील से होकर गुजरती है। रणनीतिक तौर पर ये झील का काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये झील चुशूल घाटी (Chushul Valley) के रास्ते में आती है, चीन इस रास्ते का इस्तेमाल भारत-अधिकृत क्षेत्र में हमले के लिए कर सकता है।

Pangong Lake
Pangong Lake

अमूनन देखा जाता है कि पश्चिमी सेक्टर में चीन की तरफ से अतिक्रमण के एक तिहाई के करीब मामले इसी पैंगोंग त्सो झील के पास होते हैं। इसकी वजह ये है कि इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा को लेकर सहमति नहीं है और दोनों ने अपनी अलग-अलग एलएसी तय की हुई है।

साल 1962 के युद्ध के दौरान यही वो जगह थी जहां से चीन ने बड़े स्तर पर युद्ध शुरू किया था। खबरों के अनुसार पिछले कुछ सालों में चीन ने पैंगोंग त्सो के अपनी ओर के किनारों पर सड़कों का निर्माण भी कर लिया है।

गलवान घाटी (Galwan Valley)

गलवान घाटी लद्दाख और अक्साई चीन के बीच भारत-चीन सीमा के नजदीक स्थित है। यहां पर वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) अक्साई चीन को भारत से अलग करती है। ये घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग (South Xinjiang) और भारत के लद्दाख तक फैली हुई है। ये क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से अति महत्वपूर्ण हैं क्योंकि ये पाकिस्तान, चीन के शिनजियांग और लद्दाख की सीमा के साथ सटा हुआ है। 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान भी गलवान नदी का यह क्षेत्र लड़ाई का प्रमुख केंद्र रहा था।

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क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

चीन में भारत के राजदूत और विदेश सचिव के पद पर रहे विजय गोखले ने थिंक टैंक Carnegie India के लिए लिखे एक लेख में लिखा है कि “चीनी सेना की ओर से अलग-अलग जगहों पर सीमा पार करने की हालिया कोशिशें, जिनकी शुरुआत लद्दाख के पश्चिमी सेक्टर में अप्रैल, 2020 से हुई थी, चीन के आक्रामक रुख को दिखाती हैं। ये रुख 2013 के बाद नजर आया है। हालिया घटना को लेकर गोखले लिखते हैं कि ये घटना एक सवाल खड़ा करती है कि क्या ‘लद्दाख में सैन्य टकराव के बाद चीन की ओर से रणनीतिक चूक किए जाने की आशंकाएं हैं?

गोखले चीन को लेकर लिखते हैं कि “चीन की दो धारणाएं हैं – पहली ये है कि भारत किसी छोटी घटना के बदले में बड़े सैन्य पलटवार करने का फैसला नहीं लेगा, दूसरी ये है कि भारत उसके साथ सैन्य टकराव करने वाले पक्ष के खिलाफ दूसरे देशों के साथ मिलकर मोर्चेबंदी नहीं करेगा। इन दोनों धारणाओं को भारत की रणनीतिक सोच में 2020 के बाद आए बदलावों को ध्यान में रखते हुए देखा जाना चाहिए।”

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